कविता
एक साथ इतने हैं रंग,
देख के मैं तो रह गया दंग,,
कोई गा रहा दफ पर यहां,
कोई बजा रहा है मृदंग,
उत्सव हरियाणा सृजन।
कहीं कवि बिखेर रहे हैं रंग,
कहीं हैं बच्चों के सब रंग,,
हो रही विचारों की हैं जंग,
है संस्कृतियों का ये संगम,
है सबसे उत्तम यही रंग,,
उत्सव हरियाणा सृजन।
सजी हुई हैं यहां किताबें,
मैगजीनों के बिखेरे हैं रंग,,
आर्ट रंग चित्रकार यहां पे,
पम्फलेटों के बिखरे रंग,
हैं साहित्य का ये संगम,
उत्सव हरियाणा सृजन।
कोई दिल्ली से कोई चण्डीगढ,
कोई बिखेर रहा मुंबइया रंग,
बंगाल के रंग पंजाब रंग,
हैं बांगर- मगर का संगम,
उत्सव हरियाणा सृजन।
यहां धर्म मजहब और जाति नहीं,
संस्कृति के सब बिखेरे रंग,
कदम से कदम मिला साथी,
फिर देख प्यार के सुन्दर रंग,
हिन्दू-मुस्लिम और सिख यहां,
सब रंगे हुए हैं एक रंग,
उत्सव हरियाणा सृजन।
लेखक, विचारक और कवि,
रंगकर्मी अभिनेता हैं संग
सब की वाणी मे गूंज रही,
मीठी-मीठी सुन्दर सरगम,
भिन्न-भिन्न बिखरे हैं रंग,
उत्सव हरियाणा सृजन।।
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (मई-जून 2018), पेज – 35