Month: August 2018

मेरे पीछे सूनी राहें और मेरे आगे चौराहा – बलबीर सिंह राठी

Post Views: 212 ग़ज़ल मेरे पीछे सूनी राहें और मेरे आगे चौराहा, मैं ही मंजि़ल का दीवाना मुझ को ही रोके चौराहा। हर कोई अपनी मंजि़ल के ख़्वाब सजा कर

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मजदूर बनाम राष्ट्र -सुरेश बरनवाल

Post Views: 793 कविता यह भी तो एक युद्ध है कि एक मजदूर दिन भर की दिहाड़ी के बाद आधा राशन लिए घर लौटता है। उसके बच्चे हर रोज युद्धभूमि

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दंगे में प्रशासन – विकास नारायण राय

Post Views: 306 विकास नारायण राय स्वतंत्र देश में 1947 के बाद पहली बार कहीं भी खुली राजकीय शह पर अल्पसंख्यकों के  खिलाफ हिंसा का व्यापक तां  व नवम्बर 1984

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आज सार्यां नै सस्पैंड करकै जान्दा

Post Views: 168 एक बै की बात सै-एक स्कूल के बारणै आग्गै कार रूकी और उसमें तै एक पढ्या-लिखा सा आदमी उतर कै उसे कमरे में जा बड्या जित बालक

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संघर्ष कथा – सहीराम

Post Views: 427 आंखिन देखी मैं कहता हूं, सुनी सुनायी झूठ कहाय। गाम राम की कथा सुनाऊं, पंचों सुनियो ध्यान लगाय। हल और बल कुदाली कस्सी, धान बाजरा फसल गिनाय।

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रूठ गया हमसाया कैसे – बलबीर सिंह राठी

Post Views: 174 ग़ज़ल रूठ गया हमसाया कैसे, तुम ने वो बहकाया कैसे। जिस्म तो जिस्म था उसमें आखिर, इतना नूर समाया कैसे। तुमने अपने जाल में इतने, लोगों को

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आपातकाल आज से कम ख़तरनाक था – रोमिला थापर

Post Views: 235 bbchindi.com से… पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में जिन पांच लोगों ने याचिका दाख़िल की थी, उनमें इतिहासकार रोमिला थापर भी

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परीक्षा से अधिक कठिन है मूल्यांकन – कमलानंद झा

Post Views: 1,373 मेरे बिहार (वैसे लगभग पूरे देश में) में मूल्यांकन के संदर्भ में एक फिकरा अत्यंत प्रसि़द्ध है कि एक साल की पढा़ई तीन घंटे की लिखाई और

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घर की सांकल – बजरंग बिहारी तिवारी

Post Views: 381 बजरंग बिहारी तिवारी (हरपाल के कविता संग्रह घर की सांकल की समीक्षा) कविता जीवन की सृजनात्मक पुनर्रचना है। इस सृजन में यथार्थ, कल्पना, आकांक्षा, आशंका और संघर्ष के

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तुम्हें ग़र अपनी मंजि़ल का पता है फिर खड़े क्यों हो – बलबीर सिंह राठी

Post Views: 581 ग़ज़ल तुम्हें ग़र अपनी मंजि़ल का पता है फिर खड़े क्यों हो, तुम्हारा कारवां1 तो जा चुका है फिर खड़े क्यों हो। उजाला तुम तो ला सकते

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