हरियाणा लोकसभा चुनाव : मुद्दे गायब, तिकड़म और जातीय समीकरण हार-जीत का आधार- अविनाश सैनी

-अविनाश सैनी

हरियाणा में चुनावों की बिसात बिछ गई है। मोहरे तय हो चुके हैं। चालें चली जा रही हैं। अपनी-अपनी जीत के दावे ठोके जा रहे हैं। पर भीतर से सब जानते हैं कि बहुत मुश्किल है डगर पनघट की।

इस बार राज्य में त्रिकोणीय संघर्ष साफ दिखाई दे रहा है। भाजपा और कांग्रेस के अलावा जेजेपी तीसरी प्रमुख शक्ति के रूप में उभरी है जिसे आम आदमी पार्टी का संबल प्राप्त है। इनेलो इस बार कोई बड़ी ताकत नहीं दिखती परंतु कहीं-कहीं इनेलो उम्मीदवार भी अपनी व्यक्तिगत छवि और पार्टी के नाम पर समीकरणों को बिगाड़ने की कूवत रखते हैं। इधर इनेलो की पूर्व सहयोगी बसपा अब राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी की हमजोली बनी है। बसपा और लोसुपा उम्मीदवार भी जीत की दौड़ में नजर नहीं आ रहे पर किसी का बना बनाया खेल बिगाड़ने की स्थिति में अवश्य हैं।

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कुछ समय पहले तक रोहतक और हिसार दो हॉट सीट मानी जा रही थी, परंतु कांग्रेस ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सोनीपत से उतारकर इस सीट की अहमियत को भी बढ़ा दिया। जजपा के दिग्विजय सिंह की उपस्थिति ने मुकाबले को और रोचक बना दिया है। ना ना करते हाँ करके पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा ने सोनीपत के मैदान में उतर कर जाटलैंड के अपने छिटके हुए मतदाताओं को फिर से एकजुट करने की कोशिश की है। हालांकि उनके शेष हरियाणा सहित सोनीपत में अधिक सक्रिय रहने के कारण रोहतक में छोटे हुड्डा दीपेंद्र का चुनाव अभियान प्रभावित होने की संभावना लगती है।

भाजपा उम्मीदवार रमेश कौशिक की निष्क्रियता के चलते लाभ की स्थिति में दिख रहे भूपेंद्र हुड्डा के सामने दिग्विजय ने नई मुसीबतें खड़ी कर दी हैं। जींद जिले में जेजेपी का अच्छा असर है माना जाता है इसलिए दिग्विजय के मुकाबले में आने से बड़े हुड्डा के पक्केे माने जा रहे वोटबैंक में बिखराव आ सकता है। भाजपा को उम्मीद है कि हुड्डा और दिग्विजय की टक्कर में उनके उम्मीदवार की राह आसान हो सकती है।

जहां तक भाजपा का सवाल है, पिछली बार की एक तरफा मोदी लहर के विपरीत इस बार स्थानीय मुद्दे भी उठ रहे हैं और केंद्र तथा राज्य सरकार का रिपोर्ट कार्ड भी खंगाला जा रहा है। फिर भी पार्टी पूरी तरह प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पर आश्रित है। राष्ट्रीय स्तर पर ‘मोदी फैक्टर’ और स्थानीय स्तर पर ‘मनोहर सरकार के काम’, विशेषकर बिना रिश्वत और बिना सिफारिश के नौकरी देने का दावा भाजपा उम्मीदवारों की सबसे बड़ी ताकत है।

भाजपा जानती है कि उसके कई उम्मीदवारों की अपने स्तर पर जनता में पैठ कम है। इसलिए पार्टी, विकास, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जीवन से जुड़े मुद्दों की बजाय बालाकोट, पुलवामा, राष्ट्रीय सुरक्षा, पाकिस्तान, कश्मीर और हिंदू-मुसलमान के मुद्दों को उछाल कर एक बार फिर से मोदी को लाने की भावनात्मक अपील पर फोकस कर रही है। स्थानीय स्तर पर मुख्यमंत्री खट्टर ही पार्टी के स्टार कैंपेनर हैं। इसके अलावा जाट आरक्षण आंदोलन के बाद जाट और नॉन-जाट के बीच पैदा हुई खाई का लाभ उठाकर नॉन-जाट मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में लाना भी पार्टी की रणनीति का मुख्य हिस्सा है।

