रागनियां – रणबीर सिंह दहिया

रणबीर सिंह दहिया

untitled-17copy.jpgजिला रोहतक के गांव बरोणा में 11 मार्च, 1950 को जन्म। 1971 में एम बी बी एस तथा 1977 में एम एस की। सामाजिक बदलाव के कार्यों में नेतृत्व। हरियाणवी में कहानी एवो उपन्यास लेखन। समसामयिक विषयों और जन नायकों पर सैंकड़ों रागनियां व किस्सों की रचना। मेहरसिंह, बाजे भगत, सफदर, उधम सिंह, आण्डी सद्दाम, नया दौर विशेष तौर पर चर्चित।
भगवद् दयाल चिकित्सा विश्वविद्यालय, रोहतक में वरिष्ठ प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत।

1

पोह का म्हिना रात अन्धेरी, पड़ै जोर का पाळा
सारी दुनिया सुख तैं सोवै मेरी ज्यान का गाळा
 
सारे दिन खेतां के म्हां मनै ईंख की करी छुलाई
बांध मंडासा सिर पै पूळी, हांगा लाकै ठाई
पूळी भार्या जाथर थोड़ा चणक नाड़ मैं आई
आगे नै डिंग पाट्टी कोन्या, थ्योड़ अन्धेरी छाई
झटका देकै चणक तोड़ दी हुया दरद का चाळा
 
साझे का तै कोल्हू था मिरी जोट रात नै थ्याई
रुंग बुळध के खड़े हुए तो दया मनै भी आई
इसा कसाई जाड्डा था भाई मेरी बी नांस सुसाई
मजबूरी थी मिरे पेट की, कोन्या पार बसाई
पकावे तैं न्यों कहण लग्या कदे होज्या गुड़ का राळा
 
कई खरच कठ्ठे होरे सैं, ज्यान मरण मैं आई
गुड़ नै बेचो गुड़ नै बेचो, इसी लोलता लाई
छोरी के दूसर की सिर पै, आण चढ़ी करड़ाई
सरकारी करजे आळ्यां नै, पाछै जीप लगाई
मण्डी के म्हां फंसग्या क्यूकर होवै जीप का टाळा
 
खांसी की परवाह ना करी, पर ताप नै आण दबोच लिया
डाक्टर नै एक सूआ लाया, दस रुपये का नोट लिया
मेरे पै गरदिश क्यों चढग़ी, मनै इसा के खोट किया
कई मुसीबत कठ्ठी होगी, सारियां नै गळजोट लिया
रणबीर साझे जतन बिना भाई टळै ना दुख का छाळा
 

2

किसे और की कहाणी कोन्या इसमैं राजा राणी कोन्या
सै अपणी बात बिराणी कोन्या, थोड़ा दिल नै थाम लियो
 
यारी घोड़े घास की भाई, नहीं चलै दुनिया कहती आई
मैं बाहूं और बोऊं खेत म्हं, बाळक रुळते मेरे रेत म्हं
भरतो मरती मेरी सेत म्हं, अन्नदाता का मत नाम लियो
 
जमकै लूट्टै सै मण्डी हमनै, बीज खाद मिलै मंहगा सबनै
मेहनत लुटै मजदूर किसान की, आंख फूटी क्यों भगवान की
भरै तिजूरी क्यों शैतान की, देख सभी का काम लियो
 
चाळीस साल की आजादी म्हं, कसर रही ना बरबादी म्हं
बाळक म्हारे सैं बिना पढाई, मरैं बचपन म्हं बिना दवाई
कड़ै गई म्हारी कष्ट कमाई, झूठी हो तै लगाम दियो
 
शेर बकरी का मेल नहीं, घणी चालै धक्का पेल नहीं
आप्पा मारें पार पडैग़ी धीरे, मेहनतकश रुपी जितने हीरे
बजावैं जब मिलकै ढोल मंजीरे, रणबीर का सलाम लियो
 

3

माणस तो बणै बिचारा कहैं बिघनां की जड़ या नारी
बतावैं वासना छिपावण नै चोट कामनी की हो न्यारी
 
योग ध्यान करणिया नारद पूरा योगी गया जताया
विश्व मोहिनी पै गेरी लाळ काया मैं काम जगाया
पाप लालसा डटी ना उसकी मोहिनी का कसूर बताया
सदियां होगी औरत ऊपर हमेशा यो इल्जाम लगाया
आगा पाछा देख्या कोन्या सही बात नहीं बिचारी
 
