अक्सर शिक्षा को लेकर सरकारी स्कूलों पर तोहमतें लगाई जाती हैं। अनेक खूबियों के बावजूद सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों की तुलना में कमतर बताया जा रहा है। अभिभावक अपने बच्चों को अपने पड़ोस के बड़े सरकारी स्कूल में भेजने की बजाय टाई लगाकर बसों में ठूंस कर शहर के निजी स्कूलों में भेजते हैं। लेकिन कुछ लोग मजबूत होती जा रही धारणाओं को बदलने और बच्चों की दिशा सरकारी स्कूलों की तरफ मोडऩे का कार्य करने में जुटे हैं।
अक्सर शिक्षा को लेकर सरकारी स्कूलों पर तोहमतें लगाई जाती हैं। अनेक खूबियों के बावजूद सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों की तुलना में कमतर बताया जा रहा है। अभिभावक अपने बच्चों को अपने पड़ोस के बड़े सरकारी स्कूल में भेजने की बजाय टाई लगाकर बसों में ठूंस कर शहर के निजी स्कूलों में भेजते हैं। लेकिन कुछ लोग मजबूत होती जा रही धारणाओं को बदलने और बच्चों की दिशा सरकारी स्कूलों की तरफ मोडऩे का कार्य करने में जुटे हैं।
हरियाणा के करनाल जिला में इन्द्री खण्ड के गांव नन्हेड़ा स्थित राजकीय प्राथमिक पाठशाला में तैनात अध्यापक भी उन्हीं में से हैं। जिनकी अथक मेहनत और प्रयासों की बदौलत पाठशाला सौंदर्यीकरण, जनभागीदारी और शिक्षा की गुणवत्ता के मामले में मिसाल बन गई है।
एक साल की अवधि में ही पंचायत व समुदाय के सहयोग से पाठशाला ने फर्श से अर्श तक का सफर तय किया है। पाठशाला को जिला स्तर पर मुख्यमंत्री स्कूल सौंदर्यीकरण पुरस्कार मिल चुका है। स्कूल में पंचायत द्वारा सोलर पैनल की व्यवस्था की गई है। सरकार द्वारा प्रदेश भर में घोषित किए गए 116 बैग फ्री स्कूलों में इन्द्री क्षेत्र की एकमात्र नन्हेड़ा की पाठशाला को शामिल किया गया है। पाठशाला की खाली पड़ी भूमि पर सुंदर पार्क, खेल का मैदान व पुस्तकालय स्थापित करने का कार्य युद्ध स्तर पर जारी है।
एक साल पहले नन्हेड़ा स्थित राजकीय प्राथमिक पाठशाला की हालत बेहद खस्ता थी। स्कूल में चारों ओर झाड़-झंखाड़ व कांग्रेस घास का साम्राज्य था। स्कूल भवन उपेक्षित था और माहौल बेहद नीरस। शौचालय व पीने के पानी की स्थिति भी दयनीय थी। स्कूल में सुंदर पौधों और पार्क तो कोसों दूर की बात थी।
सितंबर, 2016 में पाठशाला में महिन्द्र कुमार खेड़ा इन्द्री की राजकीय प्राथमिक पाठशाला और उधम सिंह तुसंग गांव पटहेड़ा की राजकीय प्राथमिक पाठशाला से स्थानांतरित होकर आए। दोनों ने स्कूल को देखकर अपना लक्ष्य तय कर लिया और योजना बनाकर काम करना शुरू कर दिया।
अध्यापकों ने पंचायत के प्रतिनिधियों एवं गांव के लोगों के साथ सम्पर्क करते हुए काम करना शुरू किया। सुबह जल्दी स्कूल पहुंचना और छुट्टी के बाद भी रात तक स्कूल में डटे रहना अध्यापकों की नियमित दिनचर्या आज भी है। अध्यापकों की सक्रियता देखकर पंचायत को भी लगा कि उनके गांव की पाठशाला के अध्यापक निरे सरकारी कर्मचारी नहीं हैं, बल्कि सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं।