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दूसरी ओर, गुटों में बंटी कांग्रेस इस बार जबरदस्त जोश में दिख रही है। मेयर चुनाव और जींद उपचुनाव की हार को पीछे छोड़ कर पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को संदेश देने में कामयाब रही है कि हरियाणा में कांग्रेस जीत रही है, यानी भाजपा हार रही है। यही कारण है कि तमाम दबावों और निश्चित जीत की गारंटी के बावजूद कांग्रेसी नेताओं ने आप और जजपा के साथ समझौता करने से इंकार कर दिया। हालांकि इसके पीछे स्थानीय कारण भी रहे हैं। जजपा और आप को दी जाने वाली संभावित सीटों पर प्रदेश कांग्रेस के चोटी के नेताओं का दावा था, इसलिए भी तीनों में समझौता नहीं हो पाया।

इनेलो की एकमात्र कोशिश जजपा उम्मीदवारों को हराना ही दिख रहा है। पार्टी के पास अब गिनती के कद्दावर नेता बचे हैं और वे भी लोकसभा चुनाव लड़ने को उत्सुक नहीं रहे। खुद अभय चौटाला की भी अब न तो जनता पर पकड़ दिख रही है और न ही वे कार्यकर्ताओं में जोश भरकर माहौल बना पा रहे हैं। उन्होंने अधिकतर उन्हीं लोगों को टिकट दी है जो जजपा उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचा सकें।

सीट-दर- सीट की बात करें तो अम्बाला में भाजपा के रतन लाल कटारिया और कांग्रेस की कुमारी शैलजा में सीधा मुकाबला है। शैलजा की सक्रियता उनके काम आ रही लगती है जबकि रतन लाल कटारिया की जनता से दूरी उनके रास्ते का रोड़ा बनी हुई है। अनिल विज उनकी कितनी मदद करते हैं इसका भी उनकी पोजीशन पर काफी फर्क पड़ेगा। बसपा के नरेश सारण ने यहाँ काफी पहले से चुनाव प्रचार शुरू कर दिया था। बसपा पहले भी एक बार इस सीट को जीत चुकी है। इसलिए बसपा उम्मीदवार को मिलने वाले वोट हार जीत तय करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

कुरुक्षेत्र में राज्यमंत्री नायब सिंह सैनी भाजपा उम्मीदवार हैं। प्रमुख कांग्रेसी नेताओं ने चुनाव लड़ने से पीछे हटकर एक नकारात्मक संदेश जनता को दिया है जिसका फायदा भाजपा उठा सकती है। कांग्रेस ने अब निर्मल सिंह को टिकट दी है जो पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। इनेलो ने अर्जुन चौटाला पर दांव खेला है। बीएसपी ने पूर्व कांग्रेसी नेत्री शशी सैनी को उठाया है और जजपा के जय भगवान शर्मा मैदान में है। मुख्य मुकाबला नायब सिंह सैनी और निर्मल सिंह में ही लगता है।

करनाल में भाजपा के संजय भाटिया मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं, हालांकि उन्हें कुलदीप शर्मा से कड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद है। यहां कुलदीप अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे थे पर कांग्रेस हाईकमान ने अंततः उन्हीं को तैयार कर लिया।

सोनीपत सीट भूपेंद्र हुड्डा के लिए नाक का सवाल बनी हुई है। यदि यहां कोई ऊक-चूक हो गई तो उनके राजनीतिक कैरियर पर ग्रहण लगने की स्थिति बन सकती है। रोहतक सबसे हॉट सीट है। हरियाणा सरकार और पूरी भाजपा की निगाह इसी सीट पर लगी है। यहां कांग्रेस के दीपेंद्र मजबूत लग रहे हैं परंतु भाजपा चाहती है कि किसी भी सूरत में इस सीट को जीतकर भूपेंद्र हुड्डा के गढ़ को ध्वस्त किया जाए। यहां 2016 में आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई हिंसा का गहरा असर है और भाजपा नेता बार-बार हिंसा के दर्द को कुरेद कर अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोई कसर नहीं छोड़ रहे। पार्टी कार्यकर्ताओं के विरोध के बावजूद अरविंद शर्मा को टिकट देना भी भाजपा की दीपेन्द्र को घेरने की खास रणनीति का हिस्सा है। निसंदेह अनुभवी अरविंद शर्मा दीपेंद्र के लिए काफी मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। कुल मिलाकर इस बार मुकाबला खड़ा रहेगा।

