करनाल : कर्ण नगरी से स्मार्ट सिटी – दुलीचन्द रमन

करनाल शहर ने इन 50 सालों में काफी बदलाव देखे हैं।  जिला सचिवालय, तहसील, सैशन कोर्ट अब नए स्थानों पर जा चुके हैं। शहर के सिनेमा घरों को अपनी चहल-पहल खोकर वीरान होते व बैंक्वेट हालों में तबदील होते देखा है। कभी के.आर. प्रकाश, इंदर पैलेस, अशोका व नावल्टी आबाद रहते थे, लेकिन आज केवल नावल्टी सिनेमा ही कामुक फिल्मों के सहारे अपना वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। अनेक निजी अस्पतालों ने भी अपने पैर पसार लिए हैं।

आज जब हम करनाल की ऐतिहासिक यात्रा पर नजर दौड़ाते हैं तो यह महाभारतकालीन शहर करनाल अपनी जड़ें इतिहास में तलाशता हुआ दानवीर कर्ण से जुड़ता है। कर्णताल, कर्ण झील, कर्ण पार्क, कर्ण स्टेडियम इसके प्रमाण हैं कि वर्तमान में भी यह अपनी पुरातन पहचान समेटे हुए है। कभी सुरक्षा की दृष्टि से चाक-चौबंद और किलेबंदी के रूप में करनाल शहर के पांच गेट अभी भी सलामत हैं। जिनमें बांसो गेट, जुंडला गेट, कलन्दरी गेट, कर्ण गेट व सुभाष गेट हैं। कभी करनाल इन्हीं गेटों में ही सिमटा शहर था, जिसमें एक बाजार होता था जो संकरी गलियों वाला भीड़भाड़ वाला सर्राफा बाजार था। पुराने ढर्रे की करियाने की दुकानें गुड़ मंडी और काठ मंडी तक सीमित थी।

सर्राफा बाजार जो कभी तंग गलियों में था। आज चौड़ा बाजार कहलाता है। लेकिन बढ़ती जनसंख्या के कारण चौड़ा बाजार की भीड़ में सिसकता रहता है।

शेरशाह सूरी मार्ग (जीटी रोड) कभी शहर के बीचों-बीच से गुजरता था। बढ़ती भीड़ के कारण जो बाद में बाईपास के रूप में बनाया गया। करनाल की फैलावट  ने तथाकथित बाहरी राष्ट्रीय राजमार्ग को भी अपनी आगोश में ले लिया, जिससे शहर फिर से दो हिस्सोंं में बंट गया। अब पुलों के निर्माण से शहर के दोनों भागों की धमनियों को जोड़ा गया है।

1 नवम्बर 1966 को जब हरियाणा प्रांत बना, तब करनाल हरियाणा के हिस्से के सात जिलों में एक था। जिसमें से बाद में 1966 में कुरुक्षेत्र तो 1989 में कैथल तथा 1992 में पानीपत जिला बन गया। शुरूआत में जब करनाल में नियोजित शहरीकरण की शुरूआत हुई तो हाउसिंग बोर्ड कालोनी तथा सैक्टर-13 का विकास होना शुरू हुआ। लोगों ने शुरू में ज्यादा रूचि नहीं दिखाई। केवल कुछ नौकरीपेशा मध्यम वर्ग तथा पुराने शहर के व्यापारी वर्ग ने ही इन सैक्टरों में अपने आशियाने बनाए। लेकिन जब उदारीकरण की हवा यहां के ग्रामीण इलाकों, सरकारी नौकरशाह तथा व्यापारी वर्ग को लगी तो इस सोये से शहर ने करवट लेना शुरू कर दिया। एक के बाद एक सैक्टर बनना शुरू हो गए। जितने भी प्रशासनिक अधिकारी करनाल में आए, ज्यादातर ने करनाल को अपना निवास स्थान बना लिया। देखते ही देखते इन महंगे सैक्टर्स की तरफ झांकना भी मध्यम वर्ग के बूते से बाहर की बात हो गई। लोग आशियाने की तलाश में कुकुरमुत्ते की तरह उग आई अवैध कालोनियों में जाने लगे। आज भी करनाल की करीब 50 अनाधिकृत कालोनियां मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।

इस दौरान करनाल के व्यापारिक प्रतिष्ठान भी तेजी से बढ़े। लिबर्टी जूतों का कारोबार देश-विदेश में फैल गया। ‘सुविधा’ एक दुकान से शुरू होकर एक ब्रांड व मॉल-संस्कृति का परिचायक बन गया। कुंंजपुरा रोड जो कभी वीरान सी सड़क थी वो आज देशी-विदेशी ब्रांड के शोरूम का बाजार बन गया।

