विक्रम राही
झूठ फरेब छल बेगैरत का ना कती सहारा चाहिए
मनै प्यार प्रेम और भाईचारे तै मेल गुजारा चाहिए
ढोंग रचाकै यारी ला लें पाप भरया हो नस नस मैं
मीठा बणकै भीतर घुसज्या जीभ भीज री ज्यूं रस मैं
टैम लागते छल करज्या वो ज्यान तै ना प्यारा चाहिए
वै माणस रहे घाटे मैं जिनै पहलम बात बिचारी ना
मतलब गैल्यां यार घणे उरै बेमतलब की यारी ना
जुणसी पहलम खा राखी वा ना चोट दुबारा चाहिए
शातिर नै लियो ताड़ टैम तै भोले गैल्यां लियो निभा
दबे कुचले माणस के संग मैं ठीक मिलैगा तेरा सुभा
विक्रम राही जड़ अपणी तै कदे नहीं किनारा चाहिए
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