जुल्मी होया जेठ- विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’

जुल्मी  होया  जेठ,  तपै  सै  धरती  सारी
ताती  लू  के  महां,  जलै  से काया म्हारी।
सूख गे गाम के जोहड़, ना आवै नहरां म्हैं पाणी
बिजली भी आवै कदे-कदे, सब कहवैं मरज्याणी।

बूंदा-बांदी  हो  ज्या  तो,  पड़ै  गात  समाई
पुरवा  चालै  बाल,  क्यूकर  होवै  निस्ताई।
ढाठा  मारे  जावै  धापली, लेण कुएं का पाणी
पनघट  भी  सूना  पड़्या, बिन  लोग  लुगाई।

बखत  काटणा  भारी  होग्या, सब कहवैं नर-नारी
गरमी तैं आच्छी लागै सबनै, जाड्डे की रूखाई।
बलदां  की  जोड़ी  देखै  बाट, कद आवैगा पाणी
दो  घूंट  नै  तरस  गए, रै  जेठ  तेरी  दुहाई।

बखत  पुराणे  म्हं  ना  थी,  इतणी  करड़ाई
काट  लिए  बण  सारे,  कर  दी गलती भारी।
जै  बचे-खुचे  पेड़ां  नै  भी  काटोगे  लोगो
न्यू ए बल-बल उठैगी ‘विनोद’ या धरती म्हारी।

– विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
वार्ड नं0 1, गुलशन नगर, तोशाम
जिला भिवानी हरियाणा

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