पुरानी होने से ही न तो सभी वस्तुएँ अच्छी होती हैं और न नयी होने से बुरी तथा हेय।विवेकशील व्यक्ति अपनी बुद्धि से परीक्षा करके श्रेष्ठकर वस्तु को अंगीकार कर लेते हैं और मूर्ख लोग दूसरों द्वारा बताने पर ग्राह्य अथवा अग्राह्य का निर्णय करते हैं।
ऐसे में बालमुकुंद गुप्त को याद करना अच्छा लगता है – सुभाष चंद्र
Post Views: 639 टोरी जावें लिबरल आवें। भारतवासी खैर मनावें नहिं कोई लिबरल नहिं कोई टोरी। जो परनाला सो ही मोरी। ये शब्द हैं – पत्रकार, संपादक, कवि, बाल-साहित्यकार, भाषाविद्,…
जनपक्षीय राजनीति का मार्ग प्रशस्त करें
Post Views: 355 सेवा देश दी जिंदड़िए बड़ी ओखी, गल्लां करणियां ढेर सुखल्लियां ने। जिन्नां देश सेवा विच पैर पाइया उन्नां लख मुसीबतां झल्लियां ने। – करतार सिंह…
वैचारिक बहस को जन्म दे रही है देस हरियाणा’
Post Views: 344 विकास होग्या बहुत खुसी, गामां की तस्वीर बदलगी भाईचारा भी टूट्या सै, इब माणस की तासीर बदलगी -रामेश्वर गुप्ता पिछले दस-बारह सालों से ‘हरियाणा नं. 1’ की…
लिंग-संवेदी भाषा की ओर एक कदम – डा. सुभाष चंद्र
Post Views: 286 डा. सुभाष चंद्र अपने अल्फ़ाज पर नज़र रक्खो, इतनी बेबाक ग़ुफ्तगू न करो, जिनकी क़ायम है झूठ पर अज़मत, सच कभी उनके रूबरू न करो। – बलबीर सिंह राठी…
हरियाणा की पहचान का सवाल
Post Views: 273 हरियाणा के गठन से ही जब-तब बुद्धिजीवी और राजनीतिज्ञ हरियाणा की पहचान ढूंढने की कवायद करते रहे हैं। लेकिन वे सर्वमान्य पहचान को चिह्नित करने में असफल…
छवि का कुहासा और केंचुली उतारता हरियाणा- डा. सुभाष चंद्र
Post Views: 190 प्रोफेसर सुभाष चंद्र हरियाणा की छवि और वास्तविकता में दूरी बढ़ते बढ़ते इतनी हो गई है कि अब वास्तविकता और उसकी छवि का संबंध टूट गया है।…
हरियाणा के पचास सालः क्या खोया, क्या पाया – डा. सुभाष चंद्र
Post Views: 427 संपादकीय इनआमे-हरियाना हमें जिस रोज से हासिल हुआ इनआमे-हरियाना। बनारस की सुबह से खुशनुमा है शामे-हरियाना। न क्यों शादाब हो हर फ़र्दे-खासो आमे हरियाना। तयूरे-बाग़ भी लेते…
नफरत की राजनीतिक बहस और सांप्रदायिक सद्भाव व दोस्ती की दास्तान – डा. सुभाष चंद्र
Post Views: 892 सुभाष चंद्र ये दाग़ दाग़ उजाला, ये शबगज़ीदा सहर वो इन्तज़ार था जिस का, ये वो सहर तो नहीं …
कर्ज माफी से कर्ज मुक्ति न्यूनतम समर्थन मूल्य से निश्चित आय – डा. सुभाष चंद्र
Post Views: 765 हाय-हाय रै जमींदारा, मेरा गात चीर दिया सारा। ( दयाचंद मायना) पिछले बीस-पच्चीस सालों से खेती-किसानी का संकट निरंतर गहराता जा रहा है। हताश किसान-आत्महत्याओं का सिलसलिा थम…