मनजीत भोळा
इश्क़-विश्क, प्यार-व्यार की बात करणीया कोन्या मैं
जड़ै दीखज्या ज़ुल्फ़ उड़ै ए रात करणीया कोन्या मैं
ना परचम ना कोए पार्टी ना लड़ता मैं निशानां पै
कलमकार हूँ कलम से हमला करता हूँ शैतानां पै
मंदिर मस्ज़िद नाम जिनके चढ़ूँ ना उन दुकानां पै
मानवता तै बाध भरोसा नहीं मनै भगवानां पै
राजभवन म्हं मोड्यां की जमात करणीया कोन्या मैं
जड़ै दीखज्या ज़ुल्फ़ ….
कोए आसिफा जब रोवै सै रूह डाटे तै डटती ना
एक बेटी का बाप सूँ मैं चिंता चित की मिटती ना
एक आधी ए रात इसी जा जिसमें नींद उचटती ना
सोच की कोए सीमा ना कित कित या भटकती ना
सरल सभा सै काबू म्हं ख़यालात करणीया कोन्या मैं
जड़ै दीखज्या ज़ुल्फ़ ….
बुरा बुरे नै कह सकूँ ना मैं इतणा भी लाचार नहीं
देख हक़ीक़त नज़र फेरलयूँ बिकाऊ पत्रकार नहीं
छोडकै घर नै खुशहाली का बाहर करूं प्रचार नहीं
चोरां गैल्यां करूं दोस्ती इसा मैं चौकीदार नहीं
कुछ कहो रै घाल किसेके जज़्बात करणीया कोन्या मैं
जड़ै दीखज्या ज़ुल्फ़ ….
सरहद पै तैनात रहणीया मैं सेना का जवान हूँ
चीर कै धरती अन्न उपजाऊँ खेतां म्हं किसान हूँ
कुरान कोए आयत ना रै ना मैं गीता का ज्ञान हूँ
सबनै दे सम्मान एकसा वो भारत का संविधान हूँ
मनजीत भोळा धर्म देखकै दुभात करणीया कोन्या मैं
जड़ै दीखज्या ज़ुल्फ़ ….
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