बाम्हनों के स्वार्थी ग्रंथों की चतुराई के बारे में

जोतिबा फुले

यह          लेप की गरमी में अंगडाई ले सोवे।
नींद कहां से आवे। आलसी को।।
वह          ओस से भीगी खेत की मेंड पर।
बैलों को चराता वह। शुक्रोदय में।।
यह          गर्म पानी से स्नान करके मुटका तन पर लपेटता।
पीढे बैठ संध्या करता। मौन में सुखी।।
वह          ठीक ठाक करता हुआ गाड़ी को हल को।
जोड़ता टूटी रस्सी को। बटता बैठा वह।।
यह        पांवों में चमकीला जूता। लांगदार काछी धोती।
सिर पर भारी पगड़ी वाला। ढेरों कपड़े तन पर।।
वह      लंगोटी बहादुर वह उधरे नंगे बदन का।
चिंदी की पगड़ी वाला। कंबल मोटा झोटा।।
यह      अन्न शुद्धि हित वह मिलाता घी चावल में।
करता नाना विधियां। चित्राहुति भी।।
यह     ज्वारी की कनकी छाछ मिला पेट भरे।
चैन सुख कैसे मिले। खेतीहर को।।
वह      तकिये से लगाये टेका काम बस लिखने का।
बोली में गर्व भरा। मानों भैंसा मोटा।।
यह     नंगे पैरों है चलता हल की मूठ हाथ में ले।
हांकता बैलों को है। गीत गाते-गाते।।
वह   थाल और पीकदान, चमचमाता दीपक है।
द्विज निद्रा में खोया है। बिछौने में।।
यह   सुखी तंबाकू में चूना मिला कर खाता।
गहरी नींद सोता। मोटे कंबल पर।।
वह   अवयवों और बुद्धि में जब दोनों समान हैं।
ब्राह्मण क्यों हुआ है। सुखी इतना।।
यह   सत्ता के घमंड में लगायी पाबंदी विद्या पर।
शूद्र चला किये आज्ञा पर। सदा सर्वदा।।

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