महिन्द्र कुमार ऐसे अध्यापक हैं, जोकि इससे पहले गांव डेरा हलवाना, इन्द्रगढ़, गांधीनगर व इन्द्री की खस्ताहाल पाठशालाओं को गति प्रदान कर चुके हैं। नन्हेड़ा में कार्यभार ग्रहण करते ही पाठशाला के प्रभारी के रूप में काम करने की जिम्मेदारी भी उन्हीं को मिल जाती है। वे काम करना शुरू करते हैं तो जनसमुदाय व पंचायत की भागीदारी एवं सहयोग उन्हें सबसे महत्वपूर्ण जान पड़ता है। लेकिन यह काम आसान नहीं था। पूर्व में स्कूल की स्थिति और छवि इस मार्ग में सबसे बड़ा रोड़ा थी। हमारे समाज में सरकारी संस्थानों और सरकारी कर्मचारियों के प्रति समाज में बलवती होता जा रहा नकारात्मक दृष्टिकोण भी बाधक था। पूरे समाज में पसरी आशंकाएं उनके जेहन में थी। सरकारी कर्मचारी को नकारा और भ्रष्ट मानने वाले लोगों की आशंकाओं को समाप्त करने के लिए कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी, जनसरोकारों, सक्रियता एवं प्रतिबद्धता की जरूरत थी। इसके लिए केवल स्कूल के ही नहीं आस-पास के अच्छे अध्यापकों की एकता भी दिखाई दी। अध्यापकों ने पंचायत के प्रतिनिधियों एवं गांव के लोगों के साथ सम्पर्क करते हुए काम करना शुरू किया। सुबह जल्दी स्कूल पहुंचना और छुट्टी के बाद भी रात तक स्कूल में डटे रहना अध्यापकों की नियमित दिनचर्या आज भी है। अध्यापकों की सक्रियता देखकर पंचायत को भी लगा कि उनके गांव की पाठशाला के अध्यापक निरे सरकारी कर्मचारी नहीं हैं, बल्कि सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। इस तरह से गांव की सरपंच ममता कांबोज, उनके पति बलिन्द्र कांबोज व पंचायत सदस्य ने सहयोग दिया।
अन्य बहुत से सरकारी स्कूलों की तरह ही नन्हेड़ा की राजकीय पाठशाला में वंचित समुदायों के गरीब मजदूर परिवारों के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं। नन्हेड़ा गांव के सम्पन्न परिवारों के बच्चे पाठशाला में नहीं आते। पाठशाला में नन्हेड़ा के साथ ही गांव कलरी खालसा के गरीब परिवारों के बच्चे ज्यादा आते हैं। पाठशाला प्रभारी महिन्द्र कुमार व वरिष्ठ अध्यापक उधम सिंह ने अपने विद्यार्थियों के घरों में दौरा किया और परिवारों की दिक्कतों के प्रति सहानुभूति ही नहीं दिखाई, बल्कि अपना सहयोग भी दिया। माता-पिताहीन बच्चों की मदद की। अन्य सरकारी योजनाओं को लागू करवाने में भी सहयोग किया तो अभिभावकों का भी पाठशाला व शिक्षकों के प्रति विश्वास पैदा हुआ।
विश्वास बहाली के साथ-साथ पाठशाला में उगे हुए झाड़-झंखाड़ साफ किए। लोगों से दूरियों की खाई को पाटने के साथ-साथ पाठशाला की ऊबड़-खाबड़ जमीन में मिट्टी का भराव किया जा रहा था। पाठशाला में फल-फूलदार व औषधीय पौधे भी रोपे जा रहे थे। स्कूल में पौधारोपण के लिए सहारनपुर व मेरठ जैसे स्थानों से उत्तम दर्जे के फलदार, फूलदार, सजावटी व छायादार पौधे रोपे जाते हैं। ऐसे पौधे जो गांव में कहीं भी देखने को नहीं मिलते ऐसे दुर्लभ पौधे लगाए जाते हैं।
पाठशाला के प्रांगण को सजाने के लिए पार्क बनाए गए। अंडर ग्राउंड पानी के पाईप बिछाए पार्क व क्यारियों में सिंचाई के लिए टूंटियां लगाई। पीने के पानी की शानदार व्यवस्था और खस्ताहाल हो चुके गंदे शौचालयों को हटाकर नए स्वच्छ शौचालय व मूत्रालय बनवाए जाते हैं।