कीचक बी एक हुया बतावैं विराट रूप का साळा
दासी बणी द्रोपदी पै दिया टेक पाप का छाळा
अपणी बुरी नजर जमाई कर्या चाह्या मुंह काळा
भीम बली नै गदा उठाई जिब देख्या जुल्म कुढ़ाळा
सारा राज पुकार उठ्या था नौकरानी की अक्कल मारी
 
पम्पापुर मैं रीछ राम का बाली बेटा होग्या देखो
सुग्रीव की बहु खोस लई बीज कसूते बोग्या देखो
गेंद बणा दी जमा बीर की उसका आप्पा खोग्या देखो
जमीन का हक खोस लिया मोटा रासा होग्या देखो
सबतैं घणी सताई जावै घर मैं हो चाहे करमचारी
 
पुलस्त मुनि का पोता हांगे मैं पूरा ए मगरुर होया
पंचवटी तें सीता ठाकै घमण्ड नशे मैं चूर होया
सीता थपी कलंकणी धोबी का कथन मंजूर होया
उर्मिला का त्याग बाध था चाहिए जिकर जरुर होया
झूठी शान की बलि चढ़ाई रणबीर या सबला म्हारी
 

4

लेज्यां म्हारे वोट करैं बुरी चोट, आवै क्यों नींद रुखाळे नै
घेर लिए मकड़ी के जाळे नै
 
जब पाछै सी भैंस खरीदी देखी धार काढ़ कै हो
जब पाछै सी बीज ल्याया देख्या खूब हांड कै हो
जब पाछै सी हैरो खरीद्या देख्या खूब चांड कै हो
जब पाछै सी नारा ल्याया देख्या खूड काढ़ कै हो
वोटां पै रोळ, पाटै कोन्या तोल, लावां मुंह लूटण आळे नै
घेर लिए मकड़ी के जाळे नै
 
घणे दिनां तैं देख रही म्हारी या दूणी बदहाली होगी
आई बरियां म्हानै भकाज्यां इबकै खुशहाली होगी
क्यों माथे की संै फूट रही या दूणी कंगाली होगी
गुरु जिसे चुनकै भेजां इसी ए गुरु घंटाली होगी
छाती कै लावैं, क्यूं ना दूर भगावैं, इस बिषयर काळे नै
घेर लिए मकड़ी के जाळे नै
 
ये रंग बदलैं और ढंग बदलैं जब पांच साल म्हं आवैं सैं
जात गोत की शरम दिखाकै ये वोट मांग कै ले ज्यावैं सैं
उनकै धोरै जिब जाणा होज्या कित का कौण बतावैं सैं
दारु बांटैं पीस्सा बी खरचैं फेर हमने ए लूटैं खावैं सैं
करैं आपा धापी, ये छारे पापी, थापैं ना किसे साळे नै
घेर लिए मकड़ी के जाळे नै
 
क्यों हांडै सै ठाण बदलता सही ठिकाणा मिल्या नहीं
बाही मैं लागू और टिकाऊ ऐसा नारा हिल्या नहीं
म्हारे तन ढांप सकै जो ऐसा कुड़ता सिल्या नहीं
खेतां में नाज उपजावां सां फूल म्हारै खिल्या नहीं
साथी रणबीर, बनावै सही तसबीर, खींच दे असली पाळे नै
घेर लिए मकड़ी के जाळे नै
 

5

नळ दमयन्ती की गावै तूं कद अपणी रानी की गावैगा
नळ छोड़ गया दमयन्ती नै तूं कितना साथ निभावैगा
 
लखमीचन्द बाजे धनपत नल दमयन्ती नै गावैं क्यों
पूरणमल का किस्सा हमनै लाकै जोर सुणावैं क्यों
अपणी राणी बिसरावैं क्यों कद खोल कै भेद बतावैगा
 
द्रोपदी चीर हरण गाया जा पर तनै म्हारे चीर का फिकर नहीं
हजारों चीर हरण होरे आड़ै तेरे गीत मैं जिकर नहीं
आवै हमनै सबर नहीं जो ना म्हारे गीत सुणावैगा
 
देश प्रेम के गीत बणाकै जनता नै जगाइये तूं
किसान की बिपता के बारे में बढिय़ा छन्द बणाइये तूं
इतनी सुणता जाइये तूं कद फौज म्हं मनै बुलावैगा
 
बाबू का ना बुरा मानिये करिये कला सवाई तूं
अच्छाई का पकड़ रास्ता ना गाइये जमा बुराई तूं
कर रणबीर की मन चाही तूं ना पाछै पछतावैगा
 

6

लाल चूंदड़ी दामण काळा, झूला झूलण चाल पड़ी
कूद मारकै चढ़ी पींग पै देखै सहेली साथ खड़ी
 
