सोंद्या कै तो काटड़े ही जामें

हरियाणवी लोककथा

एक गाम म्हं दो पाळी आपणे डांगर चराया करदे। एक रात नै दोनों की म्हैस ब्याण का सूत बेठग्या। उनमैं जो आलसी था वो बोल्या भाई मैं नींद काढल्यूं। मेरी म्हैंस नै संभाळ लिए।

दूसरा बोल्या – ठीक है भाई सो ले।

इसा सूत बैठ्या अक दोनुआं की म्हैस एक टैम पै ब्यागी। सोण आले पाळी की म्हैस नै तो काटड़ी दी अर जागण आले की म्हैंस नै काटड़ा दिया।

जागण आळा नै के कर्या कि उसकी काटड़ी तो आपणी म्हैस तळै ला दी अर काटड़ा जागण आळे के तळै।

जब वा सो के उठ्या  तो उसनै कह्या अक भाई मेरे आळी नै तो काटड़ा दिया। तो जागण आळा बोल्या – हां भाई सोंद्या कै तो काटड़े ही जामें।

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