रात का दश्त है जलता है तो जल जाने दो- आबिद आलमी

रात का दश्त है जलता है तो जल जाने दो
यूँ भी यह राह से टलता है तो टल जाने दो

ऐन मुमकिन है कि मिल जाए कोई संगतराश
उन पहाड़ों से मुझे थोड़ा फिसल जाने दो

और कुछ देर ज़रा ज़ख्मों को ढांपे रक्खो
यह हवा अच्छी नहीं इस को निकल जाने दो

यह सदाओं का कड़ा बोझ लरज़ता है अभी
बात करता हूँ, ज़रा मुझ को संभल जाने दो

अपने किस काम का, ए यारो, ये ठंडा सूरज
रात गर इसको निगलती है, निगल जाने दो

जान पहचान तो ख़ुद सुबह से हो जाती है,
रात बाक़ी है अभी, इसको तो ढल जाने दो

अब के दरयाओं ने सहरा पे लगाई है नज़र
और कुछ बर्फ़ पहाड़ों पर पिघल जाने दो

राज़ की बात भी कर लेंगे, कि जल्दी क्या है
पहले ‘आबिद’ को तो महफ़िल से निकल जाने दो

Avatar photo

Author: आबिद आलमी

परिचय आबिद आलमी का पूरा नाम रामनाथ चसवाल था। वो आबिद आलमी नाम से शायरी करते थे। उनका जन्म गांव ददवाल, तहसील गुजरखान, जिला रावलपिंडी पंजाब (पाकिस्तान) में हुआ। उन्होंने अंग्रेजी भाषा साहित्य से एम.ए. किया। वो अंग्रेजी के प्राध्यापक थे और उर्दू में शायरी करते थे। उन्होंने हरियाणा के भिवानी, महेंद्रगढ़, रोहतक, गुडग़ांव आदि राजकीय महाविद्यालयों में अध्यापन किया। वो हरियाणा जनवादी सांस्कृतिक मंच के संस्थापक पदाधिकारी थे। उनकी प्रकाशित पुस्तकें दायरा 1971, नए जाविए 1990 तथा हर्फे आख़िर (अप्रकाशित) आबिद आलमी की शायरी की कुल्लियात (रचनावली) के प्रकाशन में प्रदीप कासनी के अदबी काम को नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने आबिद की तीसरी किताब हर्फ़े आख़िर की बिखरी हुई ग़ज़लों और नज़्मों को इकट्ठा किया। ‘अल्फ़ाज़’ शीर्षक से रचनावली 1997 और दूसरा संस्करण 2017 में प्रकाशित। आबिद आलमी जीवन के आख़िरी सालों में बहुत बीमार रहे। बीमारी के दौरान भी उन्होंने बहुत सारी ग़ज़लें लिखीं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *