खाली हाथ – जयपाल

जयपालकविताJune 9, 201910 Views

वे दिन भर शहर की सूरत संवारते हैं
और अपनी सूरत बिगाड़ते हैं
दिन ढलने पर
सिर नीचा कर
मुंह लटकाए
चल पड़ते हैं वापिस
अपने घरों की तरफ
हताश-निराश
जैसे शमशान से लौटते हैं लोग
खाली हाथ
 

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