[youtube https://www.youtube.com/watch?v=lH4i0mf9kgI&w=560&h=315]
कब तक दबाओगे खोलते हुए लावे को ?
भिंचे हुए जबड़े दर्द कर रहे हैं
कितनी देर तक दबाया जा सकता है
अंतर्मन में खौलते लावे को
किसी भी पल खोपड़ी क्रियेटर में बदल जाए
उस से पहले जानलेवा ऐंठन को
लोमड़ी की पूंछ से बांध कर दाग देना होगा
हमले से बढ़ कर हिफाजत की कोई रणनीति नहीं
बेकार है यह सवाल कि संगीन किस कारखाने में ढली है
फर्क पड़ता है सिर्फ इस बात से
कौन सा हाथ उसे थामे है
और किसका सीना उसकी नोक पर है
फर्क तो पड़ता है इस बात से
कि उस जादूनगरी पर किसका कब्जा है
जहां रात दिन पसीने की बूंदों से
मोतियों की फसल उगाई जाती है
मानवता के धर्म पिता
न्याय और सत्ता का
मंत्रालय कंप्यूटर को सौंप कर आश्वस्त है
वही निर्णय लेगा निहत्थी बस्तियों पर गिराए गए टनों नापाक बम
या फिर तानाशाह की बुलेट प्रूफ कार पर फेंका गया हथगोला
इन्सानियत के खिलाफ
कौन सा जुर्म ज्यादा संगीन है
दरअसल इंसाफ और सच्चाई में
इंसानी दखल से संगीन कोई जुर्म नहीं
ताकत बंदूक की फौलादी नली से निकलती है
या कविता के कागजी कारतूस से
जिसके कोश में कहने का अर्थ है होना और होने की शर्त लड़ना
उसके लिए शब्द किसी भी ब्रह्म से बड़ा है
जो उसके साथ हर मोर्चे पर खड़ा है
खतरनाक यात्रा के अपने आकर्षण हैं
और आकर्षक यात्रा के अपने खतरे
इन्हीं खतरों की सरगम से ऐ दोस्त
निर्मित करना है हमें दोधारी तलवार जैसा अपना संगीत
भिंचे हुए जबड़े अब दर्द कर रहे हैं
कब तक दबाओगे खोलते हुए लावे को
1984 में एक फिल्म बनी थी ‘ द पार्टी’।उसके आरंभ में यह कविता थी. The Party 1984