हरभगवान चावला
(हरभगवान चावला सिरसा में रहते हैं। हरियाणा सरकार के विभिन्न महाविद्यालयों में कई दशकों तक हिंदी साहित्य का अध्यापन किया। प्राचार्य पद से सेवानिवृत हुए। तीन कविता संग्रह प्रकाशित हुए और एक कहानी संग्रह। हरभगवान चावला की रचनाएं अपने समय के राजनीतिक-सामाजिक यथार्थ का जीवंत दस्तावेज हैं। सत्ता चाहे राजनीतिक हो या सामाजिक-सांस्कृतिक उसके चरित्र का उद्घाटन करते हुए पाठक का आलोचनात्मक विवेक जगाकर प्रतिरोध का नैतिक साहस पैदा करना इनकी रचनाओं की खूबी है। इन पन्नों पर हम उनकी कविताएं व कहानियां प्रकाशित कर चुके हैं इस बार प्रस्तुत है उनकी लघु कथाएं – सं.)
राजा ने अपनी भव्य प्रतिमा लगवाई और उस पर खुदवाया- महाप्रतापी, जननायक, दूरदर्शी । इतिहास उधर से गुजरा, प्रतिमा को देखा, हँसा और चिल्लाया- महाकपटी, अहंकारी, हत्यारा। पक्षियों ने इन शब्दों को लपक लिया। पक्षियों ने एक गीत बनाया और अपने बच्चों को गाकर सुनाने लगे। गीत का मुखड़ा था- प्यारे बच्चो, बचकर रहना, यह राजा हत्यारा है। राजा ने यह गीत सुना। उसे बहुत गुस्सा आया। कुछ पक्षी मार डाले गए पर गीत था कि गूंजता ही रहा। राजा इस सब के पीछे बूढ़े इतिहास के शब्दों को ही जिम्मेदार मानता था। राजा इतना शक्तिशाली था कि बड़े-बड़े विद्वानों, कवियों , कलाकारों, चिंतकों, धनवानों को अपने चरणों पर झुका चुका था… पर यह बूढ़ा इतिहास अब तक क़ाबू में नहीं आया था। उसने इतिहास- ग्रंथों की स्याही बदलवा दी, लिपि बदलवा दी, तिथियाँ तक बदलवा दीं, फिर भी इतिहास की हँसी बरबस उसके कानों में घुस जाती। उसे बार-बार सुनाई पड़ता- महाकपटी, अहंकारी, हत्यारा। ऊपर से महल की छत पर आकर गाते पक्षियों का गीत उसे असहज कर देता। एक दिन राजा के सब्र का बाँध टूटा। उसके भीतर का हत्यारा बेकाबू हो गया। लोगों ने देखा- राजा की प्रतिमा के ठीक पीछे बूढ़ा इतिहास कीचड़ में औंधे मुंह पड़ा था। अब राजा निश्चिंत था। कुछ दिन बाद लोगों ने एक और नज़ारा देखा- राजा की प्रतिमा कीचड़ में पड़ी थी। इतिहास की आवाज गूँज रही थी- महा कपटी, अहंकारी , हत्यारा। थोड़ी देर बाद पक्षियों का झुंड गाने लगा- प्यारी जनता बच कर रहना, यह राजा हत्यारा है।