झूठ कै पांव नहीं होते- मंगत राम शास्त्री

मंगतराम शास्त्री
झूठ कै पांव नहीं होते
सदा जीत ना होया करै छल कपट झूठ बेईमाने की
एक न एक दिन सच्चाई बणती पतवार जमाने की
झूठ कै पांव नहीं होते या दुनिया कहती आवै
भुक्खे की जा बोहड़ कदे झूठे की ना बोहड़ण पावै
मुंह की खावै पकड़ी जा जब असली नब्ज बहाने की
सौ सौ झूठ बोल करता कौशिश एक झूठ छिपाने की
बेईमान माणस के मन में सारी हांणा चोर रहै
उडूं पुडूं रहै भीतरले में बंध्या चुगर्दे भौर रहै
हरदम टूटी डोर रहै विश्वास के ठोर-ठिकाने की
ईमानदारी सबते आच्छी नीति नेम पुगाने की
कपटी माणस छल करकै ठग चोर जुआरी बणया करै
सदा एकसी समो रहै ना दूध अर पाणी छणया करै
उल्टी गिनती गिणया करै जो मंजल तक पहुँचाने की
उसकै बरकत ना होती या साच्ची बात रकान्ने की
बेशक आज इसा लाग्गै जणू होरयी हार सच्चाई की
क्युंके ताकत खिंडी पड़ी सै चारों ओड़ अच्छाई की
चाबी नेक कमाई की तह खोलै ख़ैर -खज़ाने की
कहे मंगतराम जरूरत सै आज सच्चाई संगवाने की

Avatar photo

Author: मंगत राम शास्त्री

जिला जीन्द के टाडरथ गांव में सन् 1963 में जन्म। शास्त्री, हिन्दी तथा संस्कृत में स्नातकोतर। साक्षरता अभियान में सक्रिय हिस्सेदारी तथा समाज-सुधार के कार्यों में रुचि। अध्यापक समाज पत्रिका का संपादन। कहानी, व्यंग्य, गीत विधा में निरन्तर लेखन तथा पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन। बोली अपणी बात नामक हरियाणवी रागनी-संग्रह प्रकाशित।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *