अनुवाद – राजेन्द्र सिंह
अंतोन चेखव का जन्म 19 वीं शताब्दी के रूढि़वादी रूस में हुआ था। इनकी मां के पास कहानियों का भण्डार था जिनको वो नियमित तौर पर बड़े रोचकपूर्ण तरीके से अपने बच्चों को सुनाती थी। मां द्वारा सुनाई गयी इन्हीं कहानियों से चेखव जैसे कल्पनाशील लेखक का जन्म हुआ। पेशे से डॉक्टर चेखव ने सैकड़ों कहानियाँ एवं चार नाटक लिखे जिनकी गणना विश्व की उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाओं में होती है। चेखव मानवीय भावनाओं एवं संभावनाओं के सक्षम चित्रकार थे। अपनी कहानियों में मानव जीवन के हर रंग को उकेरा है। चेखव लघु-कथाओं को हर देश में हर आयु एवं वर्ग के लोग पढ़ते एवं सराहते हैं। मैलइफेक्टर, द लेडी विद द डॉग, बिशप, द रनअवे, द प्रिंसेस आदि चेखव की वो कहानियां हैं जिनके प्रशंसक सिर्फ आम पाठक ही नहीं, बल्कि टॉलस्टॉय, हेमिंग्वे, नैबोकोव, जी. बी. शॉ, जेम्स जॉयस एवं वर्जीनिया वुल्फ जैसे प्रसिद्ध साहित्यकार भी रहे हैं।
चेखव की मैलइफेक्टर का हरयाणवी अनुवाद प्रस्तुत है, जिसमें 19 वीं सदी के रूसी किसान के भोलेपन एवं उसकी दुर्दशा का वर्णन के साथ असवेंदनशील न्याय व्यवस्था के क्रियाकलापों पर करारा व्यंग्य है। – सं.
बात कचेहडिय़ां की है। एक जमा मरियल देहाती, जिसके गात मैं को राम दिक्खे था, जज के स्यामी खड़्या था। उसने फट्टै का भुण्डा सा कुड़ता अर टांकियां आळा पजामा पहर राख्या था। सारे मुँह पै को चेचक के दाग थे अर डाढ़ी बी झाड़ की तरां बद्द री थी। माथै पै सैली इतनी मोटी-मोटी थी के आंख बी जमा मड़ी-मड़ी दिक्खें थी। न्यू लाग्गे था जणूं कचेहड़ी मैं डरेवा खड़्या था। सिर के बाळ बी न्यू उळझ-पुळझ थे जणूं जंगळी मकड़ी के जळेवा ऊठ रया हो। अर हां, उभाणे पैरें था।
‘डेनिस ग्रिगोरियफ,’ जज नै बोलणा सुरु करया, ‘थोड़ा आग्गे सी हो ले अर मैं जो बी पुछूँ उसका जबाब दे। चढ़दे साम्मण की आठम नें जय्ब रेलवाई का संतरी, इवान एकिनफोफ, गश्त पै था तो उसने देख्या के तूं एक सो इकतालीस मील क खम्बे धोरै रेल की पटड़ी मैं तै ढिबरी (पेंच) खोलण लागर्या था, जो पटड़ी अर तख्तै नै जोड़्या करै। या रह्इ वा ढिबरी, जो तेरै धोरै तै बरामद होइ, जय्ब तूं मौके पै थ्याया। या बात साच्ची सै ?’
‘क् क् ….के ?’
‘मन्नै न्यू बता जो बात एकिनफोफ नै कह्ई, वा साच्ची सै ?’
‘हां जी, जमा न्यू की न्यू, सोळह आने।’
‘बोहत बढिय़ा ! इब न्यू बता के पटड़ी पै तै ढिबरी खोलण का तेरा मकसद के था?’
‘क् क् ….के कह्या?’
‘या के के बन्द कर। अर मेरी बात ध्यान तै सुण। ढिबरी तन्ने क्यूँ खोली?’
‘जै मन्ने इसकी चाहन्ना नीं होन्दी, तो मैं इसने खोल्दा ए क्यूँ,’ छात कानी लखांदा होया डेनिस मैं ए मैं बरड़ाया।
‘ इसकी इसी के चाहन्ना पडग़ी थी?’
‘चाहन्ना ? ह्आम इस लोह की ढेभरी नै डोबणी कह्वें। अर इसने मच्छी पकडऩ की डोरी पै बोझ बणाण खात्तर बांध्या करां। ”ह्आम तै मतलब?’
‘ह्आम! मतबल … सारा ए गाम।’
‘कान खोल कै मेरी बात सुण; मन्ने मूरख बणाण की कोसिस न करै। सीधे सीधे जबाब दे। या डोबणी-डाबणी की तेरी झूठ उरै नीं चालेगी।’
‘मन्ने जाम के आज तक झूठ नीं बोली सै, आज बोलूंगा के…‘ डेनिस बडऱ्ाया। ‘लेकिन जज साब त्हाम खुद ए बताओ, डोबणी के बिना कोए मच्छी पकड़ सकै है के ? जै त्हाम कांडै मैं कोई पटबिजणा या कीड़ा टांग द्यो, बिना डोबणी ओ तळी तक जावेगा के ? … अर न्यू कह्वे के मैं झूठ बोलूं सूं !’ डेनिस बोल्या अर थोड़े से दांदरे पाड़े। ‘ऐकले पटबिजणे का फैदा के, ओ तो पाणी के ऊपर ए तैरदा रवैगा ! सारी बढिय़ा मच्छी तो तळी मैं रह्वें। ऊपर-ऊपर कोए समुन्दरी मच्छी तो फंस सकै, अर उसकी बी कोई तस्सली कोनी। अपणे लौवै-धोरै समुंदरी मच्छी मिलदी बी कोनी। उन्ने तो खूल पसँद होवै।’
‘ये तूं समुंदरी मच्छियों की बात क्यूँ करर्र्या है ?’
‘कमाल है ! त्हामनै ए पुच्छ्या था। म्हारै तो बड़े-बड़े चौधरी बी न्यू ए मच्छी पकड़ैं। छोटे तै छोटा बाळक बी डोबणी का जुगाड़ करे बिना मच्छी पकडऩ कोनी जावै। हां, जै कोए निरा बोळी-बूच हो, ओ ए बिना डोबणी के जा सकै है। लेकिन मूरख तो मूरख होवै, उसका के इलाज?’
‘इसका मतलब यू के तन्ने ढेभरी डोबणी बणाण खात्तर खोली?’
‘और मन्ने इसकी चाहन्ना बी के थी ? कन्चे खेलण खात्तर तो खोली कोनी।’
‘लेकिन डोबणी खात्तर तू सिस्सा, गोळी या फेर कील या चौभा बी ले सकै था?’
‘सिस्सा पेडयां पै तो लाग्दा कोनी; ओ तो खरीदणा पड़ै। कील किसे काम की होंदी कोनी। डोबणी बणाण का जो सुआद ढेभरी मैं आवै, ओ किसे और चीज मैं सै ए कोनी। एक तो इसमें बोझ खूब होवै, अर गैल ऐं मोरा बी है।’
‘देख, बोळा होण का के फंड रच रया सै ! तू तो न्यू नाटक करै जणूं कैल ए जाम्या हो, या फेर सीधा कास मैं तै पड़्या हो। गधे, तन्ने न्यू कोनी बेरा के पटड़ी पै तै ढेभरी खोलण का के नतीज्जा हो सकै है। जै संतरी नै तू नीं पकडय़ा होंदा, कोए न कोए रेल पटड़ी पै तै तळै उतरदी अर घणे लोग मरदे। उन सबकी मौत का जिम्मेदार तू होंदा।’
‘ सुणिये, हे लिल्ली छतरी आळे ! मैं किसे नै बी क्यूँ मारूंगा ? जज साब, ह्आम कोए जल्लाद हां के ? ऊपर आळे की दया तै आज तक कोए मारणा तो दूर इस तरां की बात सोची बी कोनी । हे दादा बड़ आळे, तेरा ए सहारा ! त्हामनै या बात सोच बी क्यूकर ली!’
डेनिस ने दांद काढ़ कै थोड़ी सी खिर-खिर करी अर फेर आधी आंख मीच कै नराजगी के लहजे मैं जज तै बोल्या- ‘हूं ! कितने साल हो लिए म्हारा सारा गाम ढेभरी खोलण लागर्या, आज तक तो कोए घटना होइ नीं सै। जै मैं पटड़ी ए पाड़ लेज्यूँ , या फेर कोए पेडे का मोटा सा ढाळा लैन पै आर-पार धर दयूँ, फेर तो, हो सकै सै, रेल ढह बी पड़ै, पर न्यू कहणा के एक ढेभरी तै … हूं!’
