– अविनाश सैनी
लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार भाजपा ने हरियाणा के 10 में से 8 लोकसभा प्रत्याशियों की घोषणा कर दी। इस समय राज्य में भाजपा के 7 लोकसभा सांसद हैं जबकि 2 सीट इनेलो और एक सीट कांग्रेस के खाते में गई थी। इन 7 सांसदों में से पार्टी ने 5 पर फिर से विश्वास जताया है। पार्टी ने अम्बाला से रतनलाल कटारिया, सोनीपत से रमेश कौशिक, गुड़गांव से केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह, भिवानी-महेन्द्रगढ़ से धर्मवीर सिंह और फरीदाबाद से केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुज्जर को फिर से टिकट थमा दी है, जबकि करनाल के सांसद अश्विनी चौपड़ा की टिकट काट दी है। सातवें सांसद कुरुक्षेत्र के राजकुमार सैनी ने भाजपा बाय- बाय कह कर अपनी अलग पार्टी लोक सुरक्षा पार्टी (LSP) कर लिया है और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ समझौता कर भाजपा के खिलाफ़ ताल ठोकने को तैयार हैं। भाजपा ने कुरुक्षेत्र से नारायणगढ़ के विधायक और प्रदेश के राज्यमंत्री नायब सिंह सैनी पर दाव लगाया है जबकि करनाल से मुख्यमंत्री के करीबी संजय भाटिया टिकट पाने में कामयाब रहे हैं। रोहतक और हिसार लोकसभा सीटों के लिए अभी निर्णय होना बाकी है।
चर्चा है कि रोहतक से तीन बार के सांसद दीपेंद्र हुड्डा के सामने भाजपा वित्तमंत्री कैप्टन अभिमन्यु या कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ को टिकट दे सकती है।हालाँकि इससे पूर्व पार्टी ने ऐलान किया था कि किसी वरिष्ठ मंत्री को लोकसभा चुनावों में नहीं उतारा जाएगा। परन्तु रोहतक से कोई दमदार प्रत्याशी ढूँढ़ पाने में नाकाम रहने के बाद सम्भव है कि पार्टी अपने पूर्व के फैसले से पल्टी मार ले। यहाँ से हाल ही में पार्टी में शामिल हुई पैरोलम्पिक्स की पदक विजेता दीपा मालिक को भी टिकट दिया जा सकता है। पार्टी गैर-जाट वोटों का ध्रुवीकरण करने की नज़र से सहकारिता में मनीष ग्रोवर को भी मैदान में उतार सकती है। कयास इस बात के भी लगाए जा रहे हैं कि इनेलो से समझौता करके भाजपा रोहतक सीट उसी के लिए छोड़ दे!
हिसार का पेंच भी अभी फँसा हुआ है। यहाँ काँग्रेस से आए विधायक रणबीर गंगवा का टिकट पक्का मन ज़् रहा था। परन्तु अब भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला को मैदान में उतारने की संभावना भी व्यक्त की जा रही है।हिसार से केंद्रीय इस्पात मंत्री बीरेंद्र सिंह के आईएएस पुत्र बृजेन्द्र सिंह को भी टिकट दिलवाने की कोशिश में हैं। वे बृजेन्द्र के लिए सोनीपत या हिसार से टिकट माँग रहे थे लेकिन सोनीपत से रमेश कौशिक फिर से बाज़ी मार गए और हिसार से भी अन्य प्रत्याशी रेस में आगे बताए जा रहे हैं। ऐसे में संभवतः बृजेन्द्र को राजनीति में पदार्पण करने के लिए थोड़ा और इंतज़ार करना पड़े।
हरियाणा में भाजपा मुख्यधारा की तीनों बड़ी पार्टियों (काँग्रेस, भाजपा, जजपा) में सबसे पहले प्रत्याशियों की घोषणा कर राजनीतिक बढ़त हासिल करने में सफल रही है। भाजपा के पक्ष में यह भी जाता है कि केन्द्र सरकार की तमाम कमज़ोरियों के बावजूद यहाँ मोदी मैजिक खत्म नहीं हुआ है। इसके अलावा 2016 की आरक्षण-हिंसा का असर भी जनमानस पर साफ असर दिखाई देता है। इन सबके बावजूद वर्तमान परिस्थितियों में हर सीट पर काँटे का मुकाबला होने के आसार हैं। ऐसे में पार्टी को 2014 वाली सफलता दोहराने के लिए काफ़ी मेहनत करनी होगी, यानी ‘बहुत मुश्किल है डगर पनघट की’।
पहला कारण : बालकोट हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक के बावजूद मोदी लहर 2014 वाली नहीं दिखती। उस समय लोगों ने काँग्रेस के रिपोर्ट कार्ड पर फैसला दिया था।काँग्रेस के भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता को मोदी से बड़े बदलावों की उम्मीद थी। इसके विपरीत अब लोग मोदी सरकार के 5 साल के शासन को प्रत्यक्ष देख चुके हैं। आँकड़ों तथा ज़मीनी स्तर के माहौल की बात करें तो पाएँगे की मोदी सरकार 2014 में किए गए अधिकतर मुख्य वायदे पूरे नहीं कर पाई। इसके अलावा बेरोज़गारी, महंगाई, जीएसटी और नोटबन्दी जैसे कदमों से युवाओं, गृहणियों, किसानों, छोटे व्यापारियों आदि मध्यवर्ग के एक बड़े हिस्से में निराशा व्याप्त है।
