लोकतंत्र की मजबूती, आम आदमी की बेहतरी और खुशहाल भारत के लिए चुनें नई सरकार – योगेंद्र यादव

लोकसभा चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक चिंतक और स्वराज इंडिया के संयोजक योगेंद्र यादव से अविनाश सैनी की बातचीत

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अविनाश सैनी- योगेंद्र जी, राजनीतिक-सामाजिक विचारक होने के नाते आजादी के 70 साल बाद आज आप देश के सामने किस तरह का संकट महसूस करते हैं?

योगेंद्र यादव – भारतीय लोकतंत्र को लेकर मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि आज भारत के स्वधर्म पर हमला हो रहा है। हो सकता है कि सुनने में आपको अटपटा लगे, लेकिन सच में यह इतना बड़ा हमला है जो इस देश ने आज़ादी के बाद कभी नहीं देखा है। यह हमला भारत की बुनियाद हिला सकता है, इस देश को खत्म कर सकता है। चिंता की दूसरी बात यह है जिस तरह से इसका मुकाबला हो रहा है वह नाकाफी है। अफसोस यह है कि जिन लोगों की पहली ज़िम्मेदारी बनती है इस हमले का विरोध करने की, देश को बचाने की, वे इस ज़िम्मेदारी को उठाने की हालत में नहीं है। इसलिए अब हम और आप जैसे लोगों को जनता के साथ मिलकर देश बचाने की लंबी लड़ाई लड़नी होगी।

अविनाश सैनी- आपने स्वधर्म पर हमले की बात की है, जबकि आज तो धर्म या कहें कि धार्मिक मसले ही देश के लिए सबसे बड़ी चुनौति बने हुए हैं!

योगेंद्र यादव – बिल्कुल ठीक कहा आपने। आज धर्म का नाम आते ही खौफ पैदा हो जाता है। परंतु यहां धर्म से मेरा मतलब हिंदू, सिख, मुसलमान या इसाई से नहीं है, बल्कि नैतिक दायित्व, बुनियादी चरित्र अथवा उस प्रवृत्ति से है जिसमें हम कहते हैं कि “अगर सड़क पर कोई घायल व्यक्ति पड़ा है तो क्या हमारा धर्म नहीं बनता कि उसे अस्पताल तक ले जाएं!” इस अर्थ में धर्म व्यक्ति ही नहीं, चीजों का भी होता है। जिस तरह आंख का स्वधर्म देखना और पानी का स्वधर्म बहना है, उसी तरह हमें देखना होगा कि क्या राष्ट्र का कोई स्वधर्म हो सकता है! क्या भारत का कोई स्वधर्म है?

अविनाश सैनी- तो आप क्या समझते हैं कि भारत का स्वधर्म क्या है?

योगेंद्र यादव – भारत के स्वधर्म के तीन बुनियादी तत्व हैं – लोकतंत्र, विविधता और विकास। वैसे ये तीनों ही शब्द पश्चिम से आए हैं, हमारे अपने नहीं हैं। लेकिन लंबी प्रक्रिया के तहत हमने इन्हें अपने यहां की परिस्थितियों में ढ़ालकर विकसित किया है और इस देश के मूल चरित्र का हिस्सा बनाया है।

लोकतंत्र की बात करें तो ब्रिटेनवासियों को भी भरोसा नहीं था कि भारत जैसे गरीब, अनपढ़ और विविधताओं से भरे देश में लोकतंत्र लंबे समय तक टिक सकता है, पर हम सफल हुए और भारत के बाद अफ्रीका में लोकतंत्र आया तथा उसके पश्चात बहुत सारे दूसरे देशों ने लोकतंत्र को अपनाने की हिम्मत की। यह है भारत! यह है भारत की ताकत!!

विविधता के बारे में भी आप कह सकते हैं कि यह तो पूरी दुनिया में पाई जाती है, इसमें हमारा अपना क्या है। पर मैं कहता हूं कि भारत में पिछले 50 साल में जो प्रयोग हुआ है, उससे पहले कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि किसी एक राष्ट्र (नेशन स्टेट) में इतनी गहरी विभिन्नता भी हो सकती है। आप विकसित कहे जाने वाले यूरोप का इतिहास देखें। वहां का इतिहास विभिन्नताओं को खत्म करने का इतिहास रहा है। वहां का विचार “वन कल्चर, वन लैंग्वेज, वन रेस, वन रिलिजन, वन नेशन का है, परंतु भारत की आज़ादी के आंदोलन में पहली बार हमने हिम्मत करके दुनिया से कहा कि हम वन नेशन हैं, परन्तु तुम्हारी तरह नहीं हैं। हम पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा, द्रविड़, उत्कल, बंगा को स्वीकार करके वन नेशन हैं। हम विभिन्नता के बावजूद नहीं, बल्कि विभिन्नता की वजह से एक हैं। यानी, हमने एक आधुनिक राष्ट्र को विभिन्नता के साथ जीना सिखाया है। यह है भारत!

