सामण का स्वागत – मंगतराम शास्त्री

शीळी शीळी बाळ जिब पहाड़ां म्ह तै आण लगै
होवैं रूंगटे खड़े गात के भीतरला करणाण लगै
राम राचज्या रूई के फोयां ज्यूं बादळ उडण लगैं
समझो सामण आग्या करो स्वागत की त्यारी
मौसम तो काच्ची हो सै पर लाग्गै सै प्यारी।

नन्हीं नन्हीं बुन्दां की जिब तन सूई सी चुभण लगै
धरती माँ की छाती म्ह तै सौंधी खुशबू उगण लगै
रूप जवानी गदरावै और अल्हड़ नैणां गडण लगैं
समझो सामण आग्या करो स्वागत की त्यारी
मौसम तो काच्ची हो सै पर लाग्गै सै प्यारी

गुड़ के गूलगले पूड़यां का घर म्ह जिक्रा होण लगै
धी बेटी की कोथळियां का माँ कै फिक्रा होण लगै
सिरसम की काच्ची घाणी के तेल कढ़ाई चढ़ण लगैं
समझो सामण आग्या करो स्वागत की त्यारी
मौसम तो काच्ची हो सै पर लाग्गै सै प्यारी

खेत की ऊँची डाबड़ियां म्ह किते टटीरी गाण लगैं
काब्बर गुग्गी और गोरैया रेत्ते के म्ह न्हाण लगैं
मोर मोरणी देख मेघ नै नई इबारत पढ़ण लगैं
समझो सामण आग्या करो स्वागत की त्यारी
मौसम तो काच्ची हो सै पर लाग्गै सै प्यारी

मंगतराम शास्त्री

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मंगत राम शास्त्री

जिला जीन्द के टाडरथ गांव में सन् 1963 में जन्म। शास्त्री, हिन्दी तथा संस्कृत में स्नातकोतर। साक्षरता अभियान में सक्रिय हिस्सेदारी तथा समाज-सुधार के कार्यों में रुचि। अध्यापक समाज पत्रिका का संपादन। कहानी, व्यंग्य, गीत विधा में निरन्तर लेखन तथा पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन। बोली अपणी बात नामक हरियाणवी रागनी-संग्रह प्रकाशित।

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