‘तेरे एक बात समझ मैं क्यूँ नीं आंदी के पेंच अर ढेभरी पटड़ी नै तखत्यां गैल जूड़ के राखें।’
‘ह्आम सब समझैं जज साब, ज्यां ए तै तो कदै बी सारी ढेभरी नीं खोल्दे। ह्आम बड़े ध्यान तै काम करैं। आधी ढेभरी बंधी-बंधाई ए छोड़ देवां। ह्आम के बोळे हां!’
डेनिस ने पूरा मुहँ पाड़ के जम्भाई ली, अर दो बार माथा चुचकार्या।
‘पिछली साल ओड़ै ए लोवै-धोरै रेल पटड़ी पै तै उतर गी थी, ईब बात मेरी समझ मैं आई,’ जज बोल्या।
‘क् क् ….के कह्या?’
‘मन्ने कह्या, ईब मैं समझ्या पिछले साल रेल पटड़ी तै क्यूँ उत्तरी थी।’
‘हां हां जज साब, थ्हारे पढ़े-लिखे होण का यू ए फैदा सै; त्हाम तो हरेक बात समझ सको हो। बेमाता रूप अर गुण तो सोच-समझ के बांडै। लेकिन संतरी तो मोलड़ है, उसने कुछ नीं बेरा। उसने मेरा गळा पकड़ लिया अर खरड़-खरड़ खींच कै लाया। पहले आदमी बात तो समझै, फेर ए खींचैगा। लेकिन गधे नै तो बस लात ए मारणी आवै। जज साब त्हाम लिखो या बात, उसने मेरै दो घूंसे मारे – एक मुहं पै अर एक छाती पै।’
‘जय्ब तेरे घर की तलासी होइ तो एक ढेभरी और मिली। वा कित तै खोल्ली, अर कद?’
‘त्हारा मतबल वा ढेभरी जो लाल सन्दूक के तळै मिली थी?’
‘मन्ने नीं बेरा कड़अ मिली, लेकिन मिली तेरे घर पै। वा कित तै खोल्ली थी?’
‘वा मन्ने नीं खोल्ली; वा तो इगनाशका ने दी थी, जो साइमन काणै का छोरा है। मैं उस ढेभरी की बात करर्या हूं जो सन्दूक तळै मिली थी; जुणसी ढेभरी बाहर गाड्डी मैं मिली, वा मन्ने अर मितरोफैन नै मिल कै खोल्ली थी।’
‘इब यु मितरोफैन कूण सै?’
‘मितरोफैन पेत्रोव … त्हाम उसने जाणदे ए कोनी ! ओ ए तो एक आदमी सै जो गाम मैं मच्छी पकडऩ के जाळ बनावै अर बेच्चै। उसने तो बोह्त ढेभरियां की जरूरत पड़ै। न्यू ला ल्यो के हरेक जाळ खातर एक दरजन तो चाहियें ए चाहियें।’
‘सुणो ! दण्ड संहिता की धारा 1081 न्यू कह्वै सै के जै कोई जाण-बूझ के रेल की पटड़ी का नुकस्यान करेगा, रेल अर सवारियां खात्तर खतरै के हलात पैदा करेगा – सुणर्या सै ना मेरी बात ? ‘जाण-बूझ के’ – उस तईं करड़ी तै करड़ी सजा दी जावैगी। अर यूं हो नीं सकदा के तन्ने बेरा ना हो के ढेभरी खोलण तै के नुकस्यान हो सकै सै। सजा है काळा पानी अर जी तोड़ मेहनत।’
‘सह्ई बात सै जी, त्हारै तै फालतू किसनै बेरा ! ह्आम ठहरे अणपढ़-गवांर। ह्आमनै इन बातां का के हिसाब?’
