किसान की मुसीबत नैं जाणै सै किसान – धनपत सिंह

किसान की मुसीबत नैं जाणै सै किसान
लूट-खसोट मचावणियां तूं के जाणै बेईमान

माह, पोह के पाळे म्हं भी लाणा पाणी हो
दिन रात रहे जा बंध पै कस्सी बजाणी हो
गिरड़ी फेरां, सुहागी, कई बै बहाहणी हो
पाच्छै बीज गेर्या जा, आशा हर तैं लाणी हो
छोटे-छोटे पौधे उपजैं जमींदार की ज्यान

इन पौध्यां नैं अपणे खून की खुबकाई दे
ऊंची-ऊंची बाड़ करै और खोद खाई दे
म्हारे खून के कतरे के दाणे बणे दिखाई दे
उन दाण्यां नैं तूं लेज्या हम माल उघाई दे
जमींदार की मौत होया करै चौगुणा लगान

किसान के दुश्मन गिणाऊं  सुन्ने, डांगर, ढोर
कतरा, मकड़ा, काबर, घुग्गी, काग मचावै शोर
टीड्डी, कड़का, गादड़, लोबा, सूरों तक का जोर
तोता सिरडी काट कै लेज्या, कोर चूंटज्या मोर
गोलिए और चिडिय़ा चुगज्यां, चरज्यां मिरग मैदान

कहै धनपत सिंह तनैं किसान सताए बदमाशी पूरी सै
अंत को ज्वाल कहै सै मिलै जरूरी सै
म्हारा खून पसीना बंद करकै तनैं भरी तजूरी सै
ल्या उन बंद्यां नैं बांटू या जिसकी मजदूरी सै
तूं खटरस, मिठरस, शराब, कवाब खा, भूक्खा मरै जिहान

(जिला रोहतक के गांव निंदाणा में सन् 1912 में जन्म। जमुआ मीर के शिष्य। तीस से अधिक सांगों की रचना व हरियाणा व अन्य प्रदेशों में प्रस्तुति। जानी चोर, हीर रांझा, हीरामल जमाल, लीलो चमन, बादल बागी, अमर सिंह राठौर, जंगल की राणी,रूप बसंत, गोपीचन्द, नल-दमयन्ती, विशेष तौर पर चर्चित। 29जनवरी,1979 को देहावसान।)

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