सत्याग्रह दर्शन और भारत

महात्मा गांधी का 150वीं जयंती वर्ष के अवसर पर आज 8 सितंबर 2019 को ‘सत्याग्रह दर्शन और भारत’ विषय पानीपत के खादी आश्रम में संगोष्ठी हुई। मुख्य वक्ता थे लोकमनीषी राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी और अध्यक्षता की कर्मयोगी दीपचंद निर्मोही ने तथा साथ में समाज सेविका व गांधी स्मारक निधि की अध्यक्षा निर्मल दत्त। आज भी और पहले भी सत्ताग्रह और सत्याग्रह में संघर्ष रहा है।गांधी ने सत्य की अविछिन्न परंपरा से अपने को जोड़ा। सत्ता सत्य की परिभाषा बदलने पर उतारू है। सत्य हमेशा लोकमंगलकारी होता है। सत्य पर प्रहार और हमले लोक पर और लोकतंत्र पर हमले हैं। सत्यमेव जयते का उदघोष और संकल्प होगा तो झूठ की माया विगलित होगी।गांधी ने सत्य को ईश्वर माना। यानी सत्य ईश्वर की तरह विराट है।

झूठ की पोपलीला सत्य का ढोंग रचकर ही अपना प्रभुत्व स्थापित करती है। भारत के तीन महात्माओं – महात्मा बुद्ध, महात्मा जोतिबा फुले और महात्मा गांधी – ने सत्य की प्रतिष्ठा के लिए संघर्ष किया। सत्य कभी संकीर्णता के दायरे को स्वीकार नहीं करता।

सत्य की पहचान और उसकी स्थापना का आग्रह यही है मानवीय शक्तियों की ताकत जिसके आगे हिटलर के सैंकड़ों झूठ कांपते थे। तानाशाही सत्ताएं झूठ की खेती करती हैं। मानवता को झूठ में फंसाना चाहती हैं। लेकिन मनुष्य स्वभावतः सत्य का ग्राहक है। झूठ का आकार बड़ा हो सकता है, उसकी आवाज भी ऊंची हो सकती है। उसकी भुजाओं में दैत्य का सा बल हो सकता है, लेकिन उसमें नैतिक साहस नहीं होता।

इसी संगोष्ठी में देस हरियाणा के बालमुकुंद गुप्त विशेषांक की पानीपत के प्रबुद्ध जनों के समक्ष चर्चा हुई।ये तो कहा जा सकता है कि लोगों में साहित्य को लेकर चाह है। उसे प्राप्त करना चाहते हैं। लेकिन उनके लिए ऐसे अवसर कम ही आते हैं। देसहरियाणा का बालमुकुंद गुप्त विशेषांक एक ऐतिहासिक और यादगारी अंक है। बालमुकुंद गुप्त ने अंग्रेजी सत्ता के दमन को ललकारा था। इतिहास में सत्य के जितने भी पुरोधा हैं वे सब वर्तमान में प्रभु वर्ग के छलावे के खिलाफ संघर्ष में साथ हैं।

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