वा राजा की राजकुमारी मैं सिर्फ लंगोटे आळा सूं – पं. मांगेराम

वा राजा की राजकुमारी मैं सिर्फ लंगोटे आळा सूं
भांग रगड़ कै पीवणियां मैं कुण्डी सोट्टे आळा सूं

उसकी सौ सौ टहल करैं आड़ै एक भी दासी दास नहीं
वा शाल दुशाले ओढण आळी कम्बल तक मेरे पास नहीं
क्यां के सहारे जी लावेगी आड़ै शतरंज चौपड़ ताश नहीं
वा बागां की हरियल कोयल आड़ै बर्फ पड़ै हरी घास नहीं
मेरा एक कमण्डल एक कटोरा मैं फूटे लोट्टे आळा सूं

वा पालकियां में सैर करै मैं बिना सवारी रह्या करूं
वा सौ सौ माल उडावण आळी मैं पेट पुजारी रह्या करूं
उसनै घर बर जर चाहिए मैं सदा फरारी रह्या करूं
लगा समाधि तुरिया पद की मैं अटल अटारी रह्या करूं
उनै जुल्फां आळा बनड़ा चाहिए मैं लाम्बे चोट्टे आळा सूं

मैं अवधूत दर्शनी बाबा मेरा रंग राग देख कै डरज्यागी
मैं राख घोळ कै पिया करूं मेरा भाग देख कै डरज्यागी
पंच धूणा के बीच तपूं वा आग देख कै डरज्यागी
मेरे सौ सौ सर्प पड़े रहैं गळ म्हं नाग देख कै डरज्यागी
वा साहूकार की बेटी सै मैं खस्सी टोट्टे आळा सूं

किसे राजा के संग शादी कर दो इसा मेल मिलाणा ठीक नहीं
जुणसा खेल रचाया चाहो इसा खेल खिलाणा ठीक नहीं
जिसकी दोनूं धार घणी पैनी इसा सेल चलाणा ठीक नहीं
मैं फीम धतूरा भांग पिवणियां तेल पिलाणा ठीक नहीं
मांगे राम बोझ मरज्यांगी मैं जबर भरोट्टे आळा सूं

आम्बेडकर और रविदास – जयपाल

भूखे मरते भक्त, ऐश करते ठग चोर जवारी क्यूं – हरीकेश पटवारी

One thought on “वा राजा की राजकुमारी मैं सिर्फ लंगोटे आळा सूं – पं. मांगेराम

  1. बहुत बहुत आभार इतने शानदार संग्रहों के लिए

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *