Tag: कहानी

गैंग्रीन /रोज- अज्ञेय

‘रोज़’ शीर्षक कहानी अज्ञेय के कहानी संकलन ‘विपथगा’ के पहले संस्करण में है। पर ‘विपथगा’ के पाँचवें संस्करण में, जो सन् 1990 ई. में नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुआ, यही कहानी ‘गैंग्रीन’ शीर्षक से प्रकाशित है। इस कहानी में अज्ञेय ने मध्यवर्गीय जीवन में नित्य की दिनचर्या के कारण व्याप्त एकरसता तथा उबाऊपन को चित्रित किया है. इस कहानी को ‘नई कहानी’ की पूर्व पीठिका के रूप में जाना जाता है. … Continue readingगैंग्रीन /रोज- अज्ञेय

लाल पान बेगम- फणीश्वर नाथ रेणु

‘ठुमरी’ संग्रह में संकलित ‘लाल पान की बेगम’ सन् 1956 की कहानी है। इलाहाबाद से प्रकाशित ‘कहानी’ पत्रिका के जनवरी, 1957 के अंक में यह प्रकाशित हुई थी। पुंज प्रकाश ने इस कहानी का नाट्य रूपान्तरण भी किया है, जिसे सन् 2017 में—शारदा सिंह के निर्देशन में—पटना के ‘कालिदास रंगालय’ में मंचित किया गया। बिरजू की माँ के द्वारा ‘स्त्री सशक्तिकरण’ की मिशाल पेश की गई है। इस कहानी में बिरजू की माँ अपनी जिन्दगी अपने शर्तों पर जीती है, पूरे आत्मसम्मान एवं ठसक के साथ। (स्त्रोत- इन्टरनेट) … Continue readingलाल पान बेगम- फणीश्वर नाथ रेणु

कोसी का घटवार- शेखर जोशी

‘कोसी का घटवार’ शेखर जोशी की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है. इसका प्रकाशन सन् 1958 में हुआ था. यह कहनी सामाजिक पिछड़ेपन की वजह से अधूरे रह गए प्रेम पर आधारित है. कहानी में पहाड़ी परिवेश का चित्रण कहानी को जीवंतता प्रदान करता है. … Continue readingकोसी का घटवार- शेखर जोशी

अमृतसर आ गया है- भीष्म साहनी

‘अमृतसर आ गया है’ कहानी समकालीन कहानीकारों में अग्रणी भीष्म साहनी के ‘पहला पाठ’ कहानी संग्रह में संकलित है. हिंदी की भारत- पाक विभाजन आधारित कहानियों में यह कहानी अत्यंत प्रसिद्ध हुई है. इस कहानी में विभाजन के कारण एक चलती हुई रेल में उत्पन्न हुए सांप्रदायिक माहौल का चित्रण किया गया है. … Continue readingअमृतसर आ गया है- भीष्म साहनी

चीफ की दावत- भीष्म साहनी

भीष्म साहनी की कहानी ‘चीफ की दावत’ 1957 में प्रकाशित उनके कहानी संग्रह ‘पहला पाठ’ की सर्वाधिक चर्चित कहानी है. इस कहानी में भीष्म सहनी ने एक कम्पनी में काम करने वाले बेटे की मध्यवर्गीय मानसिकता को चित्रित किया है जिसमें वह अपनी माँ को अपने अधिकारी के समक्ष अप्रस्तुतियोग्य समझता है. अपने अपमान के बावजूद भी माँ अपने बेटे की उन्नति की ही कामना करती है. … Continue readingचीफ की दावत- भीष्म साहनी

सिक्का बदल गया- कृष्णा सोबती

देश विभाजन से संबंधित कृष्णा सोबती की कहानियों में सबसे चर्चित एवं प्रसिद्ध कहानी है- “सिक्का बदल गया” है। इसका प्रकाशन ‘प्रतीक’ में 1948 में हुआ था। इस कहानी की मुख्य पात्र शाहनी नाम की एक पचास वर्षीय बुजुर्ग औरत है जो कि भारत-पाक विभाजन के कारण अपना घर-बार, खेत खलिहान छोड़कर विस्थापित होने पर मजबूर है. इस कहानी के केंद्र में विभाजन से उपजी त्रासदी ही है. … Continue readingसिक्का बदल गया- कृष्णा सोबती

पिता- ज्ञानरंजन

साठोत्तरी पीढ़ी के ‘चार यार’ के रूप में प्रसिद्ध मंडली के चार सदस्यों – ज्ञानरंजन, दूधनाथ सिंह, काशीनाथ सिंह एवं रवीन्द्र कालिया में से एक ज्ञानरंजन ने केवल 25 कहानियों की रचना की है जिसमें से एक भी सभी कहनियाँ अपने शिल्प और वस्तु के स्तर पर बेजोड़ है. इन्हीं कहानियों में से कहानी है ‘पिता’. इस कहानी में ज्ञानरंजन ने नई और पुरानी पीढ़ी के संस्कारों तथा मान्यताओं में टकराहट और अन्तर्विरोध का शानदार चित्रण मिलता है. … Continue readingपिता- ज्ञानरंजन

राजा निरबंसिया- कमलेश्वर

‘राजा निरबंसिया’ कहानी नई कहानी आन्दोलन की वृहदत्रयी के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर कमलेश्वर के कहानी संग्रह ‘राजा निरबंसिया’ (1957) में प्रकाशित हुई थी. इस कहानी में कमलेश्वर ने राजा निरबंसिया की पौराणिक कथा तथा चंदा की आधुनिक कहानी को एक समानांतर रूप से कही है जिसमें आधुनिक जीवन की विसंगतियों को चित्रित किया गया है. नई कहानी आन्दोलन की वृहदत्रयी में अन्य दो महत्वपूर्ण हस्ताक्षर राजेंद्र यादव और मोहन राकेश हैं। … Continue readingराजा निरबंसिया- कमलेश्वर

परिन्दे-निर्मल वर्मा

1956 ई. में परिदें कहानी का प्रकाशन होता है। इसी नाम से उनका कहानी संग्रह भी है जिसमें कुल 7 कहानियाँ हैं. इस संग्रह की अंतिम कहानी परिंदे है। इस कहानी में निर्मल वर्मा ने मध्यवर्गीय समाज में अकेलेपन के कारण फैली उदासीनता को चित्रित किया है. इस उदासीनता की वजह से कहानी के पात्र मानसिक रूप से बिखराव के शिकार है. … Continue readingपरिन्दे-निर्मल वर्मा

कानों में कंगना- राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह

राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह की कहानी ‘कानों में कंगना’ वर्ष 1913 में “इंदु” पत्रिका में प्रकाशित हुई. इस कहानी में विवाहित नायक नरेन्द्र के नशे की आदत तथा
वेश्या के प्रेम में पड़ने की वजह से हुए उसके चारित्रिक पतन को चित्रित किया गया है. कहानी की क्लिष्ट अलंकारिक भाषा को इसके शिल्प की विशेषता माना जा सकता है. … Continue readingकानों में कंगना- राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह