मंगतराम शास्त्री

मंगतराम शास्त्री

जिला जीन्द के टाडरथ गांव में सन् 1963 में जन्म। शास्त्री, हिन्दी तथा संस्कृत में स्नातकोतर। साक्षरता अभियान में सक्रिय हिस्सेदारी तथा समाज-सुधार के कार्यों में रुचि। अध्यापक समाज पत्रिका का संपादन। कहानी, व्यंग्य, गीत विधा में निरन्तर लेखन तथा पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन। बोली अपणी बात नामक हरियाणवी रागनी-संग्रह प्रकाशित।

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(प्रचलित धुन: गोकलगढ़ तै री वा चाल्ली गुजरिया हो राम…)
सुपने में देखी ऐसी बांकी नगरिया हो राम…
वा हे नगरिया मेरे मन में बसी
उस नगरी में ना कोए दीन था, ओड़ै आपस में पूरा यकीन था
ना कोए धोखा सबकी साझी तिजुरिया हो राम…
वा हे तिजुरिया मेरे मन में बसी
भूखा नहीं था कोए नाज का, ओड़ै चिडिय़ा नै खतरा ना था बाज का
सबकी थी सबके मन में पूरी कदरिया हो राम…
वा हे कदरिया मेरे मन में बसी
कोए किसे की ना था दाब में, ओड़ै फरक नहीं था किसे आब में
सबकी थी आपस के म्हैं सुथरी नजरिया हो राम…
वा हे नजरिया मेरे मन में बसी
मंगतराम की आंखें खुली, फेर टोही भतेरी ना वा राही मिली
पहोंची थी उस नगरी में, जोणसी डगरिया हो राम…
वा हे डगरिया मेरे मन में बसी

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जो आजादी मिली हमें वा रूंगे मैं ना थ्याई थी
इस खात्तर खपे लाल हजारों बड़ी मुश्किल तै पाई थी
सन सत्तावन मैं लड़ा गया पहला संग्राम बतावैं सैं
देश के कोणे कोणे मैं माच्या घमासान बतावैं सैं
मंगल पांडे तात्यां टोपे होए कुरबान बतावैं सैं
उस झांसी आळी राणी का ऊंचा बलिदान बतावैं सैं
नब्बे साल तै छिड़ी लड़ाई 47 में रंग ल्याई थी
बहोत घणे संघर्ष हुए थे देश मैं और देश तै बाह्र
विदेशां में फौज बणी एक गदरी बाब्यां की ललकार
हरदयाल एम.ए., सोहन ङ्क्षसह भकना, बरकतउल्ला, करतार
कामागाटा मारू नामक जहाज पै हो आए असवार
और बहोत से शहीद होए जिनै तन पै गोळी खाई थी
पंजाब केसरी लाला जी नै साईमन को लल्कार्या था
सांडर्स नै आदेश दिया उन्हें लाठियों से मार्या था
लाला जी के बदले का न्यूं शोर मच्या बड़ा भार्या था
भगत ङ्क्षसह और राजगुरु नै बदला तुरन्त उतार्या था
एक उधम ङ्क्षसह नै भी मार कै डायर आपणी कसम निभाई थी
इस आजादी की खातिर नेता जी चन्द्र बोस खपे
असफाक उल्लाह बिस्मिल और चन्द्रशेखर कर होश खपे
रोशन ङ्क्षसह सुखदेव राजिन्द्र लाहिड़ी भर कै जोश खपे
ना लिखे गए इतिहासां में इसे बहोत से वीर खामोश खपे
कहै मंगतराम आजादी की मिल-जुल कै लड़ी लड़ाई थी

