कोई सफा न देखा दिल का – कबीर

संगत  साधु की, नित2 प्रीत कजे जाय।
दुर्मति दूर बहावसि3, देखी सूरत जगाय।।टेक –
कोई सफा न देखा दिल काचरण – बिल्ली देखी बगला देखा,
सर्प जो देखा बिल का। ऊपर-ऊपर सुंदर लागे, भीतर गोला मल4 का।।
काजी देखा मौला देखा, पंडित देखा छल का।
औरन5 को बैकुंठ बताये, आप नरक में सरका6।।
पढ़े लिखे नहीं, गुरुमंत्रा को, भरा गुमान कुमति का।
बैठे नहीं साधु संगत में, वरण7 करे जाति का।।
मोह की फांसी पड़ी गले में, भाव करे नारी का।
काम क्रोध दिन रात सतावै, लानत ऐसे तन का।।
सतनाम की मुठी पकड़ ले, छोड़ कपट सब दिल का।
कहै कबीर सुणों सुलताना, पैरों फकीरी  खिलका8।।
1.साफ-सुथरा 2. हमेशा, 3. बहाना 4. गंदगी 5. दूसरे को 6. जाना, पडऩा 7. अभिमान 8. वेशभूषा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *