लेणे के देणे – चिनवा अचेबे

अनु. राजेंद्र सिंह


विश्व साहित्य की प्रसिद्ध रचना को हरियाणवी में अनुवाद करके प्रस्तुत करने के लिए यह एक स्थायी स्तम्भ शुरू किया है। इसमें पाठक विश्व साहित्य से परिचित तो होंगे ही, साथ ही हरियाणवी भाषा की अभिव्यक्ति क्षमता का पता भी चलेगा। उम्मीद है कि इस प्रयास में हरियाणवी भाषा का स्वरूप भी निखरेगा।  आप भी विश्व साहित्य की प्रसिद्ध रचना का हरियाणवी भाषा में अनुवाद भेज सकते हैं।

पूरे कबीलै म्हं अकोंको की हैसीयत का अन्ताजा उसकै घर की श्यान तै ए लाया जा सकै था। घर कै चौगरदै लाल माट्टी की आच्छी मोटी-तगड़ी कांध थी जिस म्हं एक ए बारणा था। बारणे कै धोरे ए अकोंको की कोठड़ी (ओबी) थी। आंगण में तीन अधगोळिया कोठड़ी ओर थी जिनम्हं उसकी तीनों घरआळी अपणे-अपणे बाळकां गैल रह्वैं थी। दूसरे पासै लाल कांध के सहारै अनाज की कोठी बणा राखी थी जिसमे बारां मीह्ने नाज भर्या रये करदा। रोज की तरियां  तीनों घर आळी अपणी अपणी रोटी बणा कै अकोंको की कोठड़ी म्हं धर कै चली गई। तीनों थाळी खा कै अकोंको थोड़ा सुस्ताण खातर कांध के सहारै कड़ लाकै बैठग्या। अपणी गोथळी खोल कै उसनै थोड़ा सा नसवार काढ्या जो सिळा होकै थोड़ा सा करड़ा होर्या था। उसने बेरा था के औकेकी के बणाए नसवार म्हं खोट रह्वै ए रह्वै। उस टैम अकोंको कै इदिगो का बणाया होया नसवार याद आया जिसका पूरे गाम में कोए मुकाबला नीं था। लेकिन ईब इदिगो बढ़ेरा हो लिया था अर वा काफी टैम तै खटोली मैं ए पड्या था।

अँधेरा हो लिया था। तीनों कोठडिय़ां म्हं तै बोलण अर गाण की मंधम-मंधम  सी अवाज आवै थी। तीनों बीरबानी अर उनके बाळक अपणी-अपणी कोठडिय़ां में बारी-बारी कहाणी सुणैं अर सुणावैं थे। इक्वेेफी अर उसकी बेटी इजिन्मा दरी बिछा कै बिसाळै में बैठी थी। ईब कहाणी सुणाण की बारी मां की थी।

