मोहल्ला द्रोह- हरभगवान  चावला

हरभगवान चावला

(हरभगवान चावला सिरसा में रहते हैं। हरियाणा सरकार के विभिन्न महाविद्यालयों में  कई दशकों तक हिंदी साहित्य का अध्यापन किया। प्राचार्य पद से सेवानिवृत हुए। तीन कविता संग्रह प्रकाशित हुए और एक कहानी संग्रह। हरभगवान चावला की रचनाएं अपने समय के राजनीतिक-सामाजिक यथार्थ का जीवंत दस्तावेज हैं। सत्ता चाहे राजनीतिक हो या सामाजिक-सांस्कृतिक उसके चरित्र का उद्घाटन करते हुए पाठक का आलोचनात्मक विवेक जगाकर प्रतिरोध का नैतिक साहस पैदा करना इनकी रचनाओं की खूबी है। इन पन्नों पर हम उनकी कविताएं व कहानियां प्रकाशित कर चुके हैं इस बार प्रस्तुत है उनकी लघु कथाएं – सं.)

मोहल्ले में चारों तरफ गंदगी बिखरी थी। एक युवक चिल्लाया,” सुनो मेरे मोहल्ले के लोगो! हमारे मोहल्ले में फैली गंदगी के कारण हम सब का जीना मुश्किल हो गया है। आओ हम सब मिलकर मोहल्ले को गंदगी से मुक्त कर दें।” कुछ लोग घरों से बाहर निकले उनके हाथों में लाठियाँ थीं, आँखों में नफ़रत, होठों पर गालियाँ। युवक को किसी ख़तरे की आशंका हुई। इससे पहले कि वह भाग पाता, भीड़ ने उस पर हमला कर दिया। होश में आने पर उसने पाया कि वह एक चारपाई पर लेटा है, उसके शरीर पर पट्टियां बंधी हैं। उसके आसपास वही लोग जमा हैं, जिन्होंने उस पर हमला किया था। अलबत्ता इस बार उनके हाथों में हथियार नहीं थे। हाँ, आँखों में नफ़रत ज्यों की त्यों छलकी पड़ रही थी।

       “हां तो समाज सुधारक महोदय, कैसे मिज़ाज हैं आपके?” उनमें से एक ने पूछा।

     “मिज़ाज तो अच्छे हैं, पर मुझे यह समझ में नहीं आया कि मुझ पर हमला क्यों किया गया?”

    ” तुमने हमारे मोहल्ले पर उंगली उठाई है इसलिए।”
” वह मोहल्ला मेरा भी तो है, क्या गंदगी साफ करने के लिए कहना उंगली उठाना है?”

      ” क्या सिर्फ हमारा ही मोहल्ला गंदा है, दूसरा मोहल्ला तुम्हें क्यों नहीं दिखता?”

      ” दूसरे मोहल्ले में अगर गंदगी है तो वहां के लोग आवाज़ उठाएँ, हमें पहले अपने मोहल्ले को देखना चाहिए।”

        ” इसी को मोहल्ला द्रोह कहते हैं और इसी द्रोह की सज़ा तुम्हें मिली है। तुम्हें गंदगी दिखी, मोहल्ले की अच्छाइयाँ नहीं दिखीं। तुम्हें क्या मालूम नहीं कि हमारे मोहल्ले में लोग पशुओं तक से प्यार करते हैं (और इंसानों से नफ़रत- उसने सोचा), भंडारे चलाते हैं, भक्तों पर पुष्प वर्षा करते हैं।”

        ” यह सब तो ठीक है, पर गंदगी और बदबू और पाखंड… ओफ्फ़… मेरा दम घुटता है, आपका नहीं घुटता?”

  ” हमारा तो नहीं घुटता। बड़ा आया दम घुटने वाला! यह मोहल्ला तुम्हें गंदा लगता है तो दूसरे मोहल्ले में चले जाओ।”

         ” पर वह मोहल्ला भी तो इतना ही गंदा है। बेहतर हो कि हम मोहल्लों को इंसानों के रहने लायक बनाएँ, गंदगी से गंदगी की तुलना क्यों करें?”

      ” ज़्यादा उपदेश देने की ज़रूरत नहीं है। यहाँ रहना है तो यहां की परंपराओं का सम्मान करना सीखो। फिर कभी मोहल्ले के बारे में कुछ कहा तो घुटने के लिए दम बचेगा ही नहीं।”

          लोग चले गये थे ।उसने सोचा, क्यों न उन लोगों की तरह गर्व ही किया जाए । उसने कल्पना की कि वह एक भक्त है । दूर दराज के तीर्थ स्थल से लौटा है । लोग उसकी जय-जयकार कर रहे हैं । उसपर हेलिकॉप्टर से फूल बरसाए जा रहे हैं । उसने उन फूलों की सुगंध अपने भीतर भर लेने के लिए एक लंबी साँस ली और उसे बहुत ज़ोर की उबकाई आ गई ।

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