रामेश्वर दास गुप्ता

[youtube https://www.youtube.com/watch?v=_Q60rBEHfZw&w=560&h=315]

1

बालकपण तै दुखी रह्या, सही बख्त की मार मनै
मात मेरी नै फुर्सत ना थी, कब देती मां का प्यार मनै
 
पहर के तड़के चाक्की झौती, कुणबे का पेट भरण नै
सब के खातिर रोटी-टुकड़ा, कुण सोचै बात मरण नै
भैंस की सान्नी, धार काढणा, थे सत्तर काम करण नै
सब दुनिया मतलब की देखी, ना सोची पीड़ हरण नै
हर दम हाड़ पेलती देखी, ना सुण्या कदे इन्कार मनै
 
दूध बिलौणा, झाडू बुहारी, वो बंधी-बंधाई करती
बालक सारे भेज स्कूल म्हां, साफ-सफाई करती
पाटे पै टांका, बटण लगाणा, फेर धुलाई करती
औलाद के नखरे डांट सहणा, फेर समाई करती
जूते, गोळी चोकिरदे तै, चलते देखे हथियार मनै
 
ग्वारा और रोटी हाळी की, खेत पहुंचाणी हो थी
दो कोस तै घास की गठड़ी, सिर पै ल्याणी हो थी
झाड़-बुहारी लीपा-पोती, सब गात पै ठाणी हो थी
हाथ म्हां मूसल रात गए, जीरी की घाणी हो थी
इतना शोषण ईब सोचूं सूं, क्यूं कर्या स्वीकार तनै
 
आधी रात गए सौणा, फेर पहर के तड़के उठज्या थी
कोल्हू की बैल जणों वो, फेर काम पै जुटज्या थी
कोई इच्छा मन म्हं उठी, छाती के म्हां घुटज्या थी
गलती तै गर कह बैठी, बिना बात के पिटज्या थी
पशुओं की ज्यूं दुबकी तू, सहती देखी दुत्कार मनै
 
जापै पै जापा घणी मुसीबत, तन पै औटे जा थी
घर म्हां तंगी खाण-पीण की, सहती टोट्टे जा थी
जाथर थोड़ा बोझ घणा, आग पै लोटे जा थी
नहीं इजाजत करै फैसला, सांस नै घोटे जा थी
लड़ी लड़ाई जिन्दगी की, फिर भी करती तैयार मनै
 
कदे छोरी का ब्याह करणा, कदे सगाई आ गी
घणे बाळकां के कारण, सिर करड़ाई आ गी
हर मुसीबत मेरी मां के सिर, बिना बुलाई आ गी
कदे पीळिया कदे भात, कदे गोद भराई आ गी
जोड़-घटा के चक्कर म्हां, जिन्दगी देखी दुस्वार मनै
 
खुद पहरे सदा पाटे-टुट्टे, धी की त्यूळ सिमाई
छाछ म्हां हिस्सा ना था, कुण सोचे दूध मलाई
इतने दुख सहगी चुप रह कै, जरा नहीं लरजाई
क्यूकर होगी भीत बराबर, नहीं समझ म्हां आई
टीस उठै मेरे भीतर तक, दाब लई हर बात मनै
 
मरणा कदे जामणा, कदे किसी की शादी होगी
के देना के संगवाणा, इसी फिकर म्हं आधी होगी
आज भी वाहे सोच खड़ी, तू दादी परदारी होगी
इज्जत मान के मिलणा था, सेहत की बरबादी होगी
दुभांत पै ‘रामेश्वर’ रोवै, क्यूं ली आखिरकार तनै
 

2

जाग रै इन्सान क्यूं सोवै, लुट गी तेरी कमाई
क्यूं पत्थर होया गात तेरा, ना आच्छी घणी समाई
 
रहे बुला हम सब बिदेशां नै, म्हारे देश म्हं आओ
सारा थारा हुक्म चलेगा, बस थम उद्योग लगाओ
सारा कुछ हो थारै हवाले, चाहे लूट-लूट कै खाओ
भोपाल गैस से काण्ड करो, अर जनता नै मरवाओ
‘कारबाईड’ सै याद आज तक, ना पूरी पड़ै दवाई
 
खुल्ले पण का खेल सै सारा, सब दरवाजे खोल दिए
खेती आळे खेत खोस कै, अब मिट्टी के मोल दिए
कानून-कायदे थे जो सरकारी, उन्हीं के हवाले बोल दिए
आज म्हारे हक राजा नै, रद्दी के भा तोल दिए
इब उन के तळवे चाटेंगे, अडै़ सरतू अर भरपाई
 