‘तन्ने एको-एक बात का बेरा है। तू झूठ बोल्लै सै अर घणा स्याणा बणै है।’
‘ले बोल ! मैं झूठ क्यूँ बोलूंगा ? जै मेरी बात नीं जचदी तो गाम में किसे नै बी पूछ ल्यो। बिना ढेभरी कोए माई का लाल मच्छी पकड़ कै दिखा द्यो। इब देखो, चूरा मच्छी तै घटिया तो कोए बी मच्छी कोनी, बिना ढेभरी लाएं तो वा बी कोनी फंसदी।’
‘ईब तूं समुंदरी मच्छियां की बी बात करेगा,’ मुस्कान्दा होया जज बोल्या।
‘देखो जी, समुंदरी मच्छी तो आपणै इलाकै मैं सैं ए कोनी … जै आपां एक कीड़ा बान्ध कै पाणी मैं फेंकांगे, बिना डोबणी तो ओ पाणी कै ऊपर ए तरदा रवेगा; हो सकै है एक-आध झींगा मच्छी फंस बी जावै, लेकिन व बी कदे-कदे।‘
‘ईब थोड़ी सी हाण अपणा जुबान बंद राख।’
पूरी कचेहड़ी मैं चूं-चां-चप। भींत बोल्लै तो कोए आदमी बोल्लै। जज की मेज पै देख्दा होया डेनिस कदे एक टांग पै खड्या हो जे, कदे दूसरी पै। उसकी आंख तोळी-तोळी न्यू झपकी मारैं थी जणूं जज की मेज पै हर्या कपड़ा ना हो कै सूरज लिकडर्य़ा हो। जज तोळा-तोळा बेरा नी के लिखण लागर्या था।
‘फेर, इब मैं जाऊं?’ कई हाण चुपचाप खड्या रहें पाछै तंग हो कै डेनिस नै पूछ्या।
‘ना, तेरे को गिरफ्तार कर्या जावेगा अर जेळ मैं भेज्या जावेगा।’
डेनिस की आंख एकदम झपकणी बंद हो गी। उसने अपणी मोटी-मोटी सैली ठाई अर बांगा-बांगा जज कानी देखण लाग्या।
‘के मतबल …जेळ मैं ? जज साब, मेरे धोरै इतना फालतू टेम नीं सै। मन्ने मेळे मैं बी जाणा सै, ओड़ै ग्रेगरी बी आवेगा, उसपे तीन रपइये लेणे हैं। ओ घी लेग्या था म्हारे तै।’
‘चुप रहो, बीच मैं ना बोल।’
‘जेळ मैं! कोए कसूर हो तो मैं जेळ जाऊँ, लेकिन न्यू बिना बात क्यूं? कोए चोरी करी हो, किसे गैल जूत बजाया हो ! जै त्हारे मन मैं माळ-गुजारी बाबत कोए सक हो तो पटवारी की बात का बिस्वास ना करियो। नंबरदार तै पुच्छो मैं किसा आदमी हूं। पटवारी तो सौ चोरां का एक चोर है, जज साब!’
‘चुपचाप खड्या रह।’
‘मैं तो चुप ए खड्या हूं’, डेनिस बडऱ्ाया। ‘पर मैं न्यू बता दयूं के पटवारी बेईमान सै। उसके खाते मिला कै देख ल्यो, गड़बड़ पावैगी। मैं सूं खाण नै तैयार हूं। … ह्आम तीन भाई हां – कुजमा ग्रिगोरियफ, ग्रेगरी ग्रिगोरियफ अर में डेनिस … ‘
‘तू मेरे को काम नीं करणे देगा ? साइमन !‘ जज चीख्या। ‘ले जाओ इसनै पकड़ कै।’
‘परिवार मैं ह्आम तीन भाई हां,’ दो लाम्बे-तगड़े सिपाही डेनिस नै बाहर खींचण लाग गे, पर डेनिस बरडांदा ए रह्या। ‘नानी खसम करै, अर द्योता डंड भरै। एक भाई कसूर करै, तो दूसरै की के जिम्मेदारी ! कुजमा नै तो कर्जा ले कै नीं भर्या, रगड़ द्यो इब डेनिस नै। अर इन्नें लोग जज कह्वें सैं ! उप्पर आळा बी कड़अ मरग्या जै इन्नें थोड़ी-बोह्त बुद्धि दे देंदा तो! इब न्या तो आदमी ढंग तै करै। न्यू थोड़ा ए के कुछ बी … सजा तो दे द्यो, पर कोए खोट बी तो होणा चाहिए ..’
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (जनवरी-अप्रैल, 2018), पेज- 67-68