ग़ज़ल
वो जिन्हें हर राह ने ठुकरा दिया है,
मंज़िलों को ग़म उन्हीं को खा रहा है
मेरा दिल है देखने की चीज़ लेकिन
इस को छूना मत कि यह टूटा हुआ है
अजनबी बन कर वो मिलता है उन्हीं से
जिन को वो अच्छी तरह पहचानता है
चीखती थी ईंट एक इक जिसकी कल तक
आज वो सारा मकां सोया पड़ा है
क्या अलामत है किसी क़ब्ज़े की ‘आबिद’
ये जो मेरे घर पे कुछ लिखा हुआ है