नौ सौ रूपये कविंटल लेवैं, जमींदार की चीज
कई गुणा मंहगी होज्या सै, साहूकार की चीज
हम भी खुश खरीद कै, भाई बाहर की चीज
विदेशी लोग अपणी समझैं, सरकार की चीज
भारत की बणी चीज खरीदें, हो ज्या सै रूसवाई
 
म्हारी तरक्की का ढौंग करैं, फैदा ठाणा चाहवैं
विदेशी पूंजी अर नेता, गठजोड़ बिठाणा वाहवैं
खुल्लेपण की आड़ ले कै, गुलाम बणाणा चाहवैं
‘रामेश्वर’ हम देश बेच कै, क्यूं गिरकाणा चाहवैं
ज्ञान का सूरज सिर पै सै ईब, जाग नींद तैं भाई

3

उम्र बीत गी हाड तुड़ाए, फिर भी भरतू भूखा रहग्या
बिना चौपड़ी, आधी रोटी, ऊपर गंठा सूखा रहग्या
 
कई जगह तै कुरता पाट्या, सारा बदन उघाड़ा होग्या
काळी चमड़ी हाड दीखते, सूख कै गात छुआरा होग्या
उनकी तोंदां रोज बढ़ैं, मेरा गात घणा यू माड़ा होग्या
तेरी च्यौंद टूटती ना अड़ै, इतना बड़ा पवाड़ा होग्या
वो हलवे पकवान खार्हे, तेरा टुकड़ा रूखा रहग्या
 
सिर पै औटी सब करड़ाई, कड़ी धूप अर पाळे म्हं
सारी रात पाणी ढोया तनै, मंदिर और शिवाले म्हं
तेरी कमाई ताबीज खागे, कुछ गई भूत निकाले म्हं
सारी उम्र तनै फरक कर्या ना, चोरों और रूखाळे म्हं
गंगा माई खूब पूज ली, तेरा खेत तो सूखा रहग्या
 
एक हजार पै गूंट्ठा लाया, सौ का नोट थमाया रै
सब लोगां नै अनपढ़ता का तेरी फैदा ठाया रै
पीर, फकीर, बसंती माता चारों खूंट घुमाया रै
लुट पिट कै भी तू न्यूं बोल्या जिसी राम की माया रै
फिर भी सेठां का चेहरा, कति-ए-लाल-भभूका रहग्या
 
खेत-मील में तूं-ए-कमावै, पूंजी उसनै लाई रै
दस थमावै तेरे हाथ म्हं, निगलैं शेष कमाई रै
मौका सै लूट जाण कै, कुछ तो बचा ले भाई रै
‘रामेश्वर’ नै बहुत कह्या, तेरे नहीं समझ म्हं आई रै
सारे दिन बस ताश खेलणा, तेरे हाथ म्हं हुक्का रहग्या
 

4

जनता तो बांदी बणगी, चोर रूखाळा होग्या
लोक राज का मेरे देश म्हं, ढंग कुढ़ाळा होग्या
 
कैसी सेवा कैसे सेवक, राजनीति व्यापार होई
धोखे की यां लड़ैं लड़ाई, संसद आज बाजार होई
सत्य-अहिंसा ना रहगी, अब चालाकी हथियार होई
बिन सीढ़ी मंजिल ढूंढै, या कैसी पौध त्यार होई
गोड्डे तक कर्जा चढ़ग्या, यू ज्यान का घाळा होग्या
 
जो शीशे तोडैं, बस फूंकैं, वे मन्त्री बण कै बैठ गए
नूगरे माणस ईब देश म्हं, सन्तरी बण कै बैठ गए
हरेक दवा म्हं जहर भर्या धनवन्तरी बण कै बैठ गए
जनता के कुछ हाथ नहीं, जनतन्त्री बण कै बैठ गए
हल्दी मिल गई चूहे नै, पन्सारी का साळा होग्या
 
भीखू, भीखाराम बण्या, सै वक्त वक्त का फेर दिखे
कोठी, बंगले, दिन के दिन हों, नहीं लगा रे देर दिखे
काजू-पिस्ते खार्या सै, कदे मिलते ना थे बेर दिखे
कार, जीप, नौकर-चाकर, सैं कई एकड़ का घेर दिखे
पहन कै खद्दर बुगला बणग्या, भीतर तै काळा होग्या
 
