कौण कड़ै ताहीं तरै आडै कौण कड़ै कद बहज्या- विक्रम राही

विक्रम राही
कौण कड़ै ताहीं तरै आडै कौण कड़ै कद बहज्या
बालू बरगी भीत समझले कौण जमै कौण ढहज्या
समो समो का मोल बताया पर समो आवणी जाणी
किसे समो रहया फैदे गिणता कदे अगतआली हाणी
पणवासी का चाँद चढै पर ढलता ढलता वो भी गहज्या
ठाढे माणस कई ढाल के कोए तन मैं कोए धन मैं
हीणे का ले जर खोस कोए भी आकड़ ठाढेपन मैं
दिल का ठाढा उसनै जाणो जो हक की खातिर फहज्या
महल अटारी देश परगने घर गाम छोड़कै जाणा हो
छल कपट धोखे ठग्गी तै कै दिन खातिर खाणा हो
आपाधापी का जोडया सब धरया धराया धन रहज्या
प्यार प्रेम तै गुजर बसर हो हो माणस नै माणस प्यारा
माणस कीहो माणस दवा फेर जात धर्म का क्यों नारा
विक्रम राही बोल प्यार के कुछ सुणले कुछ खुद कहज्या ।

0 Votes: 0 Upvotes, 0 Downvotes (0 Points)

Leave a reply

Loading Next Post...
Sign In/Sign Up Sidebar Search Add a link / post
Popular Now
Loading

Signing-in 3 seconds...

Signing-up 3 seconds...