करनाल को ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है। कृषि यंत्रों की मांग को पूरा करने के लिए  सैक्टर-3 इंडस्ट्रीयल ऐरिया में ऐसे सैंकड़ों कारखाने हैं।

करनाल के बीचोंबीच से बहने वाली मुगल नहर बाद में गंदे नाले में तबदील हो गई। करनाल विकास ट्रस्ट ने उसका जीर्णोद्धार करके मार्किट में बदल दिया जो आज करनाल की सबसे महंगी मार्किट है तथा उसके नीचे से गंदा नाला बहता है।

करनाल के बीचोंबीच से बहने वाली मुगल नहर बाद में गंदे नाले में तबदील हो गई। करनाल विकास ट्रस्ट ने उसका जीर्णोद्धार करके मार्किट में बदल दिया जो आज करनाल की सबसे महंगी मार्किट है तथा उसके नीचे से गंदा नाला बहता है।

करनाल शहर ने इन 50 सालों में काफी बदलाव देखे हैं।  जिला सचिवालय, तहसील, सैशन कोर्ट अब नए स्थानों पर जा चुके हैं। शहर के सिनेमा घरों को अपनी चहल-पहल खोकर वीरान होते व बैंक्वेट हालों में तबदील होते देखा है। कभी के.आर. प्रकाश, इंदर पैलेस, अशोका व नावल्टी आबाद रहते थे, लेकिन आज केवल नावल्टी सिनेमा ही कामुक फिल्मों के सहारे अपना वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। अनेक निजी अस्पतालों ने भी अपने पैर पसार लिए हैं। कभी पश्चिमी यमुना नहर जो शहर की पश्चिमी हद को तय करती थी आज शहर के फैलाव को रोकने में खुद को असमर्थ हो गई है। सब्जी मंडी और अनाज मंडी दक्षिणी छोर पर विस्थापित हो चुकी हैं। उनकी जगह पर मल्टी लेवल पार्किंग बनाकर शहर के बाजार को राहत दी जाएगी।

गुड़ मंडी व काठ मंडी की पंसारी व करियाने की दुकानें भी अब नए कलेवर व नई सज्जा के साथ हैं। गद्दी पर बैठने वाले बनिए अब कुर्सियों पर आ चुके हैं। हाथ तराजू की जगह इलेक्ट्रोनिक कांटों ने ले ली है। लेकिन आज भी माल-संस्कृति के साथ-साथ पुराने ढर्रे की पंसारी की दुकानें भी मिल जाएंगी।

कभी पश्चिमी यमुना नहर जो शहर की पश्चिमी हद को तय करती थी आज शहर के फैलाव को रोकने में खुद को असमर्थ हो गई है। सब्जी मंडी और अनाज मंडी दक्षिणी छोर पर विस्थापित हो चुकी हैं। उनकी जगह पर मल्टी लेवल पार्किंग बनाकर शहर के बाजार को राहत दी जाएगी।

करनाल में स्थित कृषि व पशु संबंधित अनुसंधान संस्थान जिनमें केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, केंद्रीय गेहूं और जौं अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय पशु अनुवांशिकी संसाधन ब्यूरो, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान व राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान अपनी भूमिका निभा रहे हैं तथा अनेक वैज्ञानिक अनुसंधान हो रहे हैं।

शहर के कई गैर सरकारी संगठन भी अपनी गतिविधियां चलाते रहते हैं। कई साहित्यिक संस्थाएं भी साहित्य के साथ-साथ अपने वजूद को जिंदा रखे हुए हैं। सांझा साहित्य मंच, अपना विचार मंच, कारवाने-अदब, अखिल भारतीय साहित्य परिषद इनमें प्रमुख हैं।

भारत सरकार की ‘स्मार्ट सिटी’ योजना की दौड़ में सड़कों, चौराहों का  सौंदर्यकरण किया जा रहा है। नगर निगम द्वारा आधुनिक सार्वजनिक शौचालयों व साईकिल सवारी को बढ़ावा देने के लिए ‘सांझी साइकिल’ योजना चल रही है। जो स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिहाज से उम्दा शुरूआत है।

करनाल में इन 50 सालों में होटल संस्कृति भी खूब फल-फूल रही है। पांच सितारा होटल नूर महल,  करनाल हवेली, होटल ज्वैल्स, डीवेंचर, प्रेम प्लाजा शहर की पहचान बन चुके हैं। करनाल शहर आधुनिकता के साथ अपनी प्राचीन पहचान के साथ भी मजबूती से जुड़ा हुआ है।

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