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तेरा जाईयो सत्यानाश राम या किसी करी मेरी गेल
आशा पै दिन तोड़ रहा था कर दिया मटिया मेल
देख-देख गेहूं की बाली मन हुलसाया था
बेच फसल नै के के करणा जोड़ लगाया था
खो दिया जमा जमाया था जो पल दो पल में खेल
पोस माघ के म्हीने में जब पाळा पड़्या कसाई
पाणी के म्हैं खड़ा रह्या मनै कोन्या करी कोताही
तनै मेरे ऊपर किसी चलाई या पैने मुंह की सेल
पकी फसल पै ओळे पड़ग्ये सारा खेत पसरग्या
मेरी काया लीली होग्यी जणूं काळा बिषियर लड़ग्या
मेरे नाम का आज तूं मरग्या हो चाहे बेशक ठेल
खेत लिया था ठेके पै साहुकार से कर्जा ठाकै
यू तै माफ भी ना होवै ना कोए बचावै आकै
बेईमान तेरे गुण गाकै मनै के काढ्या खड़तेल

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(प्रचलित धुन:- तेरा चन्द्रगुप्त सै याणा…)
मेरा रूखा-सूखा खाणा, मनै मिली सबर की घूंट पीण की सीख विरासत मैं
मनै तो सब किमे न्यूं समझावै, भाग तै बाध कुछे ना थ्यावै
धमकावै यू ताणा-बाणा, मेरी बींधै चारों खूंट गेर दें जकड़
हिरासत में
मनै तो मिली कर्म की सीख, सदा पिटवाई मेरे पै लीख
मनै झींख कै मिलता दाणा, मैं दाबूं हळ की मूंठ मगर ना सीर
बसासत में
मनै ना मिल्या पढ़ण का मौका, मेरे संग होया हमेशा धोखा
बड़ा ओखा टेम पुगाणा, या मची चुगरदै लूट फैलर्या जहर सियासत में
मैं हाड पेल करूं काम, फेर भी ना मिलते पूरे दाम
मंगतराम सिखावै गाणा, कहै सदा रहो एकजूट एकता ना रहै परासत मैं

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न्यारे-न्यारे भ्रम फेला कै जारी करते जो फरमान
वें करते मेहनत की चोरी सबतै माड़ा विधि विधान
कर्म की गेल्यां, धर्म जोड़ कै, श्रम का पाठ पढ़ाते जो
काम कर्म हो, कर्म धर्म हो, न्यूं जंजाल फैलाते जो
धर्म की गेल्यां घटै आस्था फेर विश्वास जमाते जो
दिखा पाप का भय माणस की बुद्धि को बिचळाते जो
चालाकी से स्याणे बणकै करैं स्याणपत बेईमान
धर्म कहै मत बदलो धन्धा पुस्तैनी जो काम करो
बांध देई जो चलती आवै मरयादा सुबह शाम करो
जात गोत की जकडऩ में मत परिवर्तन का नाम करो
चक्रव्यूह में फंसे रहो मत लिकड़ण का इन्तजाम करो
कोल्हु के बुळ्दां की ढालां रहो घूमते उम्र तमाम
बेशक मेहनत करणी चाहिए मेहनत ही रंग ल्यावै सै
मेहनत में जब कला मिलै तो सुन्दरता कहलावै सै
मेहनत की भट्ठी में तप स्योन्ना कुन्दन बण ज्यावै सै
लेकिन मेहनत की कीमत पै शोषक मौज उड़ावै सै
मेहनत का महिमा मण्डन हो फेर होगा श्रमिक सम्मान
जिस दिन काम करणिए जग में मिलकै नै हक मांगैंगे
मेहनतकश सब मरद लुगाई जब आपणी बांह टांगैंगे
उस दिन पकड़ी जागी चोरी फेर सब सीमा लांघैंगे
गेर गाळ में मूंदे मूंह जुल्मी चोरां नै छांगैगे
कहै मंगतराम मिलैगा असली मेहनत का फेर पूरा दाम

