हरियाणवी ग़ज़ल
रिसाल जांगड़ा
गहराई तक जावण म्हं बखत तो लागै सै।
सच्चाई उप्पर ल्यावण म्हं बखत तो लागै से।
करैग जादां तावल जे उलझ घणी ज्यागी,
गुत्थी नै सुलझावण म्हं बखत तो लागै से।
लागै सै टुक हाण किसे तै हाथ मिल्यावण म्हं,
दिल तै दिल मिल्यावण म्हं बखत तो लागै से।
इब्बे तै क्यूं अध बिचालै उठ कै चाल पड़े,
पूरा सांग सुणावध म्हं बखत तो लागै से।
बेसक नुसखे दुनिया दुनियां भर के तौं अजमाले पर,
खरूंड जखम पै आवण म्हं बखत तो लागै से।
डमर की याणी सै हरियाणा की ग़ज़ल ‘रिसाल’
स्याणी ज्यूं गिरकावण म्हं बखत तो लागै से।