पाठशाला भवन में सफाई, रंग-रोगन किया जाता है। कार्यालय, कक्षा-कक्षों, बरामदे को नारों, कविताओं, चित्रों, मानचित्रों से सजाया। ठोस व गलनशील कूड़े के निस्तारण के लिए अलग-अलग कूड़ादान लगाए जाते हैं। पानी व्यर्थ ना बहे, इसके लिए पीने के पानी की टूंटियों को क्यारियों से जोड़ा। बरसाती पानी के लिए सोख्ता गड्ढ़ा बना दिया जाता है।
पंचायत द्वारा रास्तों का निर्माण, प्रांगण में टाईलें बिछवा दी जाती हैं। प्रवेश द्वार का पुननिर्माण करवाया जाता है और उसे सजा दिया जाता है।
स्कूल में विभाग द्वारा भेजे गए झूले मिट्टी में दबे हुए थे। उन्हें निकाल कर मुरम्मत करवाई जाती है और नए झूले भी लगवाए जाते हैं। अध्यापकों के जोश और उत्साह व पाठशाला के बदलते चेहरे-मोहरे का बच्चों पर जादू-सा असर होता है। ऐसे खुशनुमा माहौल का बच्चों पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। अब बच्चों के चेहरों पर हमेशा खुशी देखने को मिलती है।
अध्यापक बच्चों को गतिविधियों के माध्यम से पढ़ाते हैं। इन गतिविधियों से बच्चों को सीखने की सच्ची खुशी मिलती है। बच्चों पर अनावश्यक दबाव देखने को नहीं मिलता। समय-समय पर अध्यापक बच्चों के साथ रैलियों या जनसम्पर्क अभियान की शक्ल में लोगों के घरों में जाते हैं तो इससे बच्चों में आत्मविश्वास का संचार हो रहा है। बच्चों को ऐसी शिक्षा दी जा रही है।
यह पाठशाला अब अभिभावकों और बच्चों को लुभाने लगी है। छुट्टी के बाद अध्यापकों की तरह ही बच्चे भी स्कूल में रह जाते हैं। उनमें सुबह जल्दी स्कूल पहुंचने का चाव रहता है। विद्यार्थी सागर, सौरव, अभी, प्रिंस, संजना, साक्षी, राधिका, राखी कहते हैं कि सुबह उठते ही उन्हें अपना स्कूल याद आता है और यहां आने के लिए वे मचलने लगते हैं। स्कूल में पहुंचने के लिए वे जल्दी-जल्दी तैयार होते हैं। वे कहते हैं कि पाठशाला की सुंदरता, फूल-पौधे, क्यारियां, अपने सहपाठी तथा अध्यापकों का स्नेहपूर्ण शिक्षण उन्हें आकर्षित करता है। पाठशाला से पांचवीं कक्षा पास करके माध्यमिक स्कूल में चले गए बच्चे भी स्कूल समय से पहले और छुट्टी के बाद अपनी पुरानी पाठशाला में आते हैं और इसे ही मिडल स्कूल बनाने का अनुरोध करते हैं। रीतिका, कृतिका, संजना, दीपांशु, प्रिंस, रवि, किरणो को छुट्टी के बाद अपने पुराने स्कूल में देखा जा सकता है। वे यहां अध्यापकों के साथ चर्चाएं करते हैं। पढ़ते हैं।
एक साल में ही बच्चों की संख्या बढ़ गई है। करीब 15विद्यार्थी निजी स्कूलों को छोड़ कर स्कूल में आए हंै। स्कूल में नर्सरी की कक्षा भी लगने लगी है, जिसमें 15 विद्यार्थी आते हैं और खेल-खेल में सीखते हैं।
अध्यापकों ने बच्चों के लिए अपनी जेब से सुंदर चटख रंगों की टीशर्ट वाली वर्दी का इंतजाम किया है। इस रंगदार वर्दी को पहन कर बच्चों का हौंसला भी सातवें आसमान पर रहता है। बच्चों की नियमितता में भी इजाफा हुआ है, क्योंकि शिक्षा बहुत मजेदार बन गई है। प्रात:कालीन सभा तो विशेष आकर्षण का केन्द्र है, जिसमें गीत-संगीत होता है, बच्चों के जीवन, आदतों, रूचियों पर आनंददायी चर्चा होती है।
