जमाना ही चोर है, पक्षी-पखेरू क्या ढोर है
कोये-कोये चोर है जग म्हं लीलो आने और दो आने का
जवाहरात का चोर है कोय, कोय है चोर खजाने का
जिसी चोरी करै उसी बोर है
चोरी करे बिना लीलो इस जग म्हं कोण रह्या जा सै
कोये अन्न का चोर कोये धन का चोर, कोये मन का चोर कह्या जा सै
दिल चौरी नैं सहज्या कमजोर है
काळा चोर कोये मुसकी चोर, कोये गौरा चोर कह्या जा सै
ये छोहरी चोर घणी होती, कोई छोरा चोर कह्या जा सै
किसे की दबज्या किसै का शोर है
कोये-कोये चोर लगे दुश्मन कोये प्यारा भी होगा
तूं हमनैं चोर बणावै सै, कोये चोर हमारा भी होगा
कहै धनपत सिंह लीलो मछोर है
जिला रोहतक के गांव निंदाणा में सन् 1912 में जन्म। जमुआ मीर के शिष्य। तीस से अधिक सांगों की रचना व हरियाणा व अन्य प्रदेशों में प्रस्तुति। जानी चोर, हीर रांझा, हीरामल जमाल, लीलो चमन, बादल बागी, अमर सिंह राठौर, जंगल की राणी,रूप बसंत, गोपीचन्द, नल-दमयन्ती, विशेष तौर पर चर्चित। 29जनवरी,1979 को देहावसान।