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(प्रचलित तर्ज:- गंगा जी तेरे खेत में गडे हिंडोले चार…)
टोहूं मैं उस देश नै जहां हो सबका रूजगार, सभी के पास में
रोटी कपड़ा घर हो….हे रै रै रै रै….
सबको पेट भराई भोजन मिलता हो सम्मान से
ना कोए भूखा सोता हो ना मरता हो अपमान से
ना कोए ऊंचा नीचा हो जहां जाति-गोत विधान से
समता के सन्देश में जहां मिलता हो बल-प्यार, खुले आकाश में
उड़ता खग नीडर हो…हे रै रै रै रै…..
कपड़े के टोट्टे में कोए भी नहीं जिडाया मरता हो
शिखर दोपहरी लूआं में कोए नहीं उघाड़ा फिरता हो
सर्द ठिठरती रात्यां में कोए ना नंगे तन ठिरता हो
हितकारी के भेष में जहां ना हो कोए बदकार, आम और खास में
जहां ना कोए अंतर हो…हे रै रै रै रै….
सबको मौका मिलता हो जहां मन की बातें कहणे का
जरूरत के अनुसार सभी को घर मिलता हो रहणे का
ना हो कोए दबवार किसे की धौंस खाम खा सहणे का
सरकारी आदेश में जहां ना हो भ्रष्टाचार, ठगण की आस में
कोए ना खड़ा अफसर हो…हे रै रै रै रै ….
मंगतराम कहै आपस में सबका भाईचारा हो
गीत और संगीत जहां हो रंगों भरा नजारा हो
मर्यादा के नाम पै कोए ना बणता हत्यारा हो
सामाजिक विद्वेष में जहां ना हो मारो-मार, धरम की चास में
नहीं पकता खंजर हो….हे रै रै रै रै…..

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धनसत्ता नै निगल लिया सब आज बच्या कोए धर्म नहीं
पशु कै बदलै माणस नै मरवा द्यें आवै शर्म नहीं
जात-धर्म पै बांट दिया जन माणस न्यारा-न्यारा रै
मानवता का मोल घट्या आज शहद हो लिया खारा रै
सत्ता और धर्म ने मिलकै जाळ फैलाया सारा रै
माणस-माणस का बैरी यू कोड जुल्म होया भार्या रै
लगी कोढ़ में खाज की ढाळां ठीक होवै कोए चर्म नहीं
राज की गेल्यां नीति और नीयत का मेल कहा जा सै
जिसा राज उसी प्रजा हो ऊपर तै रोग बहा जा सै
जिब राजा कै हो खौट नीत में क्यूकर भला लहा जा सै
अफवाह और नफरत के हाथां माणस रोज दहा जा सै
झूठ के संग जित जुड़ै आस्था फेर बचै कोए कर्म नहीं
दुनिया के म्हैं माणस ही एक ऐसा जीव बताया रै
जगत भलाई के हित में सदा चिन्तन करता आया रै
यू संसार बसण जोगा खुद माणस नै ही बणाया रै
आज धर्म पै बहम पशु का जन तै बत्ती छाया रै
जब राज अंगारी सुलगा दे फेर कोए धर्म से ज्यादा गर्म नहीं
धर्म बण्या व्यापार आज गठजोड़ राज तै होग्या
इस गफलत में फंस कै माणस अपणी अस्मत खोग्या
ओड़ै गोधरा आड़ै दुलीणा बीज बिघन के बोग्या
कहै खड़तळ कविराय ऊठ क्यूं ताण चादरी सोग्या
जै इन्सान बचैगा तो फेर बचै पशु भी भ्रम नहीं

