विक्रम राही
साथ चांदडे माणस का दिया होया तंग करज्यागा
जीण जोग भी खामैखा तो बिन आई मैं मरज्यागा
चतुर चलाक बेशर्म आदमी सदा मीट्ठे चोपे लावैगा
कई तरियां के बणा भेष वो रोज बीच मैं आवैगा
मतलब काढ लिकड़ लेगा तनै डूबोकै तर ज्यागा
चिकणी चुपड़ी करै बात शातिर सै वो बहोत घणा
थारी खातिर अवतार धरया साच्ची देगा थारै जणा
तम मासूम इतने सो कहया होया सब जर ज्यागा
आपस मै लटठ बजा रोज उसकी खातिर पाटोगे
उसकी चाल समझावैगा जो उसनै तो तम नाटोगे
मोह का जाल बुणया इसा के थारा पेटा भरज्यागा
मानण खातिर तैयार नहीं तु लूटण आया रहनूमां
कुछ भी पास नहीं रहैगा फेर टूटैगा सुण तेरा गुमां
विक्रम राही रहे बख्त तक कैसे यार संभलज्यागा