खान मनजीत भावड़िया की पांच हरियाणवी रचनाएँ

खान मनजीत भावड़िया

1.

पशुओं के जूं पढ़ लिख बिन,
मन्नै सारी उमर गुजारी बेबे,



मेरी पीहर से जिब चिट्ठी आई,

मन्ने ना वा बाचंणी आई,

खबर बीर की के के ल्याई,

ना पता लाग्या बिना पढ़ाई,

किसकी चिट्ठी आई, किसकी चिट्ठी आई,
किसकी चिट्ठी आई,

कोणे त वा पाटी पाई मैं सुध बुध भूली सारी बेबे
पशुओं के जूं पढ़ लिख बिन

मन्नै सारी उमर गुजारी बेबे
 

पड़ोसी मेरे जिब घर मैं आंवै,
बोला के वो तीर चलांवै,

कड़वे कड़वे मन्न लखावैं,
अनपड़ फूहड़ मन्ने बतावें,

ऊंच नीच की बात कह कै मन्ने खिजावैं,

ताते ठण्डे मन्नै ताव आवैं मन्ने शरम आवै भारी बेबे

तशुओं के जू पढ़ लिख बिन मन्ने सारी उमर गुजारी बेबे



ननद देवर मन्ने मखोलै,

आडी बात कर भितरला छोलै,

गिटर पिटर वो अंग्रेजी बोलै,
तन्नै अक्षर ज्ञान नहीं वो डोलै,

मैं पढ़ जाती तो वो इतना ना बोलै,

औकत मेरा वो नजर तै तोलै, या माड़ी सोच स म्हाराबेबे

पशुओं के जूं पढ़ लिख बिन मन्ने सारी उमर गुजारी बेबे।

 
खान मनजीत नै आण बताया,
क ख ग का मन्ने ज्ञान कराया,

मात्रा तक का मन्ने खूब समझाया,

वर्ण माला का पाठ पढ़ाया,

पढ़ण का रास्ता सारा सिखलाया,

सही रास्ता मन्ने ठ्याया, इब सबनै लागूं प्यारी बेबे

पशुओं के जूं पढ़ लिख बिन, मन्नै सारी उमर गुजारी बेबे।

2.

ठा-ठा ऐड़ी ब्याह शादी म्ह कर्ज चढ़ाणा ठीक नहीं,
दूसरे की रीस के म्ह घणा गिरकाणा ठीक नहीं।
 

पैर घणे फैला लिये आपणी चादर तलक भूल गए
8-10 पकवान घोड़ी बाजे बता नहीं क्श्र पै कब टूल गए,
खर्च करां ब्होत घणा, घणे खर्च फिजूल गए,
बाजे क्श्र नाचै गाबरू, नोट देन्दा-देन्दा भूल गए,
पेट म्ह जब कुछ नहीं, मुह चमकाणा ठीक नहीं।


नाच रहे दारू पिके होज्या मुक्के लात उड़े,
नाई पण्डित, समंधी कर रहे पिससे की बात उड़े,
न्यू लाग्ये जणू छोरे आला, ला रहा डाकू घात उडे,
हद कर दी मलंगा नै, होरी नोटा की बरसात उड़े,
आपणे धन के आपणे हाथा, आग लगाना ठीक नहीं।


कितना देगा छोरी आला, व्यापारी बणे खोल रहे,
सै कितकी रिश्तेदारी, नोटां हम उन्नै तोल रहें
उपर तै डर, ऊपर तै गरीबी, होठंा के ना बोल रहें,
चाहवै ना रिश्तेदारी हम, जो जेबा ना आज टटोल रहें,
मुंह पै लाली पेट खाली, घणा गिरकाणा ठीक नहीं। 
 

बोझ घणा सै जाथर थोड़ा नाड़ तुड़ानी चाहवै,
ना ब्योत देखते आपणा रीस विरानी चाहवै,
व्यापार बणा दी रिश्तेदारी कुणबा घाणी चाहवै,
खान मनजीत वो स्याणे लोग, बहू जो स्याणी चाहवै,
बदलनी होगी रित आपणी, यूं गांत उलहाणा ठीक नहीं।

3.