अब बात करते हैं विकास की। विकास का हमारा विचार भी यूरोप से अलग है। हमारे विकास का पैमाना है, ‘आखरी इंसान की आंख से आंसू पौंछना।’ दूसरे हमने इस विकास के लिए जो रास्ता बनाया है, वह भी इस आखिरी इंसान की भागीदारी को सुनिश्चित करने का ही है। इस तरह 26 जनवरी 1950 को भारतीय गणतंत्र का जो स्वधर्म बना, वह मुख्य रूप से इन तीनों पर ही आधारित है पर अफसोस की बात है कि आज इन तीनों पर ही गंभीर हमला है।

अविनाश सैनी-– तो क्या ऐसा हमला पहले नहीं होता था?

योगेंद्र यादव – होता था, पर इस बार इन तीनों स्तंभों पर एक साथ हमला हो रहा है। दूसरे, इस हमले को संवैधानिक सत्ता पर बैठे लोग कोऑर्डिनेट और मैनेज कर रहे हैं। पहली बार लोगों के बड़े हिस्से को, पब्लिक ऑपिनियन, यानी लोगों की राय को लामबंद (मोबिलाइज) किया जा रहा है, उसे बदला जा रहा है। जो बात पहले गलत मानी जाती थी और छुपकर की जाती थी, वहअब धड़ल्ले से, आंख में आंख डालकर, सीना ठोक कर की जा रही है।

अविनाश सैनी-– इमरजेंसी में भी तो लोकतंत्र पर हमला हुआ था?

योगेंद्र यादव – हुआ था, लेकिन वह सबके सामने था। इमरजेंसी का खतरा ऐसा था, जैसे कोई एक्सीडेंट या जख्म होता है। उसकी जड़ और उसके इलाज का हमें पता था और हमने इलाज कर भी लिया। लेकिन आज का खतरा कैंसर की तरह है। जब तक उसकी शिनाखत होती है, वह बहुत ज़्यादा बढ़ चुका होता है। आज हमारे लोकतंत्र और देश की विविधता के सामने जैसा संकट है, उसके बारे में 10 वर्ष पहले हम सोच भी नहीं सकते थे।

अविनाश सैनी-– और किस तरह के खतरे देखते हैं आप?
योगेंद्र यादव – विकास के भारतीय मॉडल पर बहुत बड़ा हमला है। आम आदमी तक विकास का लाभ पहुंचाने, लोगों के जीवन को आसान बनाने की बजाय सरकारें आम आदमी की खून-पसीने की कमाई को पूँजीपतियों की जेब में डालने वाली नीतियाँ बना रही हैं। आम लोगों को मिलने वाली रियायतें छीनी जा रही हैं और बड़े पूँजीपतियों की सब्सिडी बढ़ाई जा रही है। सरकारों का दावा है की देश में विकास हो रहा है पर ऐसा विकास किस काम का जो रोजगार खत्म कर दे, छोटे व्यवसायियों का काम-धन्धा चौपट कर दे, खेती खत्म कर दे और किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दे।परंतु आज विकास के नाम पर यही हो रहा है और अगर जनता नहीं जागी तो यह संकट और ज़्यादा बढ़ने वाला है।
इसके अलावा अभिव्यक्ति की आज़ादी पर खतरा है। मीडिया का गिरेबान सत्ता ने जिस तरह पकड़ा है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ देश में। दूसरी बात, संविधान में बदलाव किए बिना देश की धर्मनिरपेक्ष पहचान को खत्म किया जा रहा है, देश की विविधता को तोड़ा जा रहा है। अलग तरह के खान-पैन,अलग पहनावे, अलग भाषा-बोली को निशाना बनाया जा रहा है, सबको एक रंग में रंगने की कोशिश की जा रही है।

अविनाश सैनी – भाजपा अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों, विशेष तौर से कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाती रही है, उस पर आपको क्या कहना है?

