कौआ और चिड़िया

लोक कथा

                एक चिड़िया थी अर एक था कौआ। वै दोनों प्यार प्रेम तै रह्या करै थे। एक दिन कौआ चिड़िया तै कहण लाग्या अक् चिड़िया हम दोनों दाणे-दाणे खात्तर जंगलां म्हं फिरैं, जै हम दोनों सीर मैं खेती कर ल्यां तो आच्छा रैगा। चिड़िया भी इस बात पै राजी होग्यी। आगले दिन चिड़िया कौआ तै कहण लाग्यी अक् कोए भाई चाल हाम आज खेत नै साफ करल्यां। कौआ कहण लाग्या-

                चल-चल चिड़िया मैं आता हूं, चिलम तमाखू पीता हूं।
गुड़ और रोटी खाता हूं, तेरे लिए भी ल्याता हूं।

                चिड़िया बेचारी सीधी-भोळी थी। वा अकेली ए जाकै खेत नै साफ कर कै आग्यी। कौआ खेत मै नी गया। वा तो बड़े आराम तै चिलम पीता रह्या। आगलै दिन फेर चिड़िया कौआ तै कहण लाग्यी अक् कौए भाई मैं खेत तो साफ कर्याई, अब हळ चलाणा सै। चाल खेत म्हं। कौआ फेर कहण लाग्या-

                चल-चल चिड़िया मैं आता हूं, चिलम तमाखू पीता हूं,
गुड़ और रोटी खाता हूं, तेरे लिए भी ल्याता हूं।

                कौआ तै कहकै खेत में गयाए नी। चिड़िया बेचारी अकेली ए हळ बाह आई। वा थक्यी होई थी बेचारी आकै सोग्यी।

                आगले दिन फेर चिडिय़ा कौआ तै बोण खात्तर कहण लाग्यी। कौआ फेर बहाना बणाकै कहण लाग्या अक् आज मन्नै काम है तौं जा उसतैं कहण लाग्या-

                चल-चल चिड़िया मैं आता हूं, चिलम तमाखू पीता हूं,
गुड़ और रोटी खाता हूं, बची-खुच्ची तेरे लिए भी ल्याता हूं।

                कौआ इसी तरियां फेर नीं गया। चिड़िया नै अकेली नै ए बीज बोया अर आकै सोग्यी। सवेरे फेर कौआ लवै गई। कौआ फेर बहाना बणाकै कहण लाग्या अक् चिड़िया बहण तौं चल मैं अभी आता हूं। इस तरियां चिड़िया नै पाणी भी दे दिया और उसकी देखभाळ भी अकेली ए नै कर्यी। जब अनाज पाकग्या चिड़िया कौआ लवै फेर गयी अर उसतै कहण लागी अक् कोवे भाई ईब तो अनाज पाकग्या है। आज्या चालकै काट ल्यां। कौआ बड़ा चालाक था। वा बहाना बणा कै फेर घराएं रह लिया। जब चिड़िया नै अनाज काट कै बरसा भी लिया तो चिड़िया फेर उसके लवै गयी।  वा कहण लाग्यी अक् कोवे भाई आज्या चाल कै अनाज बांड ल्यां। कौआ उसे  टेम त्यार हो लिया-

                चल-चल चिड़िया मैं आता हूं, चिलम तमाखू पीता हूं,
तेरे लिए भी कुछ ल्याता हूं।

कौआ तो चिड़िया तै भी पहलांए आ लिया। कौआ नै अनाज तो आप ले लिया अर बुलबुला चिड़िया तै दे दिया। चिड़िया बेचारी कुछ भी न बोली। उसे टेम ओळे पड़ण लाग गे। चिड़िया तो भाज कै बुलबुले मैं बड़ग्यी। अर कौआ अनाज पै ए मरग्या।

स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा ( अंक 8-9, नवम्बर 2016 से फरवरी 2017), पृ.- 110

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