स्कूल में बच्चों के लिए मिड-डे-मील की तरफ अध्यापकों ने विशेष ध्यान दिया है। स्कूल की रसोई का पुनर्निर्माण करवाया। रसोई में नीचे टाईलें, सिंक, खाना बनाने, रखने, परोसने की अच्छी व्यवस्था की गई है। रसोई के साथ ही कूड़ाघर बने कमरे की सफाई करके उसे भोजनालय का रूप दिया गया है। भोजनालय में बच्चों के लिए बैठने और अपनी थाली रखने की शानदार व्यवस्था की गई है। बच्चों की आदतों में भी सुधार आया है। अब बच्चे साबुन से हाथ धोकर खाना खाते हैं। खाना खाने के बाद भी हाथ धोते हैं।
पाठशाला के प्रभारी महिन्द्र कुमार का कहना है कि पाठशाला में सुंदर बड़ा पार्क, खेल के मैदान और पुस्तकालय निर्माण का कार्य करवाया जाना है। इनके बनते ही पाठशाला प्रदेश की ऐसी राजकीय प्राथमिक पाठशाला हो जाएगी, जिसमें ये सभी सुविधाएं उपलब्ध होंगी। उन्होंने कहा कि पाठशाला के प्रांगण में बनाए जा चुके पार्क में अब शाम को लोग सैर करने आते हैं।
अध्यापकों द्वारा समय-समय पर गांव के मौजिज लोगों, पंचायत प्रतिनिधियों, समाजसेवियों व अभिभावकों को बुलाया जाता है तो अब लोग खुशी-खुशी स्कूल में आते हैं। वे अध्यापकों को सम्मान प्रदान करते हुए उनके लायक कोई भी कार्य, सेवा या जिम्मेदारी बताने की भी अपील करते हैं। अध्यापकों की मेहनत और पंचायत के सहयोग से पाठशाला चार महीने की अवधि में दिसंबर, 2016 में खण्ड की सबसे सुंदर पाठशाला घोषित हो जाती है। जनवरी, 2017 में पाठशाला जिला की सबसे सुंदर प्राथमिक पाठशाला बन जाती है। विभाग द्वारा पाठशाला को इसके लिए सम्मानित किया गया है। पाठशाला में चौबीस घंटे बिजली के लिए पंचायत द्वारा सोलर पैनल लगवाए गए। पाठशाला की ढाई एकड़ के करीब जमीन पर महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत लाखों रूपये की लागत से मिट्टी का भराव हो चुका है।
पाठशाला के प्रभारी महिन्द्र कुमार का कहना है कि पाठशाला में सुंदर बड़ा पार्क, खेल के मैदान और पुस्तकालय निर्माण का कार्य करवाया जाना है। इनके बनते ही पाठशाला प्रदेश की ऐसी राजकीय प्राथमिक पाठशाला हो जाएगी, जिसमें ये सभी सुविधाएं उपलब्ध होंगी। उन्होंने कहा कि पाठशाला के प्रांगण में बनाए जा चुके पार्क में अब शाम को लोग सैर करने आते हैं। उन्होंने बताया कि गांव के ही और आजकल हिसार में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डॉ. पंकज उन्हें लगातार प्रेरणा देते हैं। वे स्कूल में आकर बच्चों व अध्यापकों का हौंसला बढ़ाते हैं। उनका मानना है कि सरकारी स्कूल आज भी किसी मायने में कम नहीं हैं। पाठशाला प्रदेश की सबसे बेहतर व सुविधासम्पन्न पाठशाला बने, इसके लिए गांव के अनेक युवा व मौजिज लोग अध्यापकों के साथ आज कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं।
शिक्षकों के शिक्षक रहे सेवानिवृत्त अध्यापक मा. धर्मराज, समाजसेवी अनिल कुमार आर्य, अरविन्द कांबोज, राजेन्द्र नीटू, पिंटू कांबोज, नीटू कांबोज, पूर्व सरपंच गुलाब सिंह, विनोद कुमार, हिरदा राम नंबरदार, जिले सिंह नंबरदार, ईशम सिंह, स्कूल प्रबंध कमेटी की प्रधान सरोज, पूर्व प्रधान संगीता सहित अनेक लोग स्कूल में नियमित तौर पर आते हैं और सहयोग करते हैं। यह पाठशाला शिक्षा की सच्ची रोशनी फैला रही है।
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (जनवरी-अप्रैल, 2018), पेज- 26 से 28