सरबजीत सोही
गुस्ताखी माफ करना गुरु जी!
मैं कहना तो नहीं चाहता,
पर हर जन्म में आपने छला है,
मेरी प्रतिभा को,
कभी शुद्र का सूत कह कर
तो कभी गुरु दक्षिणा के नाम पर
मेरे हाथ के अंगूठे की बलि ले कर!
मैं आप के विरुद्ध नहीं हुआ
मैं आप के कहे से बाहर नहीं हुआ
निशाना मेरा भी कारगर है
तीर तो मेरा भी नहीं चूकता
पर आपने हमेशा ही
मेरी काबलियत को नजरंदाज किया
करने अर्जुन को श्रेष्ठ…
मेरी कला को अपाहिज किया है !
लेकिन अब मैं उतरुंगा
कुरुक्षेत्र की रणभूमि में!
खुद की रक्षा के लिए
अपनी काबलियत की नुमाईश के लिए
चाहे अर्जुन ने थामी हो अभी
सिफारिशों की ढाल…
भले ही पहना हो,
रिश्वत का मजबूत कवच…
मैं चीर कर रख दूंगा,
सरकारी बख्शीस के जिरहबख्तर !
मैं नाकाम कर दूंगा,
दरबारी खुशामद के सारे अस्त्र!
जिंदगी बहुत लंबी है,
परीक्षा कभी भी हो सकती है,
जब भी गुरुकुल के बाहर हुई परख
मैं साबित कर दूंगा
कौन शूरवीर है अपने समय का!
गुस्ताखी माफ करना गुरु जी!
मैं कहना तो नहीं चहाता…
पर आपने हर जन्म में छला है
मेरी प्रतिभा को!
सरबजीत सोही
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पंजाबी से अनुवाद – अर्शदीप सिंह