पाक है मोहब्बत म्हारी ना हे बदमाशी – धनपत सिंह

पाक है मोहब्बत म्हारी ना हे बदमाशी
हीरामल तैं पहल्यां मनैं टुटणा है फांसी

पाक मोहब्बत दुनियां के म्हं सबतैं बड़ी करारी हो सै
फेर जी के लेणा हो सै जब अलग इलम का यारी हो सै
सबतैं बुरी बिमारी हो सै तपेदिक की खांसी

देख भाळ कै काम करो क्यूं खोट्टी मन म्हं ठाणता
इस महरग के मार्यां नैं और कोए नहीं पिछाणता
हम जाणां या म्हारा जाणता म्हारी तबीयत की तलाशी

पाक मोहब्कत उलफत का बिलकुल झूठा पाळा होज्या
पहल्यां प्यार बणाले फेर साथ रहण का ढाळा होज्या
दरगाह म्हं मुंह काळा होज्या दुनियां करै हांसी

राम, रहीम म्हं फरक नहीं ना कोए किसे तैं हीणा हो सै
धनपत सिंह ओम, अल्लाह का एक ही रकीणा हो सै
मथुरा वोहे, मदीणा हो सै, काबा वोहे कांशी

जिला रोहतक के गांव निंदाणा में सन् 1912 में जन्म। जमुआ मीर के शिष्य। तीस से अधिक सांगों की रचना व हरियाणा व अन्य प्रदेशों में प्रस्तुति। जानी चोर, हीर रांझा, हीरामल जमाल, लीलो चमन, बादल बागी, अमर सिंह राठौर, जंगल की राणी,रूप बसंत, गोपीचन्द, नल-दमयन्ती, विशेष तौर पर चर्चित। 29जनवरी,1979 को देहावसान।

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