योगेंद्र यादव – यह सही है कि पिछले 50-60 सालों में सेक्युलरिज्म के नाम पर मुसलमानों को बंधक बनाए रखने की नीति अपनाई गई, लेकिन आम मुसलमानों को इससे कुछ खास फायदा नहीं मिला। वे आज भी गरीबी, अनपढ़ता, बदहाली की हालत में जी रहे हैं। परंतु पहले लोग यह मानते थे कि सब लोग इस देश के नागरिक हैं। सब के बराबर हक हैं। जबकि आज जो अल्पसंख्यक हैं, जो कमज़ोर हैं, उनको दूसरे दर्जे का नागरिक बनाया जा रहा है। बात सिर्फ मुसलमानों की नहीं है। जहां कहीं भी, देश के किसी भी हिस्से में, जो व्यक्ति धर्म, जाति, भाषा, पहनावे या रीति-रिवाजों के नाम पर थोड़ा अलग है, कम संख्या में है, कमजोर है, उसको बताया जा रहा है कि वह किराएदार है और उसे मकान मालिक की इच्छा के अनुरूप ही जीना होगा। इससे हमारा आपसी भरोसा, हमारा सामाजिक ढांचा छिन्न-भिन्न हो गया है, जिसकी वजह से आज हम सब, बहुसंख्यक भी, अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं,वलगातार डर के माहौल में जीने को मजबूर हैं। हमें एक-दूसरे से डराया जा रहा है और इस दर्द को नफरत तथा हिंसा में बदला जा रहा है।

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अविनाश सैनी – बीच-बीच में संविधान को बदलने के स्वर भी उठते रहे हैं, उस पर क्या कहेंगे?

योगेंद्र यादव – हमारा सविधान ही देश के स्वधर्म की रक्षा कर सकता है। उसको बदलने की कोशिश या धमकी भी हमारे स्वधर्म पर हमला है। इसके बावजूद मैं नहीं कहता कि संविधान बदल दिया जाएगा या भविष्य में चुनाव नहीं होंगे जैसा कि बहुत सारे लोग मानते हैं। परंतु इसके बिना भी ताकत के बल पर संवैधानिक संस्थाओं, जैसे मानवाधिकार आयोग, चुनाव आयोग, आईबी, सीबीआई, एनआईए, पुलिस, सेना, कैग, कोर्ट, सब को धत्ता बताया जा सकता है, इनका अपने हित में प्रयोग किया जा सकता है। इसका रुझान इस सरकार में काफी बढ़ा है तथा आगे और बढ़ने की संभावना है।

अविनाश सैनी – चुनाव के इस समय में देश की जनता के लिए आप का क्या संदेश है?

योगेंद्र यादव – लोगों को यह समझना होगा कि अगर धर्म के नाम पर नफरत बढ़ेगी या कमजोर को दबाने की कोशिश होगी तो वह नफरत वहीं पर नहीं रुकेगी। वह हमारी गली-मोहल्ले, हमारे घर तक पहुंचेगी और हम सबको प्रभावित करेगी, चैन से जीने नहीं देगी। अपनी आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित माहौल देना हमारा सबसे बड़ा फर्ज है जो संविधान की सुरक्षा से ही संभव है।

इसलिए चुनाव के इस समय में हम शांत चित्त से अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचें, राष्ट्र और राष्ट्रवाद के बारे में सोचें। हमारा राष्ट्रवाद दूसरों को मिटाने वाला राष्ट्रवाद नहीं है। हमारा राष्ट्रवाद, गरीब, कमजोर, पिछड़ों को सहारा देने, उनके हक में खड़ा होने वाला है। भारत के राष्ट्रवाद ने ही हमें अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे गरीब देशों के साथ जोड़ा है, उनके हक में खड़ा किया है। यानी हमारा राष्ट्रवाद तोड़ने वाला नहीं, जोड़ने वाला राष्ट्रवाद है। यह बेहद निर्णायक समय है देश के लिए। इसलिए वोट डालते समय हम इस बात को ध्यान में रखें कि तोड़ने वालों और धर्म तथा राष्ट्रवाद के नाम पर नफरत फैलाने वालों की बजाय उन लोगों को चुनें जो जोड़ने वाले, सब के हक की सोच रखने वाले, सर्वे भवंतु सुखिनः की बात करने वाले और संविधान में विश्वास रखने वाले हों।

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