सतनामी सम्प्रदाय में जाट, चमार, खाती आदि छोटी जातियों के लोग शामिल थे। परन्तु उन्होंने अपने जातिगत भेद मिटा दिए थे। वे सादा भोजन करते और फकीरों जैसा बाना पहनते थे। सतनामी हर प्रकार के उत्पीड़न के खिलाफ थे। इसलिए अपने साथ हथियार लेकर चलते थे। दौलतमंदों की गुलामी करना उन्हें बुरा लगता था। उनका उपदेश था कि गरीब को मत सताओ। जालिम बादशाह और बेईमान साहूकार से दूर रहो।
दानवीर सेठ चौधरी छाज्जूराम – प्रिंस-लाम्बा
Post Views: 973 प्रिंस लाम्बा समाज सेवक व दानवीर चौधरी छाज्जूराम हरियाणा में ही नहीं, बल्कि भारतवर्ष में भी अपनी एक विशेष पहचान रखते है। इनका जन्म 27 नवंबर 1861…
सिंगापुर की गदरी फौजी बगावत में शहीद हुए हरियाणा के वीरों की सूची
Post Views: 1,023 भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम में 1857 व गदर-लहर दो महत्त्वपूर्ण सशस्त्र विद्रोह रहे हैं। दिलचस्प बात ये है कि दोंनों में हरियाणा क्षेत्र की उल्लेखनीय भूमिका रही है। सिंगापुर…
और जब मौत नहीं आयी – शिव वर्मा
Post Views: 227 सोमैया इस संसार में बिल्कुल अकेला था। उसे न तो अपनी मां की याद थी और न बाप की। गांव के बड़े-बूढ़ों से जो कुछ सुनता था,…
जहाज कोठी- सुरेंद्र पाल सिंह
हिसार में एक स्थान का नाम है जहाजपुल। इसके बगल में ही एक इमारत है जिसमें एक टूटे हुए पत्थर की प्लेट पर अंग्रेजी और फ़ारसी में लिखा है जॉर्ज थॉमस 1796। फि़लहाल इस इमारत में पुरातत्व विभाग द्वारा एक अजायब घर बनाया हुआ है।
औरंगज़ेब और हिन्दू मंदिर – बी.एन. पाण्डे
एक उर्दू शायर ने बड़े दर्द के साथ लिखा है-
तुम्हें ले दे के, सारी दास्तां में, याद है इतना;
कि आलमगीर हिन्दुकुश था, ज़ालिम था, सितमगर था!
भारत-पाकिस्तान विभाजन: जैसा मैंने देखा – डा. लक्ष्मण सिंह
Post Views: 391 संस्मरण मैं जब जाट हाई स्कूल की प्रथम कक्षा में दाखिल हुआ, उस समय 10-11 वर्ष का था। स्कूल जींद के रेलवे स्टेशन से पूर्व की ओर…
हरियाणा में सभ्यता का उदय- सूरजभान
मध्य कांस्य-काल में जो, पच्चीस सौ ई.पू. से सत्रह सौ ई.पू. के बीच रखा जाता है, हरियाणा में भी अन्य पड़ोसी प्रदेशों की भाँति सभ्यता का उदय है। इस काल की अनेक बस्तियाँ हिसार, जींद, कुरुक्षेत्र, रोहतक तथा भिवानी जिलों में खोज निकाली गई हैं। इनमें मित्ताथल, राखीगढ़ी, बानावली और बालू इनके प्रमुख केंद्र थे। राखीगढ़ी, में आज भी एक विशाल टीले के अवशेष विद्यमान हैं। बानावली, बालू और सम्भवतः मित्ताथल और राखीगढ़ी में किले और बस्तियों का विन्यास सिन्धु-सभ्यता के नगर-विन्यास से मेल खाता है। इनके मकान कच्ची एवं पक्की ईंटों के बने थे। सड़कें एवं गलियाँ बस्ती के आर-पार विद्यमान थीं। घरों में चौक, स्नानघर, रसोई आदि की सुविधाएँ विद्यमान थीं।