1322 ई. में बंदा नवाज का जन्म हुआ। बंदा नवाज का पूरा नाम था सैयद मुहम्मद बिन सैयद युसुफुल अरूफ। इनके बाल बहुत बड़े-बड़े थे। अतः लोग इन्हें गेसू दराज (गेसू-बाल, दराज-बड़ा) भी कहते थे। इस समय ये ख्वाजा बन्दे नवाज गेसूदराज के नाम से स्मरण किए जाते हैं।
ननकाना साहिब : एक ऐतिहासिक विरासत – सुरेंद्र पाल सिंह
आजकल करतारपुर कॉरिडोर खुल चुका है और गुरु नानकदेव जी की 550वीं जयन्ती के उपलक्ष्य में रोजाना हज़ारों श्रद्धालु पाकिस्तान जा पा रहे हैं. फ़रवरी 1921 में ननकाना साहब गुरुद्वारा के महंत नारायण दास ने पठानों के हाथों 139 सिक्खों को (थॉर्नबर्न ICS के अनुसार) या तो ज़िन्दा जलवा दिया था या मरवा दिया था क्योंकि उसे शक था कि वे उसे गद्दी से हटाना चाहते थे.
यादों के आइने में भगतसिंह और उनके साथी – यशपाल
Post Views: 600 मैं यह कहानी व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर लिख रहा हूं। भगत सिंह, सुखदेव और मैं कालिज के सहपाठी थे। भगवतीचरण हम लोगों से दो बरस आगे…
हिन्दी की उन्नति – बालमुकुंद गुप्त
Post Views: 282 हिन्दी भाषा के संबंध में शुभ केवल इतना ही देखने में आता है कि कुछ लोगों को इसे उन्नत देखने की इच्छा हुई है। किंतु केवल इच्छा…
हिंदी उर्दू की एकता – मुंशी प्रेमचंद
(आर्य समाज सम्मलेन के वार्षिक अवसर पर 23-24 अप्रैल 1936 को लाहौर में दिया गया मुंशी प्रेम चंद का भाषण )
हिंदी भाषा की भूमिका – बालमुकुंद गुप्त
हिन्दी फारसी भाषा का शब्द है। उसका अर्थ है हिन्द से संबंध रखने वाली, अर्थात् हिन्दुस्तान की भाषा। ब्रजभाषा में फारसी, अरबी, तुर्की आदि भाषाओं के मिलने से हिन्दी की सृष्टि हुई।
सत्याग्रह दर्शन और भारत
आज भी और पहले भी सत्ताग्रह और सत्याग्रह में संघर्ष रहा है।गांधी ने सत्य की अविछिन्न परंपरा से अपने को जोड़ा। सत्ता सत्य की परिभाषा बदलने पर उतारू है। सत्य हमेशा लोकमंगलकारी होता है। सत्य पर प्रहार और हमले लोक पर और लोकतंत्र पर हमले हैं।
हिटलर के नाम गांधी के पत्र
Post Views: 331 गांधी जी संवाद पूरा करने में विश्वास रखते थे। मन में कोई ग्लानि हो, किसी से शिकायत हो, अपनी बात किसी तक पहुंचाने की ज़रूरत हो या…
गुगा पीर की छड़ी, नानी कूद के पड़ी – सोनिया सत्या नीता
Post Views: 637 भादव के शुरू होते ही डेरू बजने की परम्परा भी जीवंत होती है. गांव देहात मे भादव के आने पर डेरू वाले एकम से लेकर नवमी तक…
पीर बुद्धू शाह – सुरेन्द्रपाल सिंह
पीर बुद्धू शाह अपने चार पुत्रों, दो भाइयों और 700 अनुयायियों के साथ सढोरा से चलकर गुरु गोबिन्द सिंह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़े। इस लड़ाई में गुरु की फौज को जीत तो हासिल हुई, लेकिन पीर बुद्धू शाह के दो पुत्र अशरफ शाह और मोहम्मद शाह व भाई भूरे शाह शहीद सहित 500 अनुयायी शहीद हुए।