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सै मशहूर नया नौ दिन और सौ दिन चलै पुराणा
नहीं पुराणा सब किमे आच्छा यू भी सै एक गाणा
जितने गीत-संगीत पुराणे खूब सराहे जां सैं
प्यार-मोहब्बत तन्हाई के गीत बजाए जां सैं
पर जो आज नहीं मतलब के वें भी गाए जां सैं
दिखे राजा-राणी के किस्से आदर्श बताए जां सै
जबकि नए जमान्ने का नया हो सै ताणा-बाणा
जितनी बात पुराणी कहावत सारी आच्छी नां सैं
कहते माड़ी जात बीर की बिल्कुल साच्ची नां सैं
छोरी हो कूड़े की बोरी ये बात जरा-सी नां सैं
जिसी नीत उसी बरकत बाणी परखी जांची नां सै
आज खोट्टी नीत खरी बरकत हो, यू सै पना-पुआणा
ना सब चीज नई आच्छी ना माड़ी सभी पुराणी
ना सब चीज पुराणी आच्छी ना सब नई निमाणी
जात-पात और खाप-गोत की चाल हों माणस-खाणी
लूट-फूट पै टिकी हुई हर चाहिए चीज मिटाणी
बेशक नाम धरम का हो ना चाहिए जहर फलाणा
सै बदलाव जगत का नियम ना घबराणा चहिए
सड़ै पान बिन पाणी बदले, कति ना खाणा चहिए
हंस कै नै परिवर्तन को हमें गळे लगाणा चहिए
लेकिन नए पेड़ की जड़ में खाद पुराणा चहिए
कहै मंगतराम बणावै जिम्मेदारी माणस स्याणा

10

ना महफूज आबरू रहर्यी बच्या नहीं विश्वास सखी
किस पै करां भरोसा हे बेब्बे कोए बची ना आस सखी
आज फूल नै मसळण लाग्या आप बाग का माळी हे
सब किमे न्यूं खावण नै आवै ना कोए बच्या रूखाळी हे
बागां की खुश्बोई मैं आज मिलगी गन्ध खटास सखी
घर मैं दुश्मन बाहर भी दुश्मन, दुश्मन रिश्तेदार हुए
इज्जत के नां पै छोह्री बहुआं पै अत्याचार हुए
खुद रक्षक भक्षक बणग्ये ये नोच्चण लाग्गे मांस सखी।
इज्जत का रहे ढोल पीट खुद इज्जत म्हारी तारैं हे
जळा कै मारैं, पेट मैं मारैं, पीट-पीट कै मारैं हे
न्यूं सोच्चैं रहैं बन्द किवाड़ी दिक्खै ना प्रकास सखी
गुरू का दर्जा सबतै ऊंचा या दुनिया कहती आवै हे
कड़ै ल्हको ल्यां ज्यान बहाण जब बाड़ खेत नै खावै हे
शिक्षा के मन्दिर का भी आज होत्ता देख्या नाश सखी
कितने दिन न्यूं ए चाल्लैगा सदा सह्या ना जावैगा
खुद बहादुर बण लडऩा होगा और ना कोए बचावैगा
फेर मंगतराम चलैगा गेल्याँ कर कै नै इकलास सखी

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बाबत हरियाणा
देशां में सुण्या देश अनोखा वीर देश हरियाणा है।
मैं टोहूं वो हरियाणा जित दूध-दही का खाणा है।।
था हरियाणा हिन्दू-मुस्लिम मेलजोल की कहाणी का
पीर-फकीरों संतों की गूंजी यहां निर्मलवाणी का
उर्दू-पुरबी-पंजाबी-बृज-बागड़ी-बांगरू बाणी का
जमना घाघर बीच ठेठ तहजीब की फिजा पुराणी का
आज दंगे हों जात-धर्म पै नफरत का ताणा-बाणा है।
पहलम दूध बिना पैसे भी आपस में थ्याज्या करता
गऊ-भैंस-बकरी-भेड़ों का रेवड़ चर आज्या करता
सस्ते में होज्या था गुजारा हिल्ला भी पाज्या करता
गरीब आदमी भी डंगवाराकर काम चलाज्या करता
आज डंगर की कीमत बढ़ग्यी सस्ता मनुष निमाणा है।
पहलम तै ज्यादा उत्पादन बढ़्या देश में आज दिखे
अन्न धन के भण्डार भरे होया आत्मनिर्भर राज दिखे
बेशक होया विकास मगर रूजगारहीन बेलिहाज दिखे
क्यों के सबके हिस्से में नहीं आता दूध-अनाज दिखे
आम आदमी नै तो मुश्किल होर्या काम चलाणा है।
फौज बहादुरी के किस्से भी खूब सुणे हरियाणे के
जय जवान और जय किसान के नारे जोश जगाणे के
मरदां के संग महिलाओं के जुट कै खेत कमाण के
लेकिन आज सुणो किस्से सरेआम कत्ल करवाणे के
बेट्टी घटैं रोज मात का गर्भ बण्या शमशाणा है।
कुछ गाम्मां में भी शहरों जैसी चकाचौंध तो फैली है
एक हिस्सा तो गाम्मां का भी होया धनी और बैल्ली है।
पर मजदूर किसानों को तो होवै बहोत सी कैली है
आड़ै औरत और दलित विरोधी बहती हवा विषैली है
कहै मंगतराम कर्ज में डूब्या ज्यादातर किरसाणा है।

