यादें – रोशन लाल श्योराण

कविता


वो बचपन के दिन कड़ै गए,
वो छूटे साथी कड़ै गए,
मैं ढूंढू उनको गळी-गळी
वो यारे प्यारे कड़ै गए।
वो खुडिया-डंडा, वो लुका छिपी
वो तीज और गुग्गा कडै़ गए
वो दीवाळी दशहरे कड़ै गए
वो मशाल फुलझड़ी कड़ै गए
मैं ढूंढू उनको गळी-गळी
वो खील-खिलौणे कड़ै गए।
वो खेल खिलाड़ी कड़ै गए,
वो कुश्ती दंगल कड़ै गए,
वो भाईचारे कड़ै गए,
वो पोला-सूरतां कड़ै गए,
वो भरथू-जगता कड़ै गए
मैं ढूंढू उनको गळी-गळी
वो हरदेवा-धनसिंह कड़ै गए।
वो छोट-बड़़, वो शरमाणे कड़ै गए
वो ताई-चाची, बेबे-बुआ
वो लाड-लडाने कड़ै गए
मैं ढूंढू उनको गळी-गळी
वो रिश्ते-नाते कड़ै गए
वो भात और न्यौंदे कड़ै गए
वो रथ अर घुड़चढ़ी कड़ै गए
वो ढोल-नगाड़े कड़ै गए
वो बैंजू-घड़वे कड़ै गए
वो बीन के लैरें, रात के फेरे
मैं ढूंढू उनको गळी-गळी
वो गाभरू छोरे कड़ै गए
वो पहले जैसे साज नहीं
वो जोगो-सांगी कड़ै गए
वो कंठ सुरीले कड़ै गए
मैं ढूंढू उनको गळी-गळी
वो लख्मी मांगे-मायने कड़ै गए
वो बचपन के दिन कड़ै गए
वो बचपन के दिन कड़ै गए।

स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (नवम्बर 2016 से फरवरी 2017, अंक-8-9), पेज- 112
 

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