मौको कहां ढूंढे रे बन्दे -कबीर

साखी –
दौड़त-दौड़त दौड़िया, जहां तक मन की दौड़
दौड़ थका मन थिर2 हुआ, तो वस्तु ठौर की ठौर।।टेक –
मौको कहां ढूंढे रे बन्दे, मैं तो तेरे पास।
चरण – ना मैं देवल3 न मैं मस्जिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौनों क्रिया-करम में, नहीं जोग-बैराग में।।
ना मैं छगरी4 ना मैं भेड़ी, ना मैं छुरी गंडास में।
नहीं खाल में नहीं पूंछ में, ना हड्डी ना मांस में।।
खोजी होय तो तुरत मिलिहौं5, पल भर तलाश में।
कहे कबीर सुणो भाई साधो, सब सांस की सांस में।।

  1. मुझे 2. स्थिर 3. मन्दिर 4. बकरी 5. मिलना

https://www.youtube.com/watch?v=eMn7BOqJQzM

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