हिन्दी आलोचना का इतिहास विसंगतियों से भरा हुआ है और हमारा हिन्दी समाज अब उसके दुष्परिणाम भी झेल रहा है किन्तु हमारे वरिष्ठ आलोचकों की नजर भी उन विसंगतियों की ओर नहीं पड़ रही है. हम उनमें से कुछ विसंगतियों की ओर पाठको का ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश करेंगे.
निराला की सरोज स्मृति – सुभाष चंद्र
दुख ही जीवन की कथा रही,
क्या कहूँ आज, जो नहीं कही!
सादगीपूर्ण व्यक्तित्व और सहज लेखन के धनी भवानी प्रसाद मिश्र – अरुण कुमार कैहरबा
‘कुछ लिख के सो, कुछ पढ़ के सो।
जिस जगह जागा सवेरे, उस जग से बढ़ के सो।’
साहित्य की महत्ता – आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864–1938) हिन्दी के महान साहित्यकार, पत्रकार एवं युगप्रवर्तक थे। हिंदी साहित्य की अविस्मरणीय सेवा की और अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान की। 17 वर्ष तक हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती का सम्पादन किया।
दिल्ली से कलकत्ता – बालमुकुंद गुप्त
(16 जनवरी 1899 को भारत मित्र अखबार बालमुकुंद गुप्त के संपादन में प्रकाशित हुआ। इस अंक में दिल्ली से कलकत्ता तक लेख में अपनी यात्रा का वर्णन किया है। इस वृतांत में बालमुकुंद गुप्त की विलक्षण वर्णन क्षमता, संवेदनशीलता और संवेदनशील दृष्टि के दर्शन होते हैं। )
पीछे मत फेंकिये – बालमुकुंद गुप्त
Post Views: 423 बालमुकुंद गुप्त ती ख्याति का आधार हैं ‘शिवशंभु के चिट्ठे’। शिवशंभु के चिट्ठे तत्कालीन वायसराय को लिखी गई खुले पत्र हैं। ये शिवशंभु शर्मा के नाम…
हँसी-खुशी – बालमुकुंद गुप्त
हँसी भीतर आनंद का बाहरी चिन्ह (चिह्न) है। जीवन की सबसे प्यारी और उत्तम से उत्तम वस्तु एक बार हँस लेना तथा शरीर के अच्छा रखने की अच्छी से अच्छी दवा एक बार खिलखिला उठना है। पुराने लोग कह गए हैं कि हँसो और पेट फुलाओ।
ऐसे में बालमुकुंद गुप्त को याद करना अच्छा लगता है – सुभाष चंद्र
Post Views: 638 टोरी जावें लिबरल आवें। भारतवासी खैर मनावें नहिं कोई लिबरल नहिं कोई टोरी। जो परनाला सो ही मोरी। ये शब्द हैं – पत्रकार, संपादक, कवि, बाल-साहित्यकार, भाषाविद्,…
हिंदी-साहित्य के इतिहास पर पुनर्विचार – नामवर सिंह
इतिहास लिखने की ओर कोई जाति तभी प्रवृत्त होती है जब उसका ध्यान अपने इतिहास के निर्माण की ओर जाता है। यह बात साहित्य के बारे में उतनी ही सच है जितनी जीवन के।
लूकाच का वास्तविकतावाद – डा. ओमप्रकाश ग्रेवाल
Post Views: 310 मार्क्सवाद के बारे में बहुत से पर्वाग्रह लोगों के मन में घर कर गये हैं। उनमें से एक मुख्य धारणाा यह है कि इस दृष्टिकोण से प्रतिबद्धता…