झूंटा लेकै पींग बधाई, हवा मैं चुंदड़ी लाल लहराई
ऊपर जाकै तळे नै आई, उठैं दामण की झाळ बड़ी
 
पींग दूगणी बढ़ती आवै, घूंघट हवा मैं उड़ता जावै
झूंटे की हींग बधावै, बाजैं पायां की छैल कड़ी
 
मुश्किल तै आई तीज, फुहारां मैं गई चुंदड़ी भीज
नई उमंग के बोगी बीज, सुख की देखी आज घड़ी
 
रणबीर पिया की आई याद, झूलण मैं आया नहीं स्वाद
नहीं किसे नै सुणी फरियाद, आंसूआं की या लगी झड़ी
 
 

7

मनै पाट्या कोन्या तोल, क्यों करदी तनै बोल
नहीं गेरी चिट्ठी खोल, क्यों सै छुट्टी मैं रोळ
मेरा फागण करै मखोल, बाट तेरी सांझ तड़कै
 
या आई फसल पकाई पै, दुनिया जावै  लाई पै
लागै दिल मेरे पै चोट, क्यूकर ल्यूं  इसनै ओट
के मेरा सै इसमैं खोट, ना आच्छे लागैं यें रोट
सोचूं खाट के म्हं लोट, तूं कित सोग्या पड़कै
 
खेतां म्हं मेहनत करकै, रंज फिकर यो न्यारा धरकै
लुगाइयां नै रोणक लाई, कट्ठी हो बुलावण आई
मेरी कोन्या पार बसाई, तनै कसक कसूती लाई
पहली दुलहण्डी या�� आई, मेरा दिल कसूता धड़कै
 
इसी किसी तेरी नौकरी, कुणसी अड़चन तनै रोकरी
अमीरां के त्योहार घणे सैं, म्हारे तो एकाध बणे सैं
खेलैं रळकै सभी जणे सैं, बाल्टी लेकै मरद ठणे सैं
मेरे रोंगटे खड़े तणैं  सैं, आज्या अफसर तै लड़कै
 
मारैं कोलड़े आंख मीचकै, खेलैं फागण जाड़ भींचकै
उड़ै आग्या था सारा गाम, पड़ै था थोड़ा घणा घाम
पाणी के भरे खूब ड्राम, दो तीन थे जमा बेलगाम
मनै लिया कोलड़ा थाम, मार्या आया जो जड़कै
 
पहल्यां आळी ना धाक रही, ना बीरां की खुराक रही
तनै मैं नई बात बताऊं, डरती सी यो जिकर चलाऊं
रणबीर पै बी लिखवाऊं, होवे पिटाई रोज दिखाऊं
कुण कुण सैं सारी गिणवाऊं, नहीं खड़ी होती अड़कै
 

8

तन ढकण नै चादर ना घणी ठण्डी बाळ चलै
एक कूण मैं पड़ रहणा धरां सिर कै हाथ तळै
 
फुटपाथ सै रैन बसेरा घणे सुन्दर मकान थारे
दो बख्त की रोटी मुश्किल रोज बणैं पकवान थारे
दिखे इरादे बेईमान थारे सत्ते का जी बहोत जळै
 
होटल मैं बरतन मांजैं करैं छोटी मोटी मजूरी
थारे घरां की करैं सफाई घर अपने मैं गन्द पूरी
कद समझी या मजबूरी जाड़ी बाजैं ज्यों शाम ढळै
 
थारे ठाठ-बाट देख निराले हूक उठे दिल म्हारे मैं
पुळ कै नीचै लेटे देखां लैट चसै उड़ै चौबारे मैं
गरम कमरे थारे मैं यो सैक्स का व्यापार पळै
 
म्हारी एक नहीं सुणै राम थारे महलां बास करै
इसे राम नै के हम चाटां पूरी ना कोए आस करै
रणबीर सब अहसास करै दिल मैं आग बळै
 

9

माणस आळे प्यार रहे ना जग में पीस्सा छाग्या
माट्टी होगी त्याग भाव की जी घणा दुख पाग्या
 
विज्ञान की नई खोजां नै अनहोणी करकै दिखाई
नियम जाण कुदरत के या जिन्दगी सफल बणाई
गलत इस्तेमाल हो इसका तो करदे घणी तबाई
मुट्ठी भर लोगां नै इसपै अपणी धाक जमाई
नाज सड़ै गोदामां मैं भूखा दुख मैं फांसी खाग्या
 
कुछां के कुत्ते ऐश करैं म्हारे बालक भूखे मरते
हम दिन रात कमावैं वें तै कमाई काळी करते
चटणी नहीं नसीब हमनै वे पकवानां तैं डरते
पीस्से के अम्बार लगे इनके पेट कदे ना भरते
बिन पैंदे का लौटा हमनै मूरख बेकूफ  बताग्या
 
