(आर. डी. आनंद, भारतीय जीवन बीमा निगम, फैज़ाबाद में उच्च श्रेणी सहायक हैं। कवि व आलोचक के रूप में स्थापित हैं। दलित समीक्षा में विशिष्ट पहचान है। उनकी 30 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। )
कर्म-फल
मैं कौन हूँ
पुजारी हूँ
तुम कौन हो
आराधक हो
तुम्हें प्रतिदिन मन्दिर में
इन पत्थरों के सामने
सुबह-सुबह स्नान कर
हाथ जोड़ स्तुति करनी है
फल तो तुम्हें मिलेगा ही
कुछ दिन बाद तेरा घर
धन-धान्य से भर जाएगा
मकान पक्का हो जाएगा
तेरा बेटा नौकरी पा जाएगा
बेटी डॉक्टर हो जाएगी
पड़ोसी तुझसे सीखेगा
बगल वाला उससे सीखेगा
गाँव वाले पुण्य-फल देखेंगे
जमाने में शोर हो जाएगा
उनका अनुराग इन पत्थरों में
ईश दर्शन करेगा
मंदिर का गृह गर्भ रुपहला
और देवता सुनहले हो जाएंगे
भूभाग का विस्तार होगा
मिट्टी का कण-कण आशीर्बाद देगा
भीड़ बढ़ जाएगी
नौकर बढ़ा देंगे
प्रबंधन समिति का अध्यक्ष
डिमेंसिया वाला हो तो उत्तम
हम-तुम पूँजी के बराबर के हिस्सेदार होंगे
अमृत सागर की दीवारों से संजय
हमेशा अनुवाद
कक्ष में प्रेषित करता रहेगा
मोरनियों के पर
हिरनियों की आँखे
हस्तिनी की चाल
सुराही की गर्दन
उर्वसी का सरापा
ईष्ट के लिए
अभीष्ट रहेंगे।
ऊँचे पहाड़ मुर्दाबाद
चोटी नुकीली है
और पहाड़ बहुत ऊँचा है
वनों का साम्राज्य सघन है
घाटियाँ फूलों से भरी हैं
खाइयां अंधेरों से और गहरी हो गई हैं
जुगनुओं के चमकने से
पूरा आकाश सूर्य से भर उठता है
जानवर रभांते हैं
लेकिन उछल-कूद कर वे
चोटी को उसकी औकात बता देते हैं
फिर भी पहाड़
अपनी गरिमा के वर्चस्व पर
एक कुटिल मुस्कान छोड़ता ही है
पैर के सामानांतर खड़ा
ब्रह्माण्ड से भी बड़ा तुच्छ मानव
चोटी पर विजय की रुपरेखा नहीं तय करता है
ऊँचे पहाड़ मुर्दाबाद का जयकारा लगाता रहता है।
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