मंगतराम शास्त्री
सासड़ होल़ी खेल्लण जाऊंगी, बेशक बदकार खड़े हों।
री मनै पकड़ना चावैंगे, जाणूं सूं जाल़ बिछावैंगे
ना उनकै काबू आऊंगी, कितनेए हुशियार खड़े हों।
हेरी इसा कोरड़ा मारूंगी, देही तै चमड़ी तारूंगी
मैं कती नहीं घबराऊंगी, चाहे थानेदार खड़े हों।
री वें बात करैंगे मन की, मरोड़ करैंगे धन की
री मैं आप कमा कै खाऊंगी, चाहे साहूकार खड़े हों।
चाहे बोल्लो वें बोल जहरीले, पर मैं गाऊंगी गीत सुरील्ले
री दिल चोरी करकै ल्याऊंगी, चहे चौकीदार खड़े हों।
हेरी सासड़ ना घबरावै, तनै नहीं उलाहणा आवै
मैं प्रीत के रंग लगाऊंगी, बेशक तड़ीपार खड़े हों।
री मैं नहीं एकली जाय री, खड़तल मेरी गेल खड़्या री
री मैं सबनै धूल़ चटाऊंगी, चाहे डार की डार खड़े हों।