     थाम समझ ल्यो मेरी बात, सै कम ना सै भाद
     किसने करा सै इतना फर्क सै यूं घणा मोटा फसाद

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई थे ये चार देख ल्यों

जात-पात इनके अन्दर इसमें होती रोज लड़ाई देखल्यों, 

तू छोटा मैं बड़ा न्यू कदे रोज नेता कसाई देखल्यों,

अलग धर्म का अलग राजा यू होता काम आज देखल्यों,

किस धर्म पै करू यकीन, नमक जिसा होग्या सवाद।


हिन्दू मैं पण्डत, मुस्लिमान मैं ये मुल्ला राज करें,

सिख में ग्रंथी, ईसाई में पादरी ये भी तो राज करे,     

अमीर-गरीब बांट राखी राजनेता इस पै राज करें,

क्यूं होगा विकास देश, यो आपा धापी का काज करें,

सारे जै ये इक्टठे होज्या, न्यू होवै ज्यूकर खेत म्ह खाद।

राजनेता भी धर्म-जात की आज लड़ाई लड़ रै सै

ऊँच नीच में ब्याह हो आपस मैं या लड़ाई लड़ रै सै,

     जब दोनूआ के ब्याह वो इसांन पैदा कर रहे सै।
     थाम क्यू डरो सो बाबू यो वो काम नेक कर रहे सै,
     जात-पात ने दूर कर, यू भरोटा सर पै लाद।
 
छोरी-छोरे म्हे प्रेम हो, ये गांम के अड़ ज्या सै

जब घंरा आवै पुलिस तो ये कुवाड़ बन्द कर भीतर बड़ ज्या सै,

जो राके सै शादी इनकी, वो जेल म्ह पड़े सड़ जया है

4.

याणी उमर मै सीरी लाग्ये, जबर भरोटा ठाया,
दिया दस का नोट हाथ म्ह, सौ पै गुंठा लाया,
कर्ज घरां आया महमान, आफत म्ह पड़ी जान,
फिर बता मास्टर जी, म्हारी जग म्ह किसी शान,

ना समझी लूट तन्नै, घणा कुणबा एक बढ़ाया,
कुछ नेता लुट्टैं खान मनजीत, नहीं पढ़ण तूं बिठाया
कर्ज लिया बिना अनुमान करा म्ह जग नै परेशान,
ज यू उत्तर ज्या तै, मेरी आवै जान में जान

5.

जेठ साढ़ की गरमी मैं तेरा बिना फूस का ढारा रै
कड़ टूट ली कमा-कमा कै, मुश्कल होणा गुजारा रै


किस पै करां यकीन आज नहीं समझ मैं आरी
कैसे हो फसल सवाई जब बाड़ खेत नै खारी
धरी धराई रै जागी किसान मजदूर तेरी हुश्यारी
आज के बखत मैं या शामत आग्यी सै म्हारी
कल्ले कल्ले पिट रे सैं बोझ लादकै सारा रै
कड़ टूट ली कमा-कमा कै, मुश्कल होणा गुजारा रै

 
असली नकली का के बेरा कदै एक हरफ पढ़ाया ना
मैं अकेला आज तक कदे खाद दवाई ल्याया ना
पिछे खाई आगे कूआं कदै सई रास्ता पाया ना,
तेरी जैसी बीर मिली मनैं मैं कदे घबराया ना,
इस कमजोर गात नै रै भाई सारे कहें गुजारा रै
कड़ टूट ली कमा-कमा कै, मुश्कल होणा गुजारा रै।


पसीना तन मैं आवै सै दिन भर मेरै बहोत घणा,
धूप गरमी बरसात सह रा मैं बहोत घणा,
भुखा रह रया कुणबा मेरा देख्या खड़ा जणा जणा,
कच्चा ढारा मेरा कच्चा ए रह गया ये दुनिया नै सै बेरा घणा,
कितना बदला सै हरियाणा खोल बतांऊ सारा रै
कड़ टूट ली कमा-कमा कै, मुश्कल होणा गुजारा रै


करै यकीन तू झुठे पै धक्के कब तक खावै गा
तनै लूट कै खा ग्या सारा देस तू और के चावे गा
अंधेरा क्यूकर दूर हो समाज का तू खुद ए दीप जलावे गा,
खुद मालिक खुद के हक का खान मनजीत तू और के चावे गा,
गरीबी अड़ गी नासां तक इब खोजणा होगा चारा रै,
कड़ टूट ली कमा-कमा कै, मुश्कल होणा गुजारा रै

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *