हरभगवान चावला
(हरभगवान चावला सिरसा में रहते हैं। हरियाणा सरकार के विभिन्न महाविद्यालयों में कई दशकों तक हिंदी साहित्य का अध्यापन किया। प्राचार्य पद से सेवानिवृत हुए। तीन कविता संग्रह प्रकाशित हुए और एक कहानी संग्रह। हरभगवान चावला की रचनाएं अपने समय के राजनीतिक-सामाजिक यथार्थ का जीवंत दस्तावेज हैं। सत्ता चाहे राजनीतिक हो या सामाजिक-सांस्कृतिक उसके चरित्र का उद्घाटन करते हुए पाठक का आलोचनात्मक विवेक जगाकर प्रतिरोध का नैतिक साहस पैदा करना इनकी रचनाओं की खूबी है। इन पन्नों पर हम उनकी कविताएं व कहानियां प्रकाशित कर चुके हैं इस बार प्रस्तुत है उनकी लघु कथाएं – सं.)
” यह क़ानून क्या होता है गुरुदेव?”
” सबसे ताकतवर राजनीतिक दल के मुखिया की मंशा को क़ानून कहते हैं वत्स!”
” और नैतिकता गुरुदेव!”
” तुमने डायनासोर का नाम सुना है?”
” जी गुरुदेव वह एक खतरनाक प्राणी था। अब यह प्रजाति लुप्त हो चुकी है।”
” डायनासोर की तरह नैतिकता भी आदिम युग से चली आ रही एक ख़तरनाक बीमारी है, जिसका विषाणु कभी पूरी तरह समाप्त नहीं होता। इस विषाणु को मारने के प्रयास भी आदिम युग से ही किए जा रहे हैं, पर युद्ध स्तर पर इससे निपटने की कोशिश पिछली सदी से ही आरंभ हुई। अब काफ़ी हद तक इस पर काबू पाया जा चुका है। जल्द ही देश को नैतिकता मुक्त घोषित कर दिया जाएगा।”
” ठीक वैसे ही न गुरुदेव जैसे चेचक मुक्त, प्लेग मुक्त, पोलियो मुक्त, खुले में शौच मुक्त आदि?”
” हाँ, ठीक उसी तरह। जिस व्यक्ति को नैतिकता की बीमारी होगी, उसे क़ानून सख्त सज़ा देगा।”
” ईश्वर आपकी रक्षा करें। मुझे आप में इस बीमारी के जीवाणु दिखाई देते हैं। बचकर रहिएगा गुरुदेव, आजकल क़ानून पूरी सख्ती से लागू किए जा रहे हैं।”