उसने कहाणी सुणाणी सुरु करी : ‘एक बर की बात है अकाश मैं रहण आळे आदमियां नै भण्डारा लाया था। अर उन्नै धरती की सारी चिडिय़ां तै बी न्योंदा दे दिया। सारी चिडिय़ां बोह्त खुस होई अर जौर-सौर तै भंडारै आळे दिन की तैयारी में जुटगी। उननें गात पै लाल चन्दन लाया अर  सुथरे-सुथरे चितर बणाए। एक कच्छू नै सजी-धजी चिडिय़ा देखी अर अंताजा ला लिया के माजरा के था। वो बोह्त ए घणा चलाक था। पंछी अर जनोरां की कोए बी बात उसतै छानी या ढ़की-छुपी नीं थी। न्योंदे की बात सुणदे ही उसकी लाळ टपकण लागगी। उन दिनों काळ बी पड़्या होया था अर दो मिहन्यां तै कच्छू ने छिक कै  खाया बी कोनी था। उसका गात खोळ म्हं सुक्खी डढैण की तरां बाज्जणा सुरु होग्या था। अकाश आळे न्योंदे खातर कच्छू नै जुगत भिड़ाणी सुरु कर दी.’ ‘पर मां कच्छुए कै पांख तो कोनी थे,’  इजिन्मा नै पुच्छ्या। ‘इसी बेसब्री ना होवै,’ मां बोली। ‘या बस्स एक कहाणी है। कच्छुए के पांख तो नीं थे पर वा चिडिय़ां लवै पहोंचग्या अर न्यू बोल्या के वो बी जीम्मण खातर अकाश में जाणा चाहवै। ‘उसकी बात सुणके चिडिय़ां बोली, ‘हाम तन्नै बोह्त आच्छी तरां जाणैं। तेरे जिसा चलाक अर बेगैरत जीव इस धरती पै कोनी। जै हाम तन्नै ले बी जावां तो तों चलाकी दिखाण तै हाटै कोनी।’ ‘थाम मन्नै जाणदी कोनी’, कछुआ बोल्या। ‘ ईब मैं पहलां आळा कोनी रह्या। ईब मन्नै बेरा लागग्या के जो दूसर्यां के राह म्हं कांडे बोवै नीं, ओ असल मैं आपणे राह म्हं ए कांडे बिछावै।’ ‘कच्छू था बड़ा मिठबोला। थोड़ी सी हांण में यू सबकै जचगी के इब यो सुधरग्या। उन्नें गैले लेजण का फैसला होग्या। हरेक चिडिय़ां नै उसतै एक एक पांख उधारा दे दिया। यें जोड़कै कच्छुए नै दो पांख बणा लिए। आखिऱकार न्योंदे का दिन बी आग्या। सारे एक जगहां कट्ठे होए अर कच्छुआ सब तै पहलम पहुँचा। सबनै कट्ठी उडारी भरी। कछुआ चिडिय़ां के बीच मैं उड़के घणा ए खुस था अर सब तै फालतू बोल्लै था। वो कड़कै पै कड़कै सुणाण लाग रह्या था। थोड़ी सी हाण मैं ए उसकी बातां तै खुस होकै सारे पंछियां ने उसे भण्डारे खातर अपणा बड़सर मान लिया।

‘जय्ब वो उड़दे जाण लाग रे थे तो कच्छुआ बोल्या, ‘एक बड़ी जरूरी बात बताऊं जिसका सबनै ख्याल राखणा है। एक रिवाज होया करै के जय्ब किसे नै इतने बड़े भण्डारे का न्योंदा मिलै तो इस मोकै खातर उसनै अपणा एक नया नाम धरणा पड़ै। अकाश मैं म्हारे जो मेजबान हैं, ओं बी चावेंगे के हाम इस रिवाज नै निबावैं।’ ‘किसे बी चिडिय़ा नै इस रिवाज के बारे मैं सुण्या नीं था। सबनै  बेरा था की कच्छुआ चाहे कितना ए बुरा क्यूं न हो, उसने घाट-घाट का पाणी पी राख्या था। उसनै अलग-अलग लोगां अर जगहां के रीति-रिवाजां का अच्छा-खासा ग्यान था। हरेक चिडिय़ा नै अपणा एक नवा नाम सोच लिया। कच्छुए नै बी सबतै आपणा  नवा नाम बताया। उसका नवा नाम था ‘थाम सब’।

‘ठीक बख्त पै सारे भण्डारे आळी जगहां पहुंचग्ये। आगले बी उननै देख कै जमा राज्जी होगे। कच्छुआ सबतै आगै था। उसनै अपणे रंगे होए पांख ठाकै न्योंदा देण खातर मेजबानां का सुक्रिया कर्या। उस मौके पै कच्छुए नै जो कमाल का भासण दिया, उसनै सुणकै सारी चिडिय़ा गदगद होगी। वो सोचैं थी के कछुए नै गैले ल्याके बोह्त बढिया कर्या। कछुआ दिक्खण में सबतै न्यारा था। मेजबानां ने सोच्या के वो जरूर उन सबका राज्जा होगा। ‘ऐसे-ऐसे पकवान सजाये के कच्छुए नै वो कदे सुपनै मैं बी कोनी देखे थे। गरम-गरम सोरबा उनें बासणां में आया जिनमें वो रांध्या था। मास-मच्छी की परांत पै परांत अडऱी थी। दुनिया-जहान के पकवान थे। ताड़ की दारु के कई-कई घड़े भरे थे। जय्ब सारा खाणा लगकै तैयार होया तो मेजबानां म्हं तै एक बुजुर्ग नै सारे पकवान बारी-बारी चाख के देखे। फेर उसनै सारे पंछी खाणे पै बलाये। ऐन उसे टेम कछुआ कुदाक मारकै अपणे पैरां पै खड़्या होग्या अर आग्ल्यां के उस बुजुर्ग तै पुच्छ्या, ‘यें पकवान थामनै किस खातर बणाए हैं ?’


‘बूढ़े ने उत्तर दिया, ‘थाम सब खातर।’ ‘ईब कच्छुआ गैले आये पंछियां कानी मुडय़ा अर बोल्या, ‘थारै सबकै याद होगा के मेरा नाम ‘थाम सब’ है। इस जगहां एक रिवाज यु बी है के सबतै पहले खाणा बड़सर को खिलाया जावै। थारी बारी मेरे पाछै आवैगी।’ ‘कच्छुआ खांदा रह्या, खांदा रह्या। चिडिय़ां बेचारी खड़ी-खड़ी लखांदी रही। अकाश के लोगों नै सोच्या के धरती पै शायद यू ए रिवाज हो के सारा खाणा सिर्फ राजा ए खावेगा। कच्छुए नै सबतै बढिय़ा पकवान खाये। फेर दो माट दारू के पीये। वो खाण तै जब हट्या जय्ब वो फूल के पाटण नै होग्या अर चालण की बी आसंग ना रही। आखिर मैं चिडिय़ां बचे होये खाणे पै कट्ठी होइ अर फर्स पै पड़ी हांडियां मैं चोंच मारण लाग्गी। कईयां नै तो इतना जळेवा आया के उन्होंने भूखे ही वापस धरती पै जाण की सोच ली। लेकिन जाणे तै पहलां उननें कच्छुए को उधार दिया आपणे पांख उल्टे ले लिए। ‘इब कछुए का पेट तो ठाडा भर्या था लेकिन उस धोरै घरां जाण खातर पांख कोनी थे। उसने चिडिय़ां तै उसके घर सन्देशा देण की कही लेकिन सारी नाटगी। झुण्ड म्हं एक तोता बी था जो बोहत ए गुस्से में था। लेकिन फेर बेरा नी के होया के उसका दिमाक बदलग्या अर उसनै कच्छुए के घरां संदेशा पहुँचाण की बात ओट ली। ‘कछुआ न्यू बोल्या, ‘मेरी घरआळी नै न्यू कहियो के वा घर का सारा नरम समान बाहर आंगण में काढ़ दे, ताकि जय्ब मैं उप्पर तै नीचे धरती पै छलांग मारूं तो टूट-फूट कम तै कम होवै।’ ‘तोते नै वादा कर्या अर उड़कै कछुए कै घर पहुँचग्या। उसने कच्छुए की घरआळी तै कया के वा घर का सारा करड़ा अर पैना समान ज्यूकर खुरपी, बर्छी, भाला, बन्दूक, और तो और तोप बी, बाहर काढ़ कै आंगण म्हं धर दे। कच्छुए नै न्यूं तो दिक्खे था के समान बाहर काढ़ दिया, पर वो इतनी ऊंचै था के समान नै पिछाण नी सके था। आंगन मैं ढेर लगणे पै कच्छुए नै उप्पर तै छलांग मारी। वो कई ए देर पड़दा रह्या, पड़दा रह्या।  जय्ब वो आंगन मैं आके पड़्या तो गोळा सा पाट्या। घणी ए दूर तक चीख पकार गई। ‘कच्छुआ तो मर ए गया होगा ?,’ इजिन्मा बोली। ‘ना ना, मर्या तो कोनी’, इक्वेफी नै जबाब दिया। ‘लेकिन उसकी खोळ के टुकड़े-टुकड़े होगे। ओठै लोवै-धोरै ए नामी-गिरामी बैद रह्या करदा। कछुए की घरआळी नै वा बैद बुलाया। बैद नै एक एक करकै कछुए के खोळ के सारे टुकड़े कट्ठे करके आपस म्हं चेप दिये। यू ए कारण है के आज बी कच्छओं का खोळ खुरदरा है अर उसमें लकीर-ए-लकीर हैं। ‘इस कहाणी म्हं कोए गीत तो कोनी आया!,’  इजिन्मा नै कह्या। ‘ना,’ इक्वेफी बोली। ‘मैं तनै गीत आळी कोए ओर कहाणी सुनाऊंगी, लेकिन ईब कहाणी सुणाण की बारी तेरी ए।’

स्रोत – सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (नवम्बर-दिसम्बर, 2017), पेज-58-59                

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