आंख के अन्धे कान के बहरे, जनता रोती ना दीखैं
लूट पाट चोरी, डाका, सरे आम फिरौती ना दीखैं
बलात्कार गाळां के म्हं अडै़, बहणां ढोती ना दीखैं
भूखा पेट कमेरे का उन्हें, म्हारी पाट्टी धोती ना दीखैं
‘रामेश्वर’ की बात सुणी, मेरै सहम उजाळा होग्या
 

5

पुलिस, नेता और अफसर म्हां, गाढ़ी याड़ी होगी
सांझी खेती धोखे की, या आज उघाड़ी होगी
 
निठल्ले बैठे नाके ला कै, कुछ खावैं रोज दलाली
जिसकी आज्या बारी रगडैं, ना घाट किसी नै घाली
सदियां होगी मेहणत कश की, लूट तो न्यूं ये चाली
हम ईब भिखमंगे कर दिए, पकड़ा हाथ म्हं टाल्ली
मूछां होगी घणी भारी, उन तै हल्की दाढ़ी होगी
 
हुई औणी-पौणी मजदूरी, दुगणी सै धक्के-शाही
सौ की पर्ची नौ सौ रिश्वत, या कित जा गी भाई
खूब कमा कै भूखे बाळक, बात समझ ना आई
लूटण-आळे साण्ड पळैं, और चाटैं दूध-मळाई
मां-बहाण के तन पै घट कै, आधी साड़ी होगी
 
बेच देई जब वोटां हम नै, या गलती मोट्टी होई
घरां बुला कै आंख दिखावैं, नीयत खोट्टी होई
पांच साल तक नेता के, हाथां म्हां चोट्टी होई
न्यारे-न्यारे पाट गए हम, म्हारी बोट्टी बोट्टी होई
रखवाळी बैठी थी बिल्ली, घी की लाड़ी होगी
 
कैसे हो फसल सवाई, जब बाड़ खेत नै खा री
किस पै करैं यकीन, आज नहीं समझ म्हं आ री
जयचंदों की बस्ती म्हं, या शामत आ गी म्हारी
धरी-धराई रह गी रै, ‘रामेश्वर’ तेरी हुशियारी
कल्ले-कल्ले पिट रे, म्हारी सोच अनाड़ी होगी
 

6

विकास हो ग्या बहुत खुशी, गामां की तस्वीर बदलगी
भाईचारा भी टूट्या सै, अब माणस की तासीर बदलगी
 
पक्की गलियां पक्की नाली, पक्के बणै मकान अडै़
प्रेम के बन्धन कच्चे पडग़े, कच्चे पड़े इंसान अडै़
वो सौंधी खशबू गाम की, होए रिश्ते लहू लुहान अडै़
फैशन की अंधी दौड़ का, घर-घर म्हं घमसान अडै़
दिन-धौळी लिफाफे म्हं, आजादी की तहरीर बदलगी
 
इकठ्ठे हो कै बैठां थे सब, हिन्दू-सिक्ख, ईसाई
टैलीविजन आ गया ईब, घर-घर म्हां सीम बणाई
अपणे घर म्हं सिमट गए हम, या इसी क्रांति आई
गलियां सूनी होगी गामां की, होयी सूनी बैठक-थ्याई
हम नै एक बणाणे वाळी, वा साझा अर सीर बदल गी
 
किस्से कहाणी सुण-सुण कै, अपणे गम भुलाज्यां थे
दुख बांट कै आपस म्हं, दूजे के सुख पाज्यां थे
सांझ ढले सब के सुख-दुख, थ्याई के म्हं आज्यां थे
रळ-मिल कै बतलावैं थै सब, सही रास्ते ठ्याज्यां थे
अपणी होई पीड़ सभी की, सांझे वाळी पीड़ बदलगी
 
विकास तै पहल्यां भाईचारे की, हो थी कला सवाई
इक-दूजे की मदद करैं थे, ना थी ऐसी हाथा पाई
गाम की बेटी सबकी बेटी, कोई बुआ, चाची, ताई
‘रामेश्वर’ आपस म्हं लड़ रे, ईब रोज यां भाई-भाई
विकास गेल्या गामां म्हं, प्यार की तदबीर बदलगी
 
 
 
 
 
 
 

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