म्हारी ईज्जत आबरू उतरै ईब खुले बजार म्हं
धेले की ना कदर रही आपस के ब्यौहार म्हं
ना सही रिश्ते बनाए हमनै अपने परिवार म्हं
औरत दी एक चीज बणा लालच के संसार म्हं
बैडरूम सीन टी वी पै खुलकै दिखावण लाग्या
 
खेती खोसी डांगर खोसे ईब करैगा कंगला यो
ना सुहावै म्हारी झूंपड़ी खुदका बढिय़ा बंगला यो
म्हारी लूट कमाई देखो हमनै बतावै पगला यो
रहे ताश खेलते तो नहीं समझ पावां हमला यो
बता रणबीर सिंह क्यों पीस्से का नंगापन भाग्या
 
 

10

तीन मुंही नागण काळी म्हारे भारत देस नै डसगी
शरीर हुया काळा ईंका जनता आज कसूती फंसगी
 
मुद्रा कोष का फण जहरी ईका काट्या मांगे पाणी ना
दूसरा फण विश्व बैंक का इसकी तासीर पिछाणी ना
डब्ल्यू टी ओ तीजा फण बचै इसका डस्या प्राणी ना
नागण के सपळोटिये कहैं नागण माणस खाणी ना
इनके जहर की छाया समाज की नस-नस मैं बसगी
 
ढांचागत समायोजन नै कसूते यें गुल खिला दिये
शिक्षा पै खरचा कम करो फरमान इसनै सुणा दिये
सेहत तै ना कोए लेणा देणा मन्तर गजब पढ़ा दिये
पब्लिक सेक्टर ओणे पोणे मैं इसनै आज बिका दिये
संकट मोचक बणकै आई संकट की कौळी कसगी
 
तीन मुंही नागण के दम पै हर देश लूट कै खाया रै
गरीब देशां की हितैषी सूं इसनै यो भ्रम फैलाया रै
जी सेवन सपेरा जिसनै नागण को दूध पिलाया रै
चकाचौंध इसी मचादी अपणा दीखे आज पराया रै
यें गरीब डसै दिन धौळी मौत म्हं इनकी काया धंसगी
 
अमीर-गरीब के बीच की खाई आज और भी चौड़ी होगी
बाळकां की दुर्गति करदी जवानी आज की बोड़ी होगी
म्हारे डांगर मरण लागरे ठाढी रेस की घोड़ी होगी
आज बिदेशी नागण की देशी नागण तै जोड़ी होगी
रणबीर की कविताई तै या ज्योत अन्धेरे मैं चसगी
 
 
12
मजदूर और किसान बिना ए इन सबके सम्मान बिना ए
चेहरे पर मुस्कान बिना ए हरयाणा नंबर वन कोन्या
 
हर्या भर्या हरयाणा जित दूध दही का खाणा
खून की कमी गर्भवती म्हं दस प्रतिशत बढ़ जाणा
हम सबके उपचार बिना ए बसते हुए घरबार बिना ए
लिंग अनुपात सुधार बिना ए हरयाणा नंबर वन कोन्या
 
हरित क्रांति के गुण गाते नुकसान ना कदे बतावैं
पाणी म्हं जहर घोळ दिया कीटनाशक कहर ढावैं
बीमारियां के इलाज बिना ए गरीबां की आवाज बिना ए
विकास के सही अंदाज बिना ए हरयाणा नंबर वन कोन्या
 
कांग्रेसी घास तै हरयाणा बहोत घणा दु:ख पाग्या
खाज बीमारी हुई गात मैं कसूता संकट छाग्या
इसकी रोक थाम बिना ए पानी के इंतजाम बिना ए
अमीरों पर कसे लगाम बिना ए हरयाणा नंबर वन कोन्या
 
अमीर गरीब के बीच की या बढती जावै खाई हे
गरीब की मेहनत बिना छाज्या घणी रुसवाई हे
महिलाओं के सम्मान बिना ए पढ़े लिखे नौजवान बिना ए
म्हारे पूरे हुए अरमान बिना ए हरयाणा नंबर वन कोन्या
 
आपस के म्हं भाईचारा हो हर शहर गाम म्हं
हम ख़ुशी ख़ुशी हाथ बटावां एक दूजे के काम म्हं
सब जात्यां के मिलात बिना ए सबकी सांझी खुभात बिना ए
गरीब के सिर पै छात बिना ए हरयाणा नंबर वन कोन्या
 
 
 
 
 
 

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