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इब सुणले मेरी बात
बहोत घणे दिन भरमाई तेरे झुट्ठे लप्पे लार्यां नै।
कह्या करै था ल्याद्यूंगा तेरी खात्तर चांद अर तार्यां नै।।
इब सुणले मेरी बात में आप्पै ए, आसमान पै जाऊंगी
अपणे हिस्से का चंद्रमा, आप जमीं पै ल्याऊंगी
ना देक्खूं मैं बाट तेरी, ना तेरी ओड़ लखाऊंगी
ना चंदा की ड्योढ़ी पै मैं खुद झंडा फहराऊंगी
बहोत नचाली ईब तै आग्गै पलटूं तेरे इशार्यां नै।
ढके ढकाए ढोल उघाडूं खोलूं तेरे पिटार्यां नै।।
पढ़ लिखूं और आग्गै बढ़कै आपणा काम संभाळूंगी
अपणी किस्मत की खेत्ती मैं आप कमा कै हाळूंगी
कुंदन होण तईं तपकै मैं सोरण-काया गाळूंगी
खुद पै करूं यकीन मैं झूठा बहम कति न पाळूंगी
ज्ञान की डोरी पकड़ लेई अब तजकै चुल्हे हार्यां नै।
ईब तै आग्गै तरसैगा मेरे घूंघट के फटकारयां नै।।
मैं तेरे तै घाट नहीं तेरी जड़ म्हैं पीढ़ा ढाऊंगी
तेरे फैले फतव्यां में मैं आपणा दखल बढ़ाऊंगी
के सोच्चै सै सदा-सदी तेरी दासी बण रह ज्याऊंगी
तेरी भव्या में दही भळाखै ईबना रूई खाऊंगी
एक-एक करकै परखूंगी तेरे लुभाणे नार्यां नै।
कितने ए ऊंचे महल चिणाले ढाऊं महल चोबार्यां नै।।
मैं भी सूं इन्सान तेरे ज्यूं मैं भी जीणा चाहूंगी
अपणे पैरां चाल कै आपणी खुद मंजिल पै जाऊंगी
जो तूं चाह्वै आग्गै बढ़णा सुणले तनै सुणाऊंगी
मनै बराबर समझेगा तो साथ खड़ी मैं पाऊंगी
नहीं तो बांधी नहीं बंधूंगी तोडूंगी काण्ठार्यां नै।
मंगतराम तेरे बणवाए फोडूं रूढ़ खटार्या नै।।
स्रोतः (1से 10 तक)  सं. सुभाष चंद्र, हरियाणवी लोकधारा – प्रतिनिधि रागनियां, आधार प्रकाशन पंचकुला, पेज – 227 से 236
(11व  12)  सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (जनवरी-अप्रैल 2018) पेज – 69

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Author: मंगत राम शास्त्री

जिला जीन्द के टाडरथ गांव में सन् 1963 में जन्म। शास्त्री, हिन्दी तथा संस्कृत में स्नातकोतर। साक्षरता अभियान में सक्रिय हिस्सेदारी तथा समाज-सुधार के कार्यों में रुचि। अध्यापक समाज पत्रिका का संपादन। कहानी, व्यंग्य, गीत विधा में निरन्तर लेखन तथा पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन। बोली अपणी बात नामक हरियाणवी रागनी-संग्रह प्रकाशित।

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