मोदी फैक्टर के चलते सिरसा में भाजपा पहली बार मुकाबले में दिख रही है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को भी क्षेत्र में अधिक ध्यान न देने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। उनकी पोजीशन इस बात पर भी निर्भर करेगी कि कांग्रेस के बाकी नेताओं का उन्हें कितना सहयोग मिलता है। भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर निवर्तमान सांसद धर्मवीर खुद लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। पुलवामा और बालाकोट की घटना से भाजपा का ग्राफ बढ़ने के बाद ही वे चुनाव लड़ने को राजी हुए। जनता से दूरी उनके लिए भी मुश्किलें खड़ी कर रही है। इस सीट पर भाजपा को अहीरवाल से खासी उम्मीद है। हालांकि स्थानीय कद्दावर नेता राव दान सिंह और पूर्व इनेलो नेता बहादुर सिंह का साथ मिलने के बाद कांग्रेस की श्रुति चौधरी मजबूत दिखाई दे रही है। यहां हार-जीत इस बात पर तय करेगी कि मोदी फैक्टर कितना काम करता है!

हिसार में जजपा के दुष्यंत चौटाला और बीरेंदर सिंह की साख दाव पर हैं। दुष्यंत की हार जीत ही हरियाणा में जजपा के भविष्य को तय करेगी। उन्हें किए गए कामों और क्षेत्र में निरंतर उपस्थिति का फायदा मिलता दिख रहा है। आईएएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए भाजपा के बृजेंद्र सिंह की नैया पिता बीरेंदर सिंह की साख और मोदी फैक्टर के सहारे है। रही बात भव्य विश्नोई की तो लोगों से संपर्क की कमी उनके आड़े आ रही है। कुलदीप बिश्नोई अभी-अभी गंभीर बीमारी से उभरे हैं और इस कारण कम सक्रिय रहे हैं। यदि जातिगत समीकरण काम करें और कुलदीप की बीमारी से भव्य को सहानुभूति वोट मिल जाएँ तो मुकाबला रोचक हो सकता है। यहां आरक्षण आंदोलन में सक्रिय रहे इनेलो के सुरेश कौथ भी दुष्यंत और बृजेंद्र सिंह के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।

गुरूग्राम भाजपा की सुरक्षित सीटों में से एक है जिसे राव इंद्रजीत का गढ़ माना जाता है। लेकिन इस बार कांग्रेस के कैप्टन अजय यादव उन्हें कड़ी टक्कर देते दिख रहे हैं। राव इंद्रजीत को इस बार स्थानीय भाजपा नेताओं का विरोध भी झेलना पड़ रहा है। बसपा के हाजी रईस अहमद और जजपा के महबूब खान मेव वोटों में कितनी सेंध लगाएंगे, इस पर भी राव इंदरजीत का भविष्य निर्भर करता है। मेवात में कांग्रेस को मिल रहे समर्थन से निश्चित ही कैप्टन अजय यादव को मजबूती मिली है।

फरीदाबाद में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदल कर भाजपा से आए पुराने कांग्रेसी अवतार भड़ाना को टिकट दिया है। पलवल के एमएलए और पूर्व मंत्री करण सिंह दलाल भी यहां टिकट के लिए प्रयास कर रहे थे। देखना यह होगा कि भड़ाना, करण सिंह दलाल, पहले उम्मीदवार घोषित किये गए ललित नागर और अन्य स्थानीय कांग्रेसी नेताओं को कितना साथ ला पाते हैं। जहां तक भाजपा के कृष्ण पाल गुज्जर का सवाल है तो उन्हें भाजपा के भीतर और गुज्जर समाज, दोनों स्तरों पर विरोध झेलना पड़ रहा है। उनकी स्थिति भी बहुत हद तक मोदी फैक्टर पर ही निर्भर करेगी। फरीदाबाद से आप के प्रदेश अध्यक्ष नवीन जयहिंद भी प्रत्याशी हैं।

कुल मिलाकर चुनाव से मुद्दे गायब हैं। तिकड़म और जातीय समीकरण हार-जीत का आधार बनते दिख रहे हैं। ऐसे में देखना यह होगा कि कौन कितनी तिकड़म लगाकर मतदाताओं का मन पलट पाता है।

(सारी दुनिया, अंक 1 में प्रकाशित)

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