राज्य सरकार में काम न होने के कारण निचले स्तर के कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी भी पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है। हालांकि पार्टी ने मेयर चुनावों तथा जींद उपचुनाव में जीत हासिल की है और तीव्र जातीय ध्रुवीकरण के दम पर गैर-जाट वोटरों को अपने साथ जोड़ने में सफलता पाई है। परन्तु आम चुनावों की बदली हुई परिस्थितियों में यह प्रयोग कितना सफल हो पाएगा, कहना मुश्किल है।
दूसरा कारण : अपने-अपने क्षेत्रों में सक्रिय न रहने के कारण अधिकतर भाजपा सांसदों के प्रति जनाक्रोश दिखाई देता है। फरीदाबाद से कृष्णपाल गुज्जर और भिवानी-महेन्द्रगढ़ से धर्मवीर सिंह को तो ग्रामीणों के ज़बरदस्त विरोध का सामना भी करना पड़ा है। तीन बार सांसद रहे भाजपा के रामचंद्र बैंदा के समर्थक गुज्जर का भारी विरोध कर रहे हैं। यहाँ पार्टी प्रभारी कलराज मिश्र की कार्यकर्ताओं को धमकाने वाली वीडियो भी वायरल हुई है। इसका नुकसान भी निःसंदेह गुज्जर को भुगतना पड़ेगा। यही हाल पिछले चुनाव में सवा लाख से अधिक वोटों से जीते धर्मवीर का है। पहले राज्य सरकार पर अनदेखी का आरोप लगाकर उन्होंने लोकसभा चुनाव न लड़ने की बात की थी। लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक के बाद उन्होंने फिर से लोकसभा चुनाव में उतरने का मन बनाया। उन्हें राज्य स्तरीय नेताओं, स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं और आम जनता से दूरी का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
सोनीपत के सांसद और वर्तमान प्रत्याशी रमेश कौशिक भी पहले चुनाव लड़ने के मूड में नहीं थे।मात्र 77414 वोटों से जीते रमेश कौशिक को निःसंदेह विपक्ष से और कड़ी टक्कर मिलने वाली है। इस जाटबहुल सीट पर काँग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को उतरे जाने के अनुमान लगाए जा रहे हैं।
चुनावी सर्वेक्षणों में रोहतक के अलावा अम्बाला सीट पर भी काँग्रेस को मजबूत स्थिति में बताया जा रहा है। हालांकि यहाँ वाममोर्चे के अरुण कुमार और बसपा-लोसुपा के नरेश सारन की उपस्थिति भाजपा के रतनलाल कटारिया के लिए राहत की बात कही जा सकती है। सिरसा से भाजपा ने सुनीता दुग्गल को मैदान में उतारा हैजो पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं। यहाँ से प्रदेश काँग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर के चुनाव लड़ने की संभावना है। इस सीट पर अभी तक भाजपा अपना खाता भी नहीं खोल पाई है जबकि अशोक तंवर यहाँ से सांसद रह चुके हैं। देवीलाल परिवार का अच्छा प्रभाव होने के कारण यहाँ से जजपा उम्मीदवार भीजीत की उम्मीद के साथ उतरेगा। ऐसे में निःसंदेह सुनीता दुग्गल को सीट निकालने के लिए ऐड़ी-चोटी का सर लगाना होगा।
कुरुक्षेत्र में इस बार त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं। कुरुक्षेत्र में लोसुपा अध्यक्ष राजकुमार सैनी का अच्छा प्रभाव है। यदि वे खुद मैदान में उतरते हैं तो दंगल बड़ा दिलचस्प रहेगा। परन्तु इससे सैनी वोटों में जो बिखराव होगा, उसका फायदा काँग्रेस के संभावित उम्मीदवार नवीन जिंदल को भी मिल सकता है। हाँ, गुड़गाँव में राव इंद्रजीत और करनाल में मुख्यमंत्री के विशेष प्रभाव के चलते ये सीटें अभी तक भाजपा के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित नज़र आती हैं।
कुल मिलाकर सारा दारोमदार मोदी मैजिक की सफलता पर है। यदि राज्य में भाजपा पहले की तरह गैर-वोटों को अपने पक्ष में एकजुट रखने में कामयाब हो जाती है और राष्ट्रवाद, राममंदिर, कश्मीर तथा पाकिस्तान-विरोध जैसे भावनात्मक मुद्दों पर मतदान होता है तो निःसंदेह पार्टी फायदे में रहेगी। भाजपा को सामान्य वर्ग (सवर्ण मानी जाने वाली जातियों) के गरीबों के लिए आरक्षण का प्रावधान करने का फायदा भी मिलने की संभावना है। लेकिन यदि इसके विपरीत काँग्रेस के 20% गरीबों को सालाना 72000 रुपये देने, 34 लाख नौकरियाँ देने, मनरेगा के तहत 100 की बजाए न्यूनतम 150 दिन काम देने, शिक्षा पर जीडीपी का 6% खर्च करने जैसे वायदे क्लिक कर गए तो हरियाणा के नतीजे बड़े चौंकाने वाले हो सकते हैं। काँग्रेस ने केन्द्र सरकार की नौकरियों में महिलाओं को 33% आरक्षण देने की बात से महिला वोटरों को तथा नौकरियों के लिए फर्मों की फीस खत्म करने का वायदा कर पढ़े-लिखे युवाओं को साधने का प्रयास भी किया है। जजपा उम्मीदवारों की घोषणा भी निःसंदेह भाजपा की जीत समीकरणों को प्रभावित करेगी।
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