इसाए जी हो गरीब्बां जो अन्न पाणी वो दास – धनपत सिंह

इसाए जी हो गरीब्बां जो अन्न पाणी वो दास
इसीए हो सै भूख जयसिंह इसी ए होया कर प्यास

सांप के पिलाणे तैं भाई बणै दूध का जहर
प्यार मोहब्बत असनाई चाहिये बराबरीयां तैं बैर
चाए रोवो चाए गिड़गिड़ाओ कोई, तुम अपणी मांगे जा खैर
लूट, खसोट तबाह कर दे इसा तोल दिया कहर
तूं दो दिन म्हं दुख पाग्या हम दुख पावैं बारहा मास

कोए भूक्खा रह्वै अर दिन रात कमाए जा
तूं फळी तक ना फोडै़ माल हरामी खाए जा
कोए माट्टी गेल्यां माट्टी हो तूं छाड़ बर नहाया जा
किसै नैं खाट भी नहीं मिलती तूं तकिए लाए जा
किसे की झुपड़ी भी फुक्की जा, तेरा बंगल्यां म्हं बास

गरीबों ऊपर ठाड्यां का कोए ताण ना चाहिये
करै दिन रात घुळाई दुखी किसान ना चाहिये
जो पुगण में ना आवै इसा लगान ना चाहिये
तूं पांच की वसूली म्हं करता है पचास

हिम्मत एक तो तूं जाईए, दो-चार और जाओ
असला भी लो साथ म्हं और हथियार भी ठाओ
इतणै आंख्यां पर तै पट्टी खोल्लण ना पाओ
जब तक इस जंगल तै बाहरणे छोड़ ना आओ
कहै धनपत सिंह इसनैं जी तैं मार द्यूं जै फेर बणैं बदमाश

(जिला रोहतक के गांव निंदाणा में सन् 1912 में जन्म। जमुआ मीर के शिष्य। तीस से अधिक सांगों की रचना व हरियाणा व अन्य प्रदेशों में प्रस्तुति। जानी चोर, हीर रांझा, हीरामल जमाल, लीलो चमन, बादल बागी, अमर सिंह राठौर, जंगल की राणी,रूप बसंत, गोपीचन्द, नल-दमयन्ती, विशेष तौर पर चर्चित। 29जनवरी,1979 को देहावसान।)

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