कड़वा सच, नेक सुबह व कुण्डलियां – दयालचंद जास्ट

कड़वा सच

सिर पर ईंटें
पीठ पर नवजात शिशु
शिखर दुपहरी
दो जून रोटी के लिए
पसीने से तर-बतर
यह मजदूरनी नहीं जानती
कि
किसे वोट करना है
मालिक जहां बटन दबाएगा
वोट हो जाएगा
हमारे लोकतंत्र का यही है कड़वा सच
स्रोत ः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (नवम्बर-दिसम्बर, 2015), पेज- 55

नेक सुबह

जो प्रात: प्यार बरसाएगी
सबके तकरार मिटाएगी
दिल में लेकर आएगी खास जगह
उस दिन का है इंतजार मुझे।
जुल्म ज्यादती कंही न होगी
साहूकारे की बही न होगी
आत्महत्या कहीं न होगी किसी तरह
उस दिन का है इंतजार मुझे।
कन्या का जीना हराम न हो
प्रदेश मेरा बदनाम न हो
बुरा कोई पैगाम न हो आये कोई नेक सुबह
उस दिन का है इंतजार मुझे।
मजहब सारे एक रहें
नेकी करें और नेक कहें
न लड़ें न लड़ाई सहे देश की होगी फतेह
उस दिन का है इंतजार मुझे।

कुण्डलियां

कड़ाके की ठंड भै आई सिर पै ना छात
खुले गगन की रजाई,मेरा ठिठरै सै गात
मेरा ठिठरै सै गात,होग्या मौसम भी बैरी
रैन-बसेरा कोन्या,मुस्किल मै जिंदगी ठैरी
कह जासट कविराय,सोवैं मार सड़ाके
जिनके सिर ना छात,भै लिकड़ैंगे कड़ाके

(2)
जहर घोल के एक ओर खड़े रहैं बदकार
उनके मन मै दया नही बणे फिरैं सरकार
बणे फिरैं सरकारआप में बांटणिए रै
भले लोगां का भला बुरयां नै डांटणिए रै
कह दयाल कविराय सहांगे ना हाम कहर
मिलकै रहो सब साथ  घुल ना पावै जहर
स्रोत ः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (जनवरी-अप्रैल, 2018), पेज- 7

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