ओ. पी. सुथार – वर्तमान कृषि संकट और किसान आन्दोलन

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सिरसा में अखिल भारतीय किसान सभा के 34 वे राष्ट्रीय सम्मेलन तैयारी के लिए स्वागत समिति के गठन के अवसर पर ‘युवक साहित्य सदन’ के सभागार में  ‘वर्तमान कृषि संकट और किसान आन्दोलन’ विषय पर सेमिनार किया गया। इसकी अध्यक्षता किसान सभा के जिला प्रधान सुरजीत सिंह, जसवन्त सिंह पटवारी,पूर्व सरपंच गुलजारी लाल ढाका व नछत्र सिंह पूर्व सरपंच ने सयुंक्त रूप से की।  मुख्य वक्ता की हैसियत से बोलते हुए प्लांट पैथोलोजी के माहिर व अखिल भारतीय किसान सभा के राज्य उपाध्यक्ष डा.इन्द्रजीत सिंह थे। सेमिनार में किसानों के अतिरिक्त खेत मजदूर, कर्मचारी व समाज प्रबुद्ध नागरिकों ने हिस्सेदारी की। इस अवसर पर डा. सुभाष चन्द्र द्वारा लिखित पुस्तक ‘शहीद उधम सिंह की आत्मकथा और चुनिंदा दस्तावेज’  का विमोचन किया गया।

 वर्तमान कृषि संकट के लिए राजनैतिक कारण जिम्मेवार न कि प्राकृतिक कारण। हरियाणा में कृषि संकट और किसानों की हालत दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है! किसानों इस हालत के लिए नवउदारीकरण की दिवालिया नीतियां ही जिम्मेवार है जिसे 1990 के दशक में कांग्रेस ने लागू किया और अब भाजपा सरकार इन नीतियों को बड़े जोर शोर से लागू करती हुई आगे बढा रही है। इन्ही नीतियों के परिणामस्वरूप हरियाणा मे कृषि संकट दिनों दिन बढता जा रहा है, यंहा अन्य प्रदेशों की तरह किसान आत्महत्या कर रहे है।

                डा. इन्द्रजीत ने कृषि विशेषज्ञों की रिपोर्ट का हवाला देते कहा कि हरियाणा में एक एकड़ में नरमा उत्पादन करने के लिए 35663 रू की लागत आती है और आमदन होती है — 26544 रू की , इसी तरह से एक एकड़ में धान की उत्पादन लागत 48017 रूपये है और आमदन होती है 47043 रूपये की! इस तरह यहां के किसानों को दोनों फसलों के उत्पादन करने में हजारों रुपयों का घाटा उठाना पड़ता है !

                केन्द्र सरकार द्वारा इन दोनों फसलों का समर्थन मूल्य उत्पादन लागत को ही पूरा नही करता। भारतीय कृषि संकट को समझाते हुए कहा कि वर्ष 1947 से 1965 तक यहां ज्यादा पैदावार नही होती थी अनाज का विदेशों से शर्तों के आधार पर आयात करना पड़ता था। अमेरीकन गेहूं पर आयात पर अमेरीका ने भी अनेक शर्तें थोंपी थीं।

                दूसरे चरण (65 से 85 )जो कि हरित क्रांति था, फसलों का उत्पादन बढ़ा किसानों की हालात में कुछ सुधार नजर आने लगा, कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीकी का चलन बढा और उत्पादन के तौर तरीके भी बदले लेकिन कुछ समय उपरान्त फसलों के उत्पादन में ठहराव आ गया।

                तीसरे चरण 1990 – 91 के बाद उदारीकरण के दौर में सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव कृषि व अन्य क्षेत्रों पर पड़ा। विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की शर्तों के तहत कृषि क्षेत्र की सब्सिडी में कटौती की गई और खाद के कारखाने बन्द कर दिए गये। परिणामस्वरूप कृषि से संबंधित वस्तुओं का आयात बढा और मात्रात्मक प्रतिबंध हटा दिए गए।

                आर्थिक सुधार के नाम पर आर्थिक संकट संकट बढा परिणाम स्वरूप गैरबराबरी बढ गई, देश की 58 प्रतिशत धन दौलत पर 1 प्रतिशत परिवार ही काबिज है। कांग्रेस की बदनाम आर्थिक नीतियों को भाजपा ने तीब्र गति प्रदान की, हर मेहनतकश तबका उदारीकरण से प्रभावित है और पूरे देश को कार्पोरेटस द्वारा लूटने के लिए खुला छोड़ दिया। खाद बीज व स्प्रे पर नीजि कम्पनियों का कब्जा है।

                डा. सिंह ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि हरियाणा मे नीजि कम्पनियों 25000 करोड़ रूपये बीमा के नाम पर एकत्रित किए और 7000 करोड़ रुपये मुआवजा स्वरूप किसानों को बांटे है। हरियाणा में 60 प्रतिशत से ज्यादा लोग कृषि पर निर्भर है इसलिए ऐसी नीतियां खेती पर नही चल सकती।

                हरियाणा में भी किसानों के बीच भूमि के आधार पर वर्गीकरण मौजूद है! हरियाणा की सांख्यायिकी 2010-11 के आकड़ों के आधार पर 2 हैक्टेयर से कम वाले 67.58 प्रतिशत काश्तकारों के पास केवल 22.58 प्रतिशत कृषि भूमि का हिस्सा है। 2 से 5 हैक्टेयर वाले मध्यम दर्जे के 21. 93 प्रतिशत के पास 31.11 प्रतिशत भूमि है। 5 से 10 हैक्टेयर व 10 से अधिक भूमि वाले 11.77 प्रतिशत काश्तकारों के पास कुल कृषि भूमि का 46. 31 प्रतिशत हिस्सा है। डा. इन्द्र जीत सिंह ने कहा इन आंकड़ों से साफ जाहिर होता है कि नव-उदारीकरण की नीतियों के चलते हुए गत 20-25 वर्षों के दौरान जो प्रभाव पड़े हैं उनसे छोटे और भूमिहीन किसान सबसे गहरे रूप से प्रभावित हुए हैं।

                आने वाले दौर में विभिन्न किसान खेत मजदूर संगठनों, सामाजिक आन्दोलनों और विभिन्न धाराओं की ट्रेड यूनियनों तथा जन संगठनों को किसान आन्दोलन के नजदीक लाना होगा। इसलिए किसान सभा को स्वतन्त्र तौर पर संघर्ष के मोर्चे खोलने होंगे।

                इस सेमिनार मे उपस्थित जनों को सुरजीत सिंह, राजकुमार शेखुपुरिया, राजेन्द्र बालासर व डा.गुरचरण सिंह ने भी सम्बोधित किया। कार्यक्रम के अन्तिम स्तर मे किसानों, मजदूरों , कर्मचारियों व समाज के प्रबुद्ध नागरिकों को मिलाकर 81 सदस्यों की स्वागत समिति का गठन किया गया। सर्वसम्मति से जसवंत पटवारी को अध्यक्ष, कृपाशंकर त्रिपाठी को कोषाध्यक्ष व राजेन्द्र बालासर को सचिव चुना गया।

स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (सितम्